केंद्र की महत्त्वाकांक्षी ग्रेट निकोबार ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह परियोजना को दी गई पर्यावरणीय मंजूरी की जांच के लिए गठित एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) इस परियोजना को अपनी पूर्ण मंजूरी दे सकती है। कई वरिष्ठ अधिकारियों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को यह जानकारी दी है।
ट्रांसशिपमेंट परियोजना के तहत वस्तुओं या कंटेनरों को किसी मध्यवर्ती स्थानों तक भेजकर फिर वहां से किसी अन्य जगह भेजा जाता है।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के कोलकाता पीठ ने 3 अप्रैल को परियोजना को दी गई पर्यावरण मंजूरी (ईसी) के बावजूद आगे किसी भी काम पर दो महीने की रोक लगा दी थी।
आदेश में कहा गया है कि 41,000 करोड़ रुपये की इस परियोजना पर तब तक रोक रहेगी जब तक एनजीटी द्वारा नियुक्त समिति केंद्र द्वारा दी गई मंजूरी की जांच नहीं कर लेती।
समिति को पर्यावरण मंजूरी में ‘अनुत्तरित कमियों’ की जांच करने के लिए दो महीने का समय दिया गया था, जो कथित तौर पर मेगा बंदरगाह के विकास से संबंधित गंभीर पर्यावरणीय और नियामकीय चिंताओं को दूर करने में विफल रहा। केंद्र ने इसे सार्वजनिक-निजी साझेदारी के माध्यम से काम पूरा करने का लक्ष्य तय किया था।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हाल ही में यह सूचना दी गई थी कि पैनल ने परियोजना की मंजूरी को संतोषजनक बताया है और याचिका में उठाए गए सभी सवालों के जवाब मिल गए हैं।’
हालांकि यह तुरंत स्पष्ट नहीं हो पाया है कि उच्च स्तरीय समिति ने औपचारिक रूप से एनजीटी को अपनी रिपोर्ट भेजी है या नहीं, लेकिन मामले से जुड़े सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि समिति ने न्यायाधिकरण से समय-सीमा बढ़ाने की मांग नहीं की है।
दोनों अधिकारियों में से एक ने कहा कि चूंकि परियोजना पर वास्तव में कोई काम शुरू नहीं हुआ था, इसलिए हरित न्यायाधिकरण द्वारा लागू की गई रोक काफी हद तक प्रक्रियात्मक कार्रवाई का हिस्सा थी और इससे काम पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा है। अधिकारी ने कहा, ‘पिछले दो महीनों में ऐसा कोई प्रतिकूल फीडबैक नहीं मिला जिसको लेकर समिति ने क्रियान्वयन एजेंसियों से जवाब मांगा हो।’
मंत्रालय वर्तमान में गैलेथिया बे में बनाए जाने वाले कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पर काम कर रहा है क्योंकि इसने कथित विसंगतियों की जांच करने के लिए मामले में याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश किए गए नक्शे की समीक्षा की है।
मामले में याचियों में से एक देवी गोयनका ने कहा, ‘समिति ने हमारी सुनवाई नहीं की और हमें उनके द्वारा लिए गए किसी भी फैसले की जानकारी नहीं है।’
एनजीटी के आदेश के अनुसार, उच्च स्तरीय समिति को परियोजना के विकास के दौरान 4518 कोरल के संभावित विनाश का आकलन करने के लिए कहा गया था और साथ ही इसके असर की आकलन रिपोर्ट की वैधता पर भी गौर करने के लिए कहा गया था जिसमें तीन सीजन के आवश्यक डेटा के बजाय एक सीजन का डेटा था। परियोजना का एक हिस्सा कथित तौर पर एक तटीय विनियमन क्षेत्र में भी पड़ रहा था जहां बंदरगाह निर्माण पर मनाही है।
इस बार जांच पैनल की स्वायत्तता को लेकर चिंताएं जारी हैं। गोयनका ने कहा, ‘दिलचस्प बात यह है कि जिन लोगों ने परियोजना को मंजूरी दी वही लोग उस समिति का हिस्सा हैं जो इसकी समीक्षा कर रही है। इसमें कोई स्वतंत्र विशेषज्ञ नहीं हैं। इस तरह के बुनियादी ढांचे वाली परियोजना से जो लोग प्रभावित होंगे उनको लेकर संवेदनशीलता की साफ कमी दिखती है।’
उच्च स्तरीय समिति की अध्यक्षता पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के सचिव द्वारा की जाती है। पैनल के अन्य सदस्यों में, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के मुख्य सचिव, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नीति आयोग के उपाध्यक्ष द्वारा नामित सदस्य, बंदरगाह, नौवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय के सचिव और भारतीय वन्यजीव संस्थान के निदेशक शामिल हैं।
यह परियोजना भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी प्रमुख बंदरगाह में मेगा कंटेनर जहाजों की सुविधा के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा या अनुकूल भौगोलिक स्थान नहीं है। बड़े माल-ढुलाई वाले जहाजों का अधिकांश परिवहन श्रीलंका और सिंगापुर जैसे देशों में होता है जो स्थापित नौवहन मार्गों के करीब हैं। जबकि भारत ने पहले ट्रांसशिपमेंट बंदरगाहों के निर्माण के लिए प्रयास किए थे, उनमें से अधिकांश आर्थिक या पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल नहीं थे।
परियोजना का जोर तीन प्रमुख कारकों पर है जो इसे एक प्रमुख कंटेनर ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह बना सकता है। जहाजरानी मंत्रालय ने जनवरी में कहा था कि इसमें अंतरराष्ट्रीय नौवहन व्यापार मार्ग के निकट कोई रणनीतिक जगह, 20 मीटर से अधिक पानी की गहराई की उपलब्धता और भारतीय बंदरगाहों सहित निकट के सभी बंदरगाहों से ट्रांसशिपमेंट माल को ले जाने की क्षमता शामिल है।
अदाणी पोर्ट्स ऐंड स्पेशल इकनॉमिक जोन, जेएसडब्ल्यू इन्फ्रास्ट्रक्चर और सरकारी कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया जैसी प्रमुख कंपनियों सहित नौ पक्षों ने बंदरगाह के निर्माण में शुरुआती चरण में दिलचस्पी दिखाई थी।
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्रालय को प्रश्न भेजे लेकिन रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला।