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CPI(M) नेता सीताराम येचुरी का 72 साल की उम्र में निधन, लगभग 1 महीने से दिल्ली AIIMS में थे भर्ती; जानें उनके बारे में…

माकपा (CPI(M)) के जनरल सेट्रेटरी का निधन 72 वर्ष की उम्र में हुआ। येचुरी पिछले कुछ दिनों से गंभीर हालत में थे और वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे।

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रत्न शंकर मिश्र   
भाषा   
Last Updated- September 12, 2024 | 7:04 PM IST

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के दिग्गज नेता सीताराम येचुरी का आज यानी 12 सितंबर को निधन हो गया। वे लंबे समय से चल रही बीमारी के कारण एम्स दिल्ली (AIIMS Delhi) में भर्ती थे। माकपा (CPI(M)) के जनरल सेक्रेटरी का निधन 72 वर्ष की उम्र में हुआ। येचुरी पिछले कुछ दिनों से गंभीर हालत में थे और वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीताराम येचुरी का निधन 3 बजकर 5 मिनट पर हुआ।

CPI(M) ने मंगलवार को एक बयान में कहा था कि 72 साल के नेता सीताराम येचुरी को सीने में संक्रमण और सांस लेने की बीमारी है। जिसके चलते उनका दिल्ली के AIIMS में ICU में इलाज चल रहा था। येचुरी 19 अगस्त को दिल्ली AIIMS में भर्ती हुए थे।

जानें सीताराम येचुरी के बारे में

सीताराम येचुरी का जन्म 12 अगस्त 1952 को चेन्नई में हुआ था। द वायर की संपादक सीमा चिश्ती सीताराम येचुरी की पत्नी हैं। इससे पहले वे इंडियन एक्सप्रेस और BBC Hindi में भी काम कर चुकी हैं। भारतीय राजनीति में उन्हें एक कद्दावर नेता के तौर पर माना जाता रहा है। येचुरी को गठबंधन राजनीति में अपने रणनीतिक दृष्टिकोण और मार्क्सवाद के सिद्धांतों के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के लिए भी जाना जाता है।

1970 के दशक में सीताराम येचुरी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन में इमरजेंसी के खिलाफ लड़ाई लड़ी। 1974 में येचुरी ने छात्र नेता के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। सबसे पहले येचुरी स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) में शामिल हुए। उसके बाद तीन बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष बने और बाद में SFI के ऑल इंडिया प्रेसिडेंट बन गए। साल 1984 में 32 साल की उम्र में वह CPI (M) की सेंट्रल कमेटी के लिए चुने गए। 1992 तक, वह पोलित ब्यूरो के सदस्य थे, इस पद पर वह तीन दशकों से अधिक समय तक रहे। कांग्रेस विरोधी विपक्ष के प्रमुख चेहरों में से एक येचुरी 1990 के दशक के मध्य से राष्ट्रीय राजनीति में गठबंधन-बनाने के प्रयासों में एक प्रमुख चेहरा बन गए।

येचुरी ने पार्टी के दिवंगत नेता हरकिशन सिंह सुरजीत के मार्गदर्शन में काम सीखा, जो 1989 में गठित वी.पी. सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार और 1996-97 की संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान गठबंधन युग में एक प्रमुख नेता थे। इन दोनों ही सरकारों को माकपा ने बाहर से समर्थन दिया था।

संयुक्त मोर्चा सरकार के लिए साझा न्यूनतम कार्यक्रम का मसौदा तैयार करने में येचुरी ने कांग्रेस नेता पी चिदंबरम के साथ काम किया था। सुरजीत के शिष्य ने गठबंधन बनाने की उनकी विरासत को जारी रखा और 2004 में वाम दलों के समर्थन से संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के गठन में सक्रिय भूमिका निभाई।

भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के मुद्दे पर येचुरी ने निभाई अहम भूमिका

येचुरी ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के मुद्दे पर संप्रग सरकार के साथ चर्चा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, 2008 में वामपंथी दलों ने इस मुद्दे पर संप्रग-1 सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिसका मुख्य कारण उनके पूर्ववर्ती प्रकाश करात का अडिग रुख था।

वर्ष 2015 में पार्टी महासचिव का पदभार संभालने के बाद ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में येचुरी ने कहा था कि उन्हें महंगाई जैसे मुद्दों पर समर्थन वापस ले लेना चाहिए था, क्योंकि 2009 के आम चुनाव में परमाणु समझौते के मुद्दे पर लोगों को संगठित नहीं किया जा सका।

कई भाषाओं के जानकार रहे येचुरी

येचुरी विभिन्न मुद्दों पर राज्यसभा में अपने सशक्त और स्पष्ट भाषणों के लिए जाने जाते थे। येचुरी को हिंदी, तेलुगु, तमिल, बांग्ला तथा मलयालम भाषाएं आती थीं। वह हिंदू पौराणिक कथाओं के भी अच्छे जानकार थे और अक्सर अपने भाषणों में खासकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर हमला करने के लिए उन संदर्भों का इस्तेमाल करते थे।

मोदी सरकार के कड़े आलोचक

वह नरेन्द्र मोदी सरकार और इसकी उदार आर्थिक नीतियों के सबसे मुखर आलोचकों में से एक रहे। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में माकपा की केंद्रीय समिति ने कांग्रेस के साथ किसी भी तरह के गठबंधन के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था, यहां तक ​​कि पार्टी के महासचिव येचुरी ने इस्तीफे की पेशकश भी की थी। हालांकि, 2024 के आम चुनाव के दौरान, जब एकजुट विपक्ष के लिए बातचीत शुरू हुई और विपक्षी दल एक साथ मिलकर ‘इंडिया’ गठबंधन बनाने लगे, तो माकपा इसका एक हिस्सा थी और येचुरी गठबंधन के प्रमुख चेहरों में से एक रहे।

कैसे शुरू हुआ सीताराम येचुरी की राजनीतिक करियर

राजनीति में उनका सफर ‘स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (SFI) से शुरू हुआ था, जिसमें वह 1974 में शामिल हुए और अगले ही साल पार्टी के सदस्य बन गए। आपातकाल के दौरान कुछ महीने बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल से रिहा होने के बाद वह तीन बार जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए।

वर्ष 1978 में वह SFI के अखिल भारतीय संयुक्त सचिव बने और उसके तुरंत बाद अध्यक्ष बने। येचुरी ने विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आवास तक मार्च किया था और उन्हें इस्तीफे की मांग करते हुए एक ज्ञापन सौंपा था।

उन्होंने एक घटना को याद करते हुए कहा था कि वह प्रधानमंत्री के आवास के गेट पर उनके इस्तीफे की मांग करते हुए ज्ञापन चिपकाने के इरादे से गए थे और जब उन्हें अंदर बुलाया गया तथा इंदिरा गांधी स्वयं उनसे मिलने आईं तो वह आश्चर्यचकित रह गए। पार्टी में उनका उत्थान बहुत तेजी से हुआ। वह 1985 में माकपा की केंद्रीय समिति के लिए चुने गए और 1992 में 40 वर्ष की आयु में पोलित ब्यूरो के लिए चुने गए।

वह 19 अप्रैल 2015 को विशाखापत्तनम में पार्टी के 21वें अधिवेशन में माकपा के पांचवें महासचिव बने और उन्होंने प्रकाश करात से उस समय पदभार संभाला जब पार्टी गिरावट की ओर थी। पार्टी 2004 में 43 सांसदों से घटकर 2014 में नौ सांसदों तक सिमट गई थी। इसके बाद उन्हें 2018 और 2022 में फिर से इस पद के लिए चुना गया।

सीताराम येचुरी की जीवनी

बारह अगस्त 1952 को चेन्नई में एक तेलुगु भाषी परिवार में जन्मे येचुरी के पिता सर्वेश्वर सोमयाजुला येचुरी आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम में इंजीनियर थे और उनकी मां कल्पकम येचुरी सरकारी अधिकारी थीं। वह हैदराबाद में पले-बढ़े, लेकिन 1969 में उनका परिवार दिल्ली आ गया।

मेधावी येचुरी ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षाओं में अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया और उसके बाद दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक किया। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से एक बार फिर प्रथम श्रेणी के साथ स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की, लेकिन कुछ समय तक भूमिगत रहने और विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने के बाद आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी के कारण वह अपनी पीएचडी की डिग्री पूरी नहीं कर सके।

12 साल तक रहे राज्यसभा सांसद

येचुरी 12 साल तक राज्यसभा के सदस्य रहे। वह 2005 में उच्च सदन के लिए चुने गए और 2017 तक सांसद रहे। संप्रग-2 और उसके बाद नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में येचुरी विपक्ष की एक सशक्त आवाज बने रहे। हाल के लोकसभा चुनाव में माकपा हालांकि ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा थी, लेकिन कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों ने केरल में अलग-अलग चुनाव लड़ा, जहां माकपा को केवल एक सीट मिली। इस गठबंधन का हिस्सा बनने से माकपा को मदद मिली और उसने राजस्थान में एक सीट और तमिलनाडु में दो सीटें जीतीं, जिससे 17वीं लोकसभा में उसकी कुल सीट की संख्या तीन से बढ़कर चार हो गई।

चुनाव के बाद ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक इंटरव्यू में  येचुरी ने परिणामों को भाजपा के लिए झटका बताया था और साथ ही अपनी पार्टी के मामूली रूप से बेहतर प्रदर्शन पर चिंता भी जताई थी। येचुरी के परिवार में उनकी पत्नी सीमा चिश्ती हैं। उनके बेटे आशीष येचुरी का 2021 में कोविड-19 के कारण निधन हो गया था। उनकी बेटी अखिला येचुरी एडिनबर्ग विश्वविद्यालय और सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं तथा उनका एक बेटा दानिश येचुरी भी है। येचुरी की शादी पहले इंद्राणी मजूमदार से हुई थी।

First Published : September 12, 2024 | 4:25 PM IST (बिजनेस स्टैंडर्ड के स्टाफ ने इस रिपोर्ट की हेडलाइन और फोटो ही बदली है, बाकी खबर एक साझा समाचार स्रोत से बिना किसी बदलाव के प्रकाशित हुई है।)