साल 2004 की एक सुबह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों का दल एक प्रस्ताव लेकर नई दिल्ली के साउथ ब्लॉक पहुंचा था। उसका कहना था कि इसरो ने संचार, कृषि, जलवायु पूर्वानुमान और अन्य कई चीजों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान का उपयोग कर महान विक्रम साराभाई के लक्ष्यों को हासिल कर लिया है।
अब समय आ गया है कि लक्ष्य बड़े किए जाएं और चंद्रमा, मंगल और उससे आगे तक अपनी छाप छोड़ी जाए। चंद्रमा मिशन का प्रस्ताव पढ़ने के बाद कविता के अपने अंदाज में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, ‘आइए हम सब इसका नाम चंद्रयान रखें।’
उस वक्त यह अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत के लिए उसी स्वर्णिम क्षण की शुरुआत थी जिसके क्रम में बुधवार को चंद्रयान-3 धीरे-धीरे चंद्रमा की सतह पर उतरा। भारत के आज की इस सफलता की कहानी में मिश्रित भावनाएं, सुंदरता, दर्द, गौरव और कई ऐसी स्थितियां समाहित हैं।
इसरो के तत्कालीन चेयरमैन और वैज्ञानिकों के उस समूह का नेतृत्व करने वाले जी माधवन नायर को आज भी वाजपेयी द्वारा चार वर्षों में मिशन पूरा करने के लिए प्रेरित करने वाला उत्साह याद है। मनमोहन सिंह के सत्ता में आने से इसे और गति मिली और 22 अक्टूबर, 2008 को पहला चंद्रयान (चंद्रयान-1) रवाना किया गया।
चंद्रयान-1 के दौरान इसरो के चेयरमैन रहे नायर ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘उस वक्त लोग कहते थे कि इतनी बड़ी रकम गरीबों पर खर्च क्यों नहीं की जाती है। यहां लोगों के पास खाना, पानी, रहने और पहनने के लिए पैसे नहीं हैं तो अंतरिक्ष पर खर्च क्यों हो रहा है।
जब रोजमर्रा की जिंदगी में इससे मदद मिलने लगी तो उन्होंने ऐसे सवाल पूछने बंद कर दिए। आज हमने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपना दबदबा जमाया है।’ चंद्रमा की सतह पर भारत द्वारा पानी की खोज को वह अपने करियर की शीर्ष उपलब्धि के तौर पर देखते हैं।
वहीं दूसरी ओर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के पूर्व निदेशक और केरल के मुख्यमंत्री के सलाहकार रहे माधवन चंद्र दातन (एम सी दातन) की 1970 के दशक में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा झेले गए दर्द और अपमान को लेकर एक अलग कहानी थी। उस दौरान भारत अंतरिक्ष अन्वेषण में छोटे-छोटे कदम रख रहा था।
साइकिल पर रॉकेट ले जाए जाने जैसे यादगार पल इसरो के भविष्य को आकार दे रहे थे। एक रोज एक साउंडिंग रॉकेट (एक सबऑर्बिटल रॉकेट) में रवाना होने के दौरान कुछ तकनीकी खराबी आ गई और वह तिरुवनंतपुरम में इंजीनियरिंग कॉलेज के परिसर में गिर गया। वहां के छात्रों ने रॉकेट को ले लिया और लगभग 4 किलोमीटर दूर इसरो के तुंबा केंद्र तक पैदल चलकर आए और वहां के वैज्ञानिकों का मजाक उड़ाया।
पद्मश्री से नवाजे गए दातन कहते हैं, ‘इसरो ने बुधवार को जो हासिल किया अब उसपर सभी भारतवासियों को गर्व है। हम चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाले पहले देश हैं। यह सफलता बहुत दर्द, अपमान और असफलता के बाद मिली है इसलिए यह और भी अच्छी लग रही है।’ वह कहते हैं कि शुरुआती दिनों में नासा, फ्रांस और यूएसएसआर ने भारत की काफी मदद की थी।
दातन के अनुसार भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान में निर्णायक मोड़ 1994 में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) की सफलता थी। इससे पहले सितंबर 1993 में पीएसएलवी का पहला मिशन विफल हो गया था, जिसकी लागत करीब 150 करोड़ रुपये थी। एक अन्य अधिकारी को याद है कि उस समय मछुआरा समुदाय ने इसका भारी विरोध किया था।
खैर, अब तारीफ करने वाला मीडिया भी उस वक्त देश के वैज्ञानिकों को अपमान करने से बाज नहीं आया था। बुधवार को चंद्रयान-3 की सफलता के बाद इंटरनेट पर लोगों ने न्यूयॉर्क टाइम्स के उस अपमानजनक कार्टून को उजागर किया जिसमें एक किसान और एक गाय को अंतरिक्ष के विशेष समूह के कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए दिखाया गया है। जहां दो आदमी बैठकर भारत के मंगल मिशन पर एक अखबार पढ़ रहे हैं। यह कार्टून सिंगापुर के कलाकार हेंग किम सॉन्ग ने बनाया था।
यह पहली बार नहीं था जब मीडिया ने भारतीय वैज्ञानिकों का मजाक उड़ाया था। एक पूर्व वैज्ञानिक कहते हैं, ‘जब एसएलवी (1979) मिशन विफल हो गया और समुद्र में उतरा तो उन्होंने इसे समुद्र में उतरने वाला वाहन (सी लैंडिंग व्हीकल) कहा। जब एएसएलवी (संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान) विफल हो गया तो उन्होंने इसे हमेशा समुद्र में उतरने वाला वाहन (ऑलवेज सी लैंडिंग व्हीकल) कहा। 90 के दशक तक मीडिया ने हमेशा हमारी विफलताओं की आलोचना की और कार्टून बनाए।’
1970 के दशक में लगातार विफल हो रहे मिशन के बाद एक दिन लोगों की भीड़ ने इसरो की बस को रोक दिया और उसमें बैठे वैज्ञानिकों के साथ दुर्व्यवहार किया। 2023 में दातन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अब दुनिया भर का वही मीडिया हमारी प्रशंसा कर रहा है। भारत के लैंडर और विक्रम अगले 14 दिनों तक चंद्रमा की सतह पर काम करेंगे। देश ने बुधवार को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीए इलाके में मैंजिनस क्रेटर के दक्षिण और बोगुस्लावस्की क्रेटर के पश्चिम में मौजूद एक पठार पर कदम रखा।
इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ ने कहा, ‘ यह भारत के लिए एक स्वर्णिम युग की शुरुआत है, अतीत में मिले दर्द का परिणाम है।’