बिहार व झारखण्ड

बिहार की मौन कृषि क्रांति: कैसे राज्य अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था, खेती व फसल उत्पादन में तेजी से बदलाव ला रहा है?

जहां लगभग 75 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर हैं, बिहार धीरे-धीरे अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बदलाव ला रहा है, फसल की पैदावार बढ़ा रहा है और महिलाओं को सशक्त बना रहा है

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ऋषिका अग्रवाल   
Last Updated- October 06, 2025 | 6:18 PM IST

बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखें सामने आ गई हैं। बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में होगा, जबकि परिणाम 14 नवंबर को आएंगे। जहां चुनावी वादे, जातिगत समीकरण और मतदाता सूची की विशेष जांच (SIR) सुर्खियों में हैं, वहीं बिहार की खेती में हो रहा शांत बदलाव कम ही चर्चा में है।

बिहार में करीब 75 फीसदी लोग खेती पर निर्भर हैं। यहां खेती की तस्वीर बदल रही है। फसल की पैदावार बढ़ रही है, अलग-अलग तरह की फसलें उगाई जा रही हैं और महिलाएं खेती से जुड़े उद्यमी बन रही हैं। किसान अब मौसम के अनुकूल तकनीक, मशीनों और जैविक खेती को अपना रहे हैं।

2025 के चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ बिहार की खेती के इस बदलाव पर फिर से ध्यान देना जरूरी है। आइए देखते हैं कि पिछले कुछ सालों में बिहार की खेती में क्या बदला है।

क्यों है ये जरूरी?

खेती और उससे जुड़े काम बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। ये 75 फीसदी से ज्यादा लोगों को रोजगार देते हैं और राज्य के जीडीपी में बड़ा योगदान देते हैं। बिहार की उपजाऊ जमीन, पानी की उपलब्धता और अनुकूल मौसम के चलते यहां चावल, गेहूं, मक्का, दालें, गन्ना, जूट और तिलहन जैसी फसलें उगती हैं। इसके अलावा, बिहार आम, मखाना और लीची जैसे बागवानी उत्पादों में भी अग्रणी है।

बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के मुताबिक, खेती, जंगल और मछली पालन का क्षेत्र हर साल राज्य के कुल मूल्यवर्धन (Value Addition) में लगभग पांचवां हिस्सा जोड़ता है। इस क्षेत्र की अहमियत को देखते हुए राज्य सरकार इसका समर्थन करने के लिए भारी संसाधन खर्च करती है। सर्वे के अनुसार, 2019-20 में इस क्षेत्र में 4,066 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जो 2023-24 में बढ़कर 5,171 करोड़ रुपये हो गए।

बिहार में क्या बदला?

पिछले एक दशक में बिहार ने खेती की पैदावार बढ़ाने के लिए जमीनी स्तर पर कई कदम उठाए हैं। 2000 के दशक के अंत से, उत्तरी और मध्य बिहार में चावल और गेहूं की गहन खेती प्रणाली (SRI और SWI) को बढ़ावा दिया गया है, जिससे बिना अतिरिक्त रासायनिक खाद या सिंचाई के पैदावार बढ़ी है। साथ ही, मौसम के अनुकूल फसलें और महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया गया है।

यहां कुछ प्रमुख कदम हैं जो सरकार ने खेती को बढ़ावा देने के लिए उठाए:

  • 2023 में गर्मी की फसलों के लिए 38,857 क्विंटल बीज 5,48,984 किसानों को बांटे गए। खरीफ फसलों के लिए 70,605 क्विंटल बीज 2,86,055 किसानों को और रबी फसलों के लिए 4,65,594 क्विंटल बीज 11,18,667 किसानों को दिए गए।
  • 2023-24 में खेती में मशीनों के लिए 11,900 लाख रुपये मंजूर किए गए।
  • खेती के लिए बिजली सब्सिडी 2019-20 में 486.93 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 3,856.8 करोड़ रुपये हो गई, यानी आठ गुना वृद्धि।
  • 2020-21 से 2024-25 के बीच 30 जिलों में मौसम के अनुकूल खेती के कार्यक्रम लागू किए गए, जिसमें 238.49 करोड़ रुपये का निवेश हुआ।
  • बिहार स्किल डेवलपमेंट मिशन ने 2023-24 में 117 से ज्यादा कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए, जो 2022-23 से 19.4 फीसदी ज्यादा थे। ये प्रशिक्षण खेती और उससे जुड़े कामों के लिए युवाओं को तैयार करने के लिए थे।
  • सरकार ने 21 मार्केट यार्ड को नया करने और आधुनिक बनाने का फैसला किया। 2021 से 2024 के बीच 12 यार्ड का नवीनीकरण 748.46 करोड़ रुपये की लागत से हुआ।
  • जैविक खाद और कीटनाशकों को बढ़ावा देने के लिए जैविक कॉरिडोर योजना, नमामि गंगे के तहत पारंपरिक कृषि विकास योजना और परंपरागत कृषि विकास योजना जैसी योजनाएं चलाई गईं।
  • जैविक कॉरिडोर योजना के दूसरे चरण में 13 जिलों में 20,000 एकड़ जमीन किसानों को बांटी गई।
  • सिंचाई के लिए बुनियादी ढांचे में भारी निवेश हुआ। 2023-24 में सिंचाई पर 1,674.2 करोड़ रुपये खर्च हुए, जो 2022-23 से 9.7 फीसदी ज्यादा है।

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कुछ जरूरी आंकड़े

केंद्र और राज्य सरकारों के समन्वित प्रयासों से बिहार का कृषि क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। इससे किसानों की आय बढ़ी, बाजार तक पहुंच सुधरी और बड़ी आबादी को टिकाऊ आजीविका मिली।

  • 2022-23 में फसल क्षेत्र 6.7 फीसदी, मछली पालन और जलीय कृषि 11.1 फीसदी और पशुपालन 2.7 फीसदी बढ़ा, जैसा कि आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया।
  • किसान क्रेडिट कार्ड योजना के तहत 2019-20 में 3,204.51 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 7,080.07 करोड़ रुपये का वितरण हुआ।
  • जैविक कॉरिडोर योजना (दूसरा चरण) ने 2023-24 में अपने लक्ष्य को लगभग पूरा किया। 13 जिलों में 20,000 एकड़ जमीन बांटी गई, जिसमें 3,192.62 लाख रुपये का आवंटन हुआ।
  • कुल बिजली खपत में खेती का हिस्सा 2019-20 में 4.3 फीसदी से बढ़कर 2023-24 में 17.6 फीसदी हो गया।

पर कई चुनौतियां अभी भी!

इन सभी उपलब्धियों के बावजूद, बिहार के कृषि क्षेत्र में कुछ ढांचागत समस्याएं बनी हुई हैं। सरकारी खरीद कमजोर है और कोल्ड स्टोरेज की कमी के कारण सब्जियों और फलों का नुकसान होता है। ज्यादातर उपज अभी भी अनियमित मंडियों और बिचौलियों के जरिए बिकती है, जिससे किसानों को सही दाम नहीं मिलता। बेहतर ढांचे, बाजार पहुंच और वित्तीय समावेशन के बिना सिर्फ ज्यादा उत्पादन से स्थिर आय की गारंटी नहीं मिल सकती।

2025 चुनाव के लिए वादे

नवंबर 2025 में होने वाले चुनाव के साथ सभी प्रमुख पार्टियां खेती को और बढ़ावा देने के लिए कई वादे कर रही हैं। उनकी नई सोच है कि अगर बिहार में उद्योग नहीं आ सकते, तो खेती को इस कमी को पूरा करना होगा।

  • राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA): सत्तारूढ़ बीजेपी-जेडी(यू) गठबंधन ने मखाना बोर्ड बनाने का वादा किया है, ताकि मखाना किसानों को योजनाओं, बाजार और आजीविका में मदद मिले। साथ ही, दालों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के दायरे में लाने का वादा किया है।
  • राष्ट्रीय जनता दल (RJD): द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, पार्टी के नेता तेजस्वी यादव ने किसानों के कर्ज माफ करने, फसलों को बढ़े हुए MSP पर खरीदने और बिजली की दरें कम करने का वादा किया है।
  • कांग्रेस: द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस ने MSP पर फसल खरीद, वित्तीय सहायता योजनाओं, मुफ्त बिजली और मेडिकल बीमा का वादा किया है।
  • जन सुराज पार्टी: चुनावी रणनीतिकार से कार्यकर्ता बने प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने महिलाओं को खेती और उससे जुड़े कामों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए 4 फीसदी ब्याज पर कर्ज देने का वादा किया है। पार्टी के पांच सूत्री एजेंडे में मनरेगा को खेती से जोड़कर किसानों को मुफ्त मजदूर देने का भी वादा है, ताकि उनका बोझ कम हो और उत्पादकता बढ़े।

आगे क्या है राह?

बिहार की खेती के पुनर्जनन का अर्थव्यवस्था पर असर साफ दिखता है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। नीतियों पर लगातार ध्यान, बाजार के साथ बेहतर एकीकरण और जमीनी स्तर पर नवाचार के समर्थन से बिहार की खेती की यह चुपके से चल रही कहानी देश की सबसे प्रभावशाली विकास गाथाओं में से एक बन सकती है।

First Published : October 6, 2025 | 6:18 PM IST