मध्य प्रदेश से अलग होकर बना छत्तीसगढ़ एक खनिज-समृद्ध प्रदेश है लेकिन सामाजिक रूप से काफी पिछड़ा है। इसे मध्य प्रदेश से अलग कर नया प्रदेश बनाने की मांग लंबे समय से चली आ रही थी। अंतत: मध्य प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के माध्यम से तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 1 नवंबर, 2000 को इसे मंजूरी दे दी।
गठन के समय यहां 16 जिले, 11 लोक सभा और पांच राज्य सभा सीटें तथा 90 विधान सभा क्षेत्र बनाए गए। प्रदेश की लगभग एक तिहाई आबादी आदिवासी समुदायों से ताल्लुक रखती है, उसी के मद्देनजर 34 विधान सभा सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित की गईं। लेकिन परिसीमन के बाद इनकी संख्या 29 रह गई और 10 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए निर्धारित की गईं। पिछले ढाई दशक में जिलों की संख्या भी 33 तक पहुंच गई है।
राजनीतिक रूप से छत्तीसगढ़ कांग्रेस और भाजपा दोनों के प्रभुत्व वाला प्रदेश है और यहां इन्हीं दोनों दलों के बीच सत्ता बदलती रही है। रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा के 15 वर्षों के शासन के बाद 2018 में कांग्रेस सत्ता में लौटी और उसकी तरफ से भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बनाए गए। वर्ष 2023 के विधान सभा चुनाव में पुन: भाजपा ने सत्ता वापस पा ली और विष्णु देव साय को मुख्यमंत्री बनाया।
इन 25 वर्षों के दौरान छत्तीसगढ़ आर्थिक रूप से सक्रिय राज्य के रूप में विकसित हुआ है। यहां जन कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ सरकार औद्योगिक और खनन-आधारित अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा रही है। खास बात यह कि भले सरकार बदली लेकिन नीतियों में निरंतरता बनी रही। इसमें समाज कल्याण पर खर्च, ग्रामीण विकास और इन्फ्रा पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जबकि अपने वित्तीय आधार को मजबूत करने के लिए प्राकृतिक संपदा का दोहन कर उसका लाभ उठाया गया है।
छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था में लचीलापन और निर्भरता दोनों की झलक देखने को मिलती है। यहां 2000-01 में वृद्धि दर -5.2 प्रतिशत के स्तर पर थी लेकिन उसके बाद के वर्षों में मजबूत वृद्धि दर्ज की और कई अवसरों पर यह दोहरे अंकों तक भी पहुंची। साल 2024-25 में छत्तीसगढ़ की विकास दर 10.9 प्रतिशत दर्ज की गई थी, जो राष्ट्रीय स्तर 6.5 प्रतिशत से काफी अधिक है।
नैशनल सकल घरेलू उत्पाद में इसकी हिस्सेदारी लगभग 1.7 प्रतिशत बनी हुई है, जो इसे 18वीं सबसे बड़ी राज्य अर्थव्यवस्था बनाती है। लेकिन इसका वित्तीय आइना कहीं अधिक जटिल तस्वीर दिखाता है। राज्य का वित्तीय घाटा 2016-17 में जीएसडीपी के -1.6 प्रतिशत से बढ़कर 2025-26 में अनुमानित -3.8 प्रतिशत हो गया, जबकि ऋण-से-जीएसडीपी अनुपात एक दशक पहले के 14.5 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 30 प्रतिशत पहुंच गया। राज्य का अपना कर राजस्व, प्राप्तियों का लगभग 38 प्रतिशत है, जो खर्च प्रतिबद्धताओं के बढ़ने के बावजूद सीमित कर आधार को दर्शाता है। सकारात्मक पक्ष यह भी है कि पूंजी परिव्यय कुल व्यय का लगभग 15 प्रतिशत तक बढ़ गया है, जो मजबूत निवेश लहर को दर्शाता है। कोविड महामारी के वर्षों के दौरान नकारात्मक रहने वाला राजस्व संतुलन अब धीरे-धीरे बेहतर होने लगा है, जो सतर्क वित्तीय सुधारों का संकेत है।
सामाजिक मोर्चे पर छत्तीसगढ़ में कई क्षेत्रों में स्पष्ट प्रगति देखने को मिली है। यहां लिंग अनुपात 2017-18 में प्रति 1,000 पुरुषों पर 937 महिलाएं था जो 2023-24 में बढ़कर 991 हो गया है और यह राष्ट्रीय औसत से ऊपर है। इसी प्रकार महिला साक्षरता 72.5 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत 71.5 प्रतिशत से अधिक है। पुरुष साक्षरता दर 82.6 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत मामूली रूप से थोड़ा अधिक 84.4 प्रतिशत ही है। विशेष बात यह कि यहां बेरोजगारी दर भी 2.5 प्रतिशत के स्तर पर बनी हुई है जो देश के औसत से कम है, लेकिन अधिकांश रोजगार कृषि और अनौपचारिक क्षेत्रों से आता है।
राज्य में गरीबी भी धीरे-धीरे घट रही है और संपन्नता आ रही है। यहां गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का अनुपात 2015-16 में 29.9 प्रतिशत से घटकर 2019-21 में 16.37 प्रतिशत पर आ गया है। यही नहीं, गरीबी की तीव्रता भी मामूली रूप से 44.6 प्रतिशत से घटकर 42.6 प्रतिशत हो गई है। हालांकि छत्तीसगढ़ अभी भी बहुआयामी गरीबी में रहने वाली आबादी के उच्चतम अनुपात वाले राज्यों में सातवें नंबर पर है।
बीते 25 वर्षों के दौरान राज्य के विकास में जहां रिकॉर्ड निरंतरता देखने को मिली, वहीं कई बाधाएं भी इसके समक्ष आई हैं। इसकी अर्थव्यवस्था काफी मजबूत है और वित्तीय स्थिति शुरुआती दौर की तुलना में कहीं अधिक सुव्यवस्थित है। सामाजिक संकेतक भले लगातार बेहतर हुए हैं, लेकिन असमान क्षेत्रीय विकास और अमीर-गरीब के बीच की फैलती खाई इसकी प्रगति की राह में बड़ी चुनौती है।