facebookmetapixel
भारत को AI में विश्व नेता बनाना है, लेकिन सहानुभूति भी जरूरी: Mukesh AmbaniEpstein Files: बड़े नाम गायब क्यों, जेफरी एपस्टीन की असली कहानी कब सामने आएगी?दिल्ली एयरपोर्ट पर लो-विजिबिलिटी अलर्ट, इंडिगो ने उड़ानों को लेकर जारी की चेतावनीFD Rates: दिसंबर में एफडी रेट्स 5% से 8% तक, जानें कौन दे रहा सबसे ज्यादा ब्याजट्रंप प्रशासन की कड़ी जांच के बीच गूगल कर्मचारियों को मिली यात्रा चेतावनीभारत और EU पर अमेरिका की नाराजगी, 2026 तक लटक सकता है ट्रेड डील का मामलाIndiGo यात्रियों को देगा मुआवजा, 26 दिसंबर से शुरू होगा भुगतानटेस्ला के सीईओ Elon Musk की करोड़ों की जीत, डेलावेयर कोर्ट ने बहाल किया 55 बिलियन डॉलर का पैकेजत्योहारी सीजन में दोपहिया वाहनों की बिक्री चमकी, ग्रामीण बाजार ने बढ़ाई रफ्तारGlobalLogic का एआई प्रयोग सफल, 50% पीओसी सीधे उत्पादन में

जीवन बीमा पॉलिसी बंद करने की चुकानी होती है बड़ी कीमत

Last Updated- December 11, 2022 | 8:46 PM IST

भारत में 2020-21 के बीमा के आंकड़ों पर प्रकाशित लघु पुस्तिका के मुताबिक जीवन बीमा उद्योग में निरंतरता अनुपात लगातार नीचे बना हुआ है। उद्योग में वित्त वर्ष 2020-21 में 61 महीने का निरंतरता का औसत आंकड़ा 39.4 फीसदी रहा। यह आंकड़ा वर्ष 2016-17 से 30 से 40 फीसदी के बीच ही बना हुआ है।
निरंतरता अनुपात हमें बताता है कि बीमा कंपनियों की कितनी प्रतिशत पॉलिसी एक निश्चित समयावधि, माना कि एक, तीन, चार या पांच साल बाद भी चालू हैं। किसी भी बीमा कंपनी को चुनने से पहले इस आंकड़े को देखा जाना चाहिए। संतुष्ट ग्राहक किसी बीमा कंपनी से लंबे समय तक जुड़े रहते हैं।

निम्न निरंतरता की वजह
जीवन बीमा उद्योग के निम्न निरंतरता के आंकड़ों के लिए कई वजह जिम्मेदार हैं। इनमें से एक यह है कि बीमा काफी जटिल योजना है। मैक्स लाइफ इश्योरेंस के निदेशक और मुख्य परिचालन अधिकारी मनु लावण्य ने कहा, ‘निरंतरता की चुनौती की एक बड़ी वजह यह है कि लोग पॉलिसी से अपनी उम्मीदों की स्पष्ट समझ के बिना ही इसे खरीद लेते हैं। क्या वे शुद्ध टर्म कवर लेना चाहते हैं या वे अपने बच्चे के भविष्य की योजना के लिए बीमा एवं सह निवेश प्लान लेना चाहते हैं?’ जब अपना मकसद या पॉलिसी से पूरी होने वाली वित्तीय जरूरत को समझे बिना ही इसे खरीदा जाता है तो इससे बाद में निराशा मिलती है। उस समय ग्राहक ऐसी पॉलिसी का प्रीमियम भरना बंद कर देते हैं।
भ्रामक जानकारी देकर बिक्री करना भी एक अन्य प्रमुख वजह है। आम तौर पर ग्राहकों को भुगतान जिम्मेदारी के बारे में ठीक से बताए बिना ही पॉलिसी बेच दी जाती हैं। सिक्योर नाऊ इंश्योरेंस ब्रोकर के सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक कपिल मेहता ने कहा, ‘ग्राहक यह मान सकता है कि उसने एक बार प्रीमियम भरने वाली पॉलिसी खरीदी है। जब उसे पता चलता है कि उसे हर साल प्रीमियम का भुगतान करना होगा तो वह पॉलिसी को छोड़ देता है।’
कई बार ग्राहकों की उम्मीद का प्रतिफल गलत होता है। वे बीमा के साथ आने वाली निवेश योजना के प्रतिफल की तुलना म्युचुअल फंड जैसी किसी शुद्ध निवेश योजना से करते हैं। लेकिन दोनों का प्रतिफल एकसमान नहीं हो सकता क्योंकि प्रीमियम का एक हिस्सा मृत्यु शुल्क (बीमा कवर के लिए भुगतान) को पूरा करने में जाता है।
यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप) के मामले में कई बार ग्राहक बाजार की स्थिति के आधार पर लघु अवधि के फैसले लेते हैं। जब बाजार ऊपर होता है तो वे निवेश को बेचने का फैसला लेते हैं। ऐसे फैसले लंबी अवधि में हमेशा उनके हित में नहीं होने के आसार हैं। बहुत से यह मानकर चलते हैं कि उन्हें कभी दिक्कत नहीं होगी। जब वे वित्तीय दबाव में होते हैं तो ऐसे ग्राहक बीमा के प्रीमियम के वादे को आसानी से तोड़ देते हैं।
कुछ बीमा कंपनियों और योजनाओं के मामले में केवल सालाना भुगतान ही किया जा सकता है। इनमें छमाही, तिमाही या मासिक भुगतान की सुविधा नहीं मिलती है। हीरो इंश्योरेंस ब्रोकिंग के मुख्य कार्याधिकारी और मुख्य अधिकारी संजय राधाकृष्णन ने कहा, ‘जिन मामलों में ये विकल्प उपलब्ध नहीं हैं, उनमें बीमा कंपनियां पॉलिसीधारक के खाते में धन नहीं होने की वजह से कम निरंतरता दर्ज करती हैं।’
आम तौर पर ग्राहक कर बचत के लिए अंतिम मौके (31 मार्च की अंतिम तिथि से पहले) पर जीवन बीमा पॉलिसी खरीदते हैं। जब वे ऐसा करते हैं तो वे पॉलिसी की विशेषताओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं देते हैं। वे बाद में महसूस करते हैं कि उन्होंने गलत पॉलिसी खरीद ली और इसलिए उसे छोड़ देते हैं।
एक अन्य वजह यह है कि ग्राहक उस बैंक खाते को बदल देते है, जिससे वे अपने प्रीमियम का भुगतान करते हैं। राधाकृष्णन ने कहा, ‘लेकिन वे एनएसीएच फॉर्म को नहीं बदलते हैं। इसके नतीजतन नवीनीकरण प्रीमियम की मंजूरी नहीं मिलती है।’

निरंतरता सुधारे जाने के कदम
जीवन बीमा में ग्राहक हासिल करने की लागत अधिक है। कई साल प्रीमियम आने पर ही लागत की भरपाई होती है। निम्न निरंतरता अनुपात से बीमा कंपनी का अंतर्निहित मूल्य (भविष्य के नकदी प्रवाह का मौजूदा मूल्य) घटता है। इस वजह से बीमा कंपनियां यह सुनिश्चित करने के बहुत से कदम उठा रही हैं कि ग्राहक अपनी पॉलिसी परिपक्वता से पहले ही नहीं छोड़ें।
इन दिनों बीमा कंपनियां सही ग्राहक चुनने की कोशिश करती हैं। लावण्य ने कहा, ‘बीमा कंपनियां डेटा एनालिटिक्स की मदद से अपनी योजनाओं के लिए सही वित्तीय स्थिति वाले लोगों को चुनती हैं ताकि उनके ग्राहक लंबी अवधि की यह वित्तीय प्रतिबद्धता पूरी कर सकें।’ वे यह सुनिश्चित करने की कोशिश करती हैं कि ग्राहक खरीद के समय पॉलिसी के नियमों एवं शर्तों को समझें। वे ग्राफिक्स के साथ सरल लाभ चित्रांकन का इस्तेमाल करती हैं, जिन्हें समझना आसान है।
कंपनियां बीमा-पूर्व सत्यापन भी करती हैं कि ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ग्राहक चुकाए जाने वाले प्रीमियम, भुगतान की अवधि और योजना के लाभ जैसे पहलुओं को समझते हैं।
लावण्य ने कहा, ‘ग्राहक इस कॉल में पूछे जाने वाले सवालों का तभी जवाब दे पाएगा, जब वह अपनी खरीद को पूरी तरह समझता है। अगर उसे भ्रमित करके पॉलिसी बेची गई है तो वह सवालों के जवाब नहीं दे पाएगा।’ जब प्रीमियम का भुगतान होना है, उस समय बीमा कंपनियां ग्राहकों को याद दिलाती हैं और उनसे यह सुनिश्चित करने को कहती हैं कि जिस बैंक खाते से भुगतान होना है, उसमें पैसा उपलब्ध है। पिछले दो साल के दौरान जब ग्राहक कोविड की वजह से प्रीमियम का भुगतान नहीं कर पाए तो बहुत सी बीमा कंपनियों ने विलंब शुल्क माफ कर दिया।
बीमा कंपनियां ग्राहकों की खातिर अपनी प्रतिबद्धता पूरी करना आसान बनाने के लिए उन्हें सालाना प्रीमियम को तिमाही या मासिक प्रीमियम में बदलने का मौका देती हैं। कुछ पॉलिसी में ग्राहक प्रीमियम भुगतान से समायोजित करने के लिए पेड-अप एडीशन को सरेंडर कर सकता है। दूसरे शब्दों में वे प्रीमियम ऑफसेट का विकल्प चुन सकते हैं, जिसमें उन्हें प्रीमियम भुगतान से बोनस को समायोजित करने की मंजूरी मिलती है।
पॉलिसी बंद करने से नुकसान
किसी पॉलिसी को बंद करने का मुख्य नतीजा यह है कि आप बीमा कवर से वंचित हो जाते हैं। इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं, खास तौर पर किसी महामारी के दौरान। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस के ग्राहक अनुभव एवं परिचालन प्रमुख आशीष राव ने कहा, ‘किसी पॉलिसी को बंद करने का उस उद्देश्य एवं लक्ष्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है, जिसके लिए इसे खरीदा गया है। उदाहरण के लिए कुछ अप्रिय घटित होने पर आय का प्रतिस्थापन।’ अगर आप किसी पॉलिसी को वापस करते हैं तो बीमा कंपनी एक सरेंडर शुल्क लगाती है। मेहता ने कहा, ‘ये लागत काफी अधिक होती हैं।’ अगर पॉलिसी को वापस करने की कोई कीमत नहीं मिलती है तो आप तब तक चुकाया गया पूरी प्रीमियम गंवा देते हैं। लावण्य ने कहा, ‘ग्राहक बीमित राशि और बोनस भुगतान जैसे लाभ गंवा देते हैं।’
टर्म प्लान के मामले में जब ग्राहक पुरानी पॉलिसी को बंद करने के बाद नई खरीदता है तो उसे आम तौर पर ज्यादा प्रीमियम चुकाना होता है (क्योंकि तब उसकी उम्र ज्यादा होगी) राधाकृष्णन ने कहा, ‘निवेश एवं गारंटीशुदा आय योजनाओं के मामले में प्रतिफल पर बुरा असर है और जोखिम कवर में अहम कमी आती है।’
सही खरीद करें
किसी पॉलिसी को बंद नहीं होने देने के लिए सबसे अहम बात यह है कि आप ऐसी पॉलिसी खरीदें, जो आपकी जरूरतों के मुताबिक हो। तब आप प्रीमियम चुकाने के लिए उत्साहित रहेंगे और पॉलिसी को लंबे समय तक जारी रखेंगे। इसके लिए जरूरी है कि आप पॉलिसी खरीदते समय ठीक से उसके बारे में जांच-पड़ताल करें।
अपनी जांच-पड़ताल करें और बाजार में उपलब्ध पॉलिसी से तुलना करें। आजकल आप काफी जांच-पड़ताल ऑनलाइन – बीमा कंपनियों की वेबसाइट या एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म के जरिये कर सकते हैं। राव ने कहा, ‘हमारा डिजिटल प्लेटफॉर्म पॉलिसी का ग्राहकों की जरूरतों से मिलान करने में मदद देता है।’ इस जांच-पड़ताल से आपकी बीमा योजनाओं की समझ बढ़ेगी और आप सही पॉलिसी खरीदने में सक्षम बनेंगे। यह सुनिश्चित करें कि आप जिस बीमा कंपनी से पॉलिसी खरीदते हैं, उसका अहम मानकों पर स्कोर ऊंचा हो। राव ने कहा, ‘कोई पॉलिसी खरीदने से पहले दावा निपटान अनुपात और दावों के निपटाने में लिए गए औसत समय का आकलन करें।’ खरीद का फैसला जल्दबाजी में न लें। विक्रेता के पास बैठें और लाभों को को ठीक से समझें। वे पॉलिसी बंद करने की कीमत बताएंगे और बेहतर विकल्प सुझाएंगे।

First Published - March 13, 2022 | 11:30 PM IST

संबंधित पोस्ट