सीएलएसए में इक्विटी स्ट्रैटेजिस्ट क्रिस्टोफर वुड उन कुछ लोगों में से हैं जिन्होंने वर्ष 2005 में ही सही सही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि सब-प्राइम ऋण बाजार धराशायी हो जाएगा और दुनिया वित्तीय संकट से घिर जाएगी।
अब वुड की निगाहें अमेरिकी डॉलर की ओर हैं जिसके बारे में उन्हें लगता है कि यह मुद्रा विश्व की सबसे शक्तिशाली मुद्रा नहीं रह जाएगी। उन्हें लगता है कि मौजूदा समय में सोने में निवेश किया जाना चाहिए और यह कच्चे तेल में निवेश से भी बेहतर साबित होगा।
धीरेन शाह और जितेंद्र कुमार गुप्ता को दिए गए साक्षात्कार में वुड ने बाजारों को संकट से उबारने के लिए बेलआउट पैकेजों के असर, भारत के प्रस्तावित बुनियादी संरचना कोष की कारगरता और उन क्षेत्रों की चर्चा की जहां निवेश किया जा सकता है। पेश हैं इस साक्षात्कार के मुख्य अंश:
आपको क्या लगता है सिटीग्रुप को संकट से उबारने के लिए जिस बेलआउट पैकेज की घोषणा की गई है, उससे आने वाले समय में क्या प्रभाव पड़ेगा?
सिटीग्रुप को लेकर सरकार ने जो कदम उठाया, वह बहुत सही नहीं लगता है। अगर सरकार बैंक को बचाने के लिए करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल कर रही है तो फिर उसे बैंक का राष्ट्रीयकरण करना चाहिए।
वैसा ही जैसा 1990 के शुरुआत में स्वीडन के बैंक को बचाने के लिए किया गया था। अगर करदाताओं का पैसा बैंक में लग रहा है तो उन्हें इसमें 100 फीसदी हिस्सेदारी भी मिलनी चाहिए।
अगर आप करदाताओं का पैसा भी लगा रहे हैं और प्रबंधन भी दूसरे लोगों के हाथ में सौंप रहे हैं तो इससे गलत संदेश जाते हैं।
क्या आपको लगता है कि मॉर्गेज संकट का असर धीरेधीरे ऋण और रिटेल बाजार पर भी पड़ने लगा है।
इसे आप चाह कर भी रोक नहीं सकते हैं। जैसे जैसे अर्थव्यवस्था में विकास की दर सुस्त होगी, ऐसा तो होगा ही। पर मॉर्गेज बाजार क्रेडिट कार्ड बाजार से काफी बड़ा है।
अंतरराष्ट्रीय रियल एस्टेट बाजार और उपभोक्ता खर्च का हाल तो आने वाले दिनों में और बिगड़ सकता है।
अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों में ‘ऋण मुद्रा अवस्थिति का गुब्बारा’ फूट सकता है।
1930 के समय में जैसा वित्तीय संकट देखा गया था इस बार भी हाल कुछ ऐसे ही दिख रहे हैं। इस वित्तीय मंदी से निपटने में कितना समय लगेगा?
यह काफी हद तक नीति निर्माताओं के उठाए गए कदमों पर निर्भर करेगा। अगर नीति निर्माता संस्थाओं की चिंता नहीं करते हैं और उन्हें धराशायी होने देते हैं तो अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता हो सकती है।
ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था में वी के आकार की गति देखी जाएगी, यानी पूरी तरह से गिरने के बाद उसमें सुधार आएगा।
पर अगर अमेरिकी नीति निर्माता और बेलआउट पैकेजों के बारे में सोचते हैं और आक्रामक मॉर्गेज नीतियां अपनाते हैं तो ऐसी स्थिति में हालात कुछ काबू में रह सकते हैं और अर्थव्यवस्था में एल आकार में वापसी दिखेगी।
तो इस मंदी से निपटने में कितना समय लगेगा यह तो नीति निर्माताओं पर निर्भर करता है।
भारत ने बुनियादी क्षेत्र की परियोजनाओं के विकास के लिए ऋण उपलब्ध कराने हेतु 50,000 करोड़ रुपये का फंड बनाने का प्रस्ताव रखा है। इस बारे में आपकी क्या राय है?
मुझे यह ठीक-ठीक समझ में नहीं आ रहा कि भारत इन परियोजनाओं के लिए फंड कैसे इकट्ठा करेगा? भारत और चीन में जो मूल अंतर है,
वह यह है कि चीन में वित्तीय परिचालन की पूरी छूट है। पर भारत के लिए समस्या यह है कि पिछले पांच सालों में अर्थव्यवस्था में जो तेजी देखी गई, उसे सरकार ने संभावना के तौर पर नहीं देखा। भारत चाहता तो वह अर्थव्यवस्था में इस तेजी का इस्तेमाल कर अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत कर सकता था।
अगर भारत में बुनियादी कार्यक्रमों को चलाना है तो इसके लिए बिल्ट-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओओटी) योजना सही रहेगी। भारत में कई सफल उदाहरण हैं। दुनिया भर में ब्याज दरें घट रही हैं और भारत में भी ऐसा होगा।
आरबीआई से किस तरीके की मौद्रिक नीति अपनाने की अपेक्षा है?
आरबीआई और चीन का केंद्रीय बैंक ही दो ऐसे केंद्रीय बैंक हैं जिन्होंने 2004 में मौद्रिक नीतियों को सख्त किया था। इस वजह से अब इनके पास मौद्रिक नीतियों में छूट देने की अच्छी संभावना है।
तेल की कीमतों में सुधार आने की वजह से अब आरबीआई के पास ब्याज दरों में कटौती का विकल्प है।
सोने के बारे में आपकी क्या राय है?
हर किसी के पास थोड़ा बहुत सोना होना चाहिए। मेरा मानना है कि वर्ष 2010 के अंत तक सोना प्रति औंस 3500 डॉलर के स्तर को छुएगा।
आपकी राय में भारत में किन क्षेत्रों में निवेश करना बेहतर रहेगा?
निवेशकों को शेयर बाजार में पैसा तभी लगाना चाहिए जब वे 6 महीनों तक बाजार में आए उतार-चढ़ाव के बारे में सोचें। अगले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में चुनाव खत्म हो जाने के बाद ही भारत में भारी निवेश की संभावना है।
अगर आने वाले पांच सालों के बारे में सोच कर चलें तो मैं भारत में बैंक और बुनियादी क्षेत्र में निवेश का चुनूंगा। और अगर बैंकों की बात करें तो निजी बैंकों की तुलना में सरकारी बैंक अधिक सस्ते हैं। भारत में मेरी पसंद भारतीय स्टेट बैंक है।