भारतीय शेयर बाजार में पैसा झोंकने वाले दो बड़े दिग्गज हैं, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई)और घरेलू म्युचुअल फंड लेकिन बाजार में पैसा लगाने का दोनों का तरीका बिलकुल अलग होता है।
पैसा लगाने के लिए दोनों की टाइमिंग भी फर्क होती है, तभी ऐसा होता है कि एक ही दिन में एफआईआई अरबों की बिकवाली करते हैं और घरेलू म्युचुअल फंड उसी दिन अरबों की खरीदारी कर रहे होते हैं।इन दोनों के निवेश के तरीके पर गौर करें तो पता चलता है कि जैसे ही बाजार पीक पर यानी खासी ऊंचाई पर पहुंचता है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में मंदी रहती है तो एफआईआई तुरंत बिकवाली करने लगते हैं जबकि घरेलू म्युचुअल फंड तब तक खरीदारी करते रहते हैं जब तक उन्हें गिरावट के साथ बाजार के वैल्युएशंस अच्छे लगते हैं।
इसी तरह फिर जब बाजार बॉटम पर पहुंचने लगता है तो एफआईआई ही सबसे पहले बाजार में कूदकर खरीदारी शुरू करने लगते हैं। लेकिन ऐसे में म्युचुअल फंड करेक्शन के बाद रिडेम्पशन के दबाव में बिकवाली करते नजर आते हैं। म्युचुअल फंडों को रिडेम्पशन का दबाव तभी महसूस होता है जब बाजार काफी गिर चुका होता है और ऐसे में इन फंडों के पास कोई और चारा भी नहीं होता।
इस महीने के पहले आठ कारोबारी दिनों में जब बाजार अपने सबसे ऊंचे सस्तर से 600 अंक नीचे 16,000 के आसपास स्थिर हो रहा था, तब ये फंड आठ में से छह दिन बिकवाल थे। इन छह दिनों में फंडों ने 1811 करोड़ की शुध्द बिकवाली की जबकि बाकी के दो दिनों में उन्होने 654 करोड़ रुपए की शुध्द खरीदारी की। मई-जून 2006 की गिरावट के समय भी सबसे पहले बिकवाली करने वालों में एफआईआई ही थे और उस दौरान उन्होने 11,558 करोड़ की शुध्द बिकवाली की थी, और उसी समय म्युचुअल फंडों ने 7700 करोड़ की शुध्द खरीदारी की।
मई 10 से जून 14 2006 के बीच सेंसेक्स में 36 फीसदी का करेक्शन आया था। जून में जब करेक्शन खत्म होने लगा तो एफआईआई ने 716 करोड़ की खरीदारी कर डाली थी जबकि केवल जून में ही घरेलू फंडों ने 1957 करोड़ की बिकवाली की थी।इस बार भी बाजार में 8 जनवरी के बाद (सेंसेक्स 20,873 पर था) करेक्शन आना शुरू हुआ था, इसके एक हफ्ते बाद अमेरिकी सब प्राइम का दबाव बढ़ने के साथ ही एफआईआई ने भारतीय बाजारों में मुनाफावसूली शुरू कर दी थी।
जनवरी 16 से 31 2008 के बीच इन विदेशी निवेशकों ने 19,489 करोड़ के शेयर बेच डाले, फरवरी में भी उन्होने 4051 करोड़ के शेयर बेचे और इस दौरान सेंसेक्स जनवरी में 2600 और फरवरी में 1000 अंक टूट चुका था। जबकि इस दौरान कैश में बैठे घरेलू फंडों ने दिसंबर, जनवरी और फरवरी में कुल 19,000 करोड़ की खरीदारी कर डाली थी। सेंसेक्स जनवरी 15 से मार्च 5 के बीच 4300 अंक फिसला है और इसी दौरान घरेलू फंड्स ने 5300 करोड़ के शेयर खरीदे हैं।
वाइसइंवेस्टर के सीईओ हेमंत रुस्तगी के मुताबिक ज्यादातर निवेशक म्युचुअल फंडों को स्टॉक की तरह समझते हैं इसीलिए जब बाजार चढ़ता है तो निवेशक म्युचुअल फंडों में पैसा लगाते हैं और जब गिरता है तो पैसा निकालने लगते हैं।