प्रत्येक सूचना प्रौद्योगिकी विश्लेषक इन्फोसिस के परिणामों और संकेत को बेंचमार्क के तौर पर उपयोग में लाते हैं।
एक तरफ जहां साल 2008-09 के परिणाम एक हद तक अनुमानों के अनुरूप थे वहीं साल 2009-10 के संकेत उम्मीद से कहीं नीचे थे। सूचना प्रौद्योगिकी की इस बड़ी कंपनी ने कहा कि डॉलर की दृष्टि से अगले साल टॉपलाइन में कमी आएगी। अगर डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर बना रहता है तो संभव है कि रुपये में प्राप्त होने वाला लाभ सकारात्मक हो।
इस संकेत को देखते हुए यादा आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए क्योंकि 2008-09 की चौथी तिमाही से डॉलर में होने वाले लाभ में भी दो प्रतिशत की कमी आई। इन्फोसिस के एडीआर में तुरंत ही 9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई और कई सत्रों के दौरान शेयर की कीमतों में भी कमी देखी गई।
समूचे आईटी उद्योग पर पड़ने वाले प्रभाव को सीएनएक्सआईटी सूचकांक में आई गिरावट के तौर पर आंका जा सकता है। यह गिरावट वैसे समय में दर्ज की गई है जब अधिकांश क्षेत्रों में मजबूती आई। प्रत्येक आईटी कंपनी को साल 2009-10 में कठिन दौर से गुजरना पड़ सकता है। कमजोर खिलाड़ी सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
उत्तर अमेरिकी बाजार में मांग का पूरी तरह से घट जाना सबसे बड़ी समस्या है। लेकिन जापान और यूरोपियन यूनियन भी मंदी की दौर से गुजर रहा है और एशियाई बाजार की मांग में यादा बढ़त के आसार कम हैं। इस धुंधली तस्वीर को देखते हुए यह तय करना कठिन है कि क्या टेक महिन्द्रा ने सत्यम (एससीएस)को सही कीमतों पर खरीदा है।
एक तरफ जहां टेक महिंद्रा और एससीएस के बीच सहयोगिता है वहीं एससीएस की जटिल वित्तीय और कानूनी समस्याओं के निपटने में सालों लग सकते हैं। निकट भविष्य में इस खरीदारी के लिए फंड जुटाने का दबाव टेक महिन्द्रा पर हो सकता है।
विलय और अधिग्रहण जैसी परिस्थितियों में कारोबारियों के लिए एक साधारण सा नियम काम करता है: खरीदारों को छांटिए और खरीदी जाने वाली कंपनी के शेयरों की खरीदारी कीजिए। हालांकि, टेक महिंद्रा की पेशकश पहले ही एससीएस के लिए अच्छी है लेकिन यह एक व्यावहारिक नीति नहीं रही।
टेक महिन्द्रा के शेयरों की बिकवाली अभी भी हो सकती है लेकिन यह केवल अनुपातों का मामला है क्योंकि समूचा आईटी उद्योग अभी मंदी की चपेट में नजर आ रहा है। एक उद्योग के रूप में आईटी वैश्विक अर्थव्यवस्था और खास तौर से अमेरिकी अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ है।
वर्तमान परिस्थितियों में वैश्विक जीडीपी में अगले साल निष्क्रियता के आसार हैं और आईटी का भविष्य उावल नजर नहीं आता। आईटी उद्योग में अधिकांश के पास पर्याप्त नकदी है। इस कारण वे मंदी के भंवर से आसानी से निकल सकते हैं। लेकिन अधिकांश कंपनियों और सेक्टर के ग्रोथ के लक्ष्य पूरे नहीं हो पाने के आसार हैं।
कुछ आईटी कंपनियां वर्तमान कारोबार में अपनी बाजार हिस्सेदारी विलय या अधिग्रहण या फिर प्रतिस्पध्र्दा से बढ़ा कर वजूद बनाए रख सकते हैं। लेकिन, कुल मिला कर उद्योग को नए बाजार की तलाश करनी होगा वह भी ऐसी परिस्थिति में जो अनुकूल नहीं है। भारतीय आईटी उद्योग के लिए अभी भी कुछ ऐसे अवसर है जिन्हें खंगाला नहीं गया है।
किसी भी भारतीय कंपनी ने उत्पादों के मामले में अपनी पैठ नहीं बनाई है। भारत सरकार द्वारा इन्फोटेक को बढ़ावा दिए जाने की संभावना अधिक है। भारतीय आईटी कंपनियों की पहुंच यूरोपियन यूनियन और जापान के बाजारों में कम है और देश में बढ़ती उपस्थिति को देखते हुए भारतीय कंपनियां चीन के बाजार से लाभ कमाने में सक्षम हैं।
जैसी की परिस्थितियां हैं वैसे में वर्तमान मूल्यांकन भी बढ़े-चढ़े नजर आते हैं। साल 2000 की शुरुआत में जब आईटी बूम चरम पर था, सीएनएक्सआईटी का कारोबार औसत प्राइस-अर्निंग से 250 से अधिक पर किया जा रहा था जो वैसे उद्योग के लिए काफी कम खर्चीला था जो सालाना 60 प्रतिशत की प्रति शेयर आय अर्जित कर रहा था।
फिलहाल इस श्रेणी के शेयरों का कारोबार प्राइस-अर्निंग 12 पर हो रहा है लेकिन यह अभी भी खर्चीला नजर आता है। हो सकता है आने वाले साल के दौरान यह ऋणात्मक प्रतिफल दे। साल 2010-11 तक फिर से इन शेयरों में तेजी की वापसी हो सकती है।
