देश में बढ़ते विदेशी मुद्रा के प्रवाह को लेकर वित्त मंत्रालय इस बजट में भी खासा सतर्क नजर आया है। लिहाजा इसके मद्देनजर जारी होने वाले मार्केट स्टैबलाइजेशन बॉन्ड (एमएसएस) के लिए अगले साल (2008-09)में जारी होने वाली रकम में उसने काफी बढ़ोतरी कर दी है। इसके तहत 2008-09 में उसने 2,55,806 करोड़ का प्रावधान रखा है जबकि 2007-08 में यह राशि 1,41,135 करोड़ ही थी।
पिछले कुछ सालों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) और कंपनियों द्वारा विदेशों से कर्ज लेने में काफी तेजी आई है। एशिया प्रशांत के स्टैंडर्ड एंड पुअर के प्रमुख अर्थशास्त्री सुबीर गोकर्ण के मुताबिक, एमएसएस के लिए होने वाली यह बजटीय बढ़ोतरी से साफ है कि सरकार विदेशी पूंजी के प्रवाह और रुपए में होने वाली बढ़ोतरी के मसलों को लेकर गंभीर है।
एमएसएस की कुल बकाया राशि फिलहाल 2,50,000 करोड़ है जबकि सीलिंग पर पुनर्विचार के लिए 2,35,000 करोड़ का मानक तय किया गया था। 2007-08 की शुरुआत में ही एक लाख करोड़ से भी कम की सीलिंग थी, जो कि इसी साल ही चार बार बदली गई। 22 फरवरी तक एमएसएस बॉन्ड की बकाया राशि 1,76,018 करोड़ थी।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने अगस्त 2007 में विदेशों से लेने वाले कर्ज के इस्तेमाल को लेकर कुछ पाबंदियां लगा दी थीं, जिससे कि पूंजी के प्रवाह पर निगरानी रखी जा सके। हालांकि इसके चलते मौद्रिक प्रबंधन में मुश्किलें बढ़ गई थीं। रुपए में आ रही मजबूती और उसकी तरलता के चलते रिजर्व बैंक पर विदेशी मुद्रा के प्रवाह पर कड़ी निगरानी की अहम जिम्मेदारी आ गई थी। इस कारण 20 मिलियन डॉलर से ऊपर के विदेशी कर्ज पर पाबंदी लगा दी गई थी।
मौजूदा वित्तीय वर्ष की अंतिम छमाही में सकल विदेशी वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) 81.1 फीसदी बढ़कर 14 अरब डॉलर पहुंच गई। डिपॉजिटरी रिसीप्ट्स और निवेशों को अगर मिला दिया जाए तो एफआईआई द्वारा भारत में आने वाला कुल विदेशी प्रवाह 2006-07 के समूचे वित्तीय वर्ष के 7 अरब डॉलर की बनिस्बत अप्रैल-दिसंबर 2007 में उछाल मारकर 32.8 अरब डॉलर पर पहुंच गया।
