बीमा क्षेत्र में डीटैरिफिंग ने छोटे ब्रोकरों की आय के रास्ते में गङ्ढा खोद दिया है। एक कमरे के दफ्तर और कम लोगों की टीम वाले ब्रोकरों की संख्या में बहुत इजाफा हुआ है।
ऐसे ब्रोकर पहले तो कॉरपोरेट बीमाधारकों पर अपनी नजर गढ़ाए रहते थे, जबकि आज वे अपने स्वास्थ्य और जीवन बीमा बेचने के लिए रिटेल ग्राहकों की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं, जिससे आय के इस रोड़े को अपने रास्ते से हटा सकें। विशेषज्ञों की भविष्यवाणी है कि बहुत जल्द बीमा ब्रोकिंग उद्योग में एकीकरण की लहर उठेगी, जिसमें बड़े ब्रोकर छोटे ब्रोकरों का अधिग्रहण करेंगे। उल्लेखनीय है कि फिलहाल पंजीकृत डायरेक्ट और कम्पोजिट ब्रोकरों की संख्या 268 है।
डीटैरिफिंग के चलते बीमा कंपनियों में कीमत की जंग चल रही है। अब उन्हें किसी भी पहले से चले आ रहे प्रचलन का अनुसरण करने की कोई जरूरत नहीं है।परिणामस्वरूप, प्रीयियम की दरें 60-70 प्रतिशत तक नीचे गिर गई हैं। जबकि कॉरपोरेट ग्राहक अब बीमा सुरक्षा और भी सस्ते में पा रहे हैं, इससे बीमा एजेंटों को प्रीमियम पर मिलने वाली कमिशन पर इसका असर पड़ा है।
बड़ी बीमा कंपनियों पर इसका कुछ खास असर नहीं होता, लेकिन छोटे ब्रोकरों को नुकसान के दर्द से गुजरना ही पड़ेगा। गैर-जीवन बीमा उद्योग में 75 प्रतिशत हिस्सा आग, इंजीनियरिंग और मोटर रक्षा बीमा है, जिन्हें दिसंबर 2006 में डीटैरिफाई किया गया था।
बदलते आयामों ने छोटे ब्रोकरों की पहचान को खतरे में डाल दिया है और आने वाले समय में भविष्यवाणी के पिटारे में से एकीकरण के सांप को आगाज किया है। इंडिया इंश्योर रिस्क मैनेजमेंट सर्विस के प्रबंध निदेशक वी रामाकृष्णन का कहना है, ‘इस तरह की भविष्यवाणियों के पीछे प्रीमियम दरों में हो रही जबर्दस्त गिरावट है, जबकि इन दरों को समान रहना चहिए। बिना मुनाफे के छोटे ब्रोकर तो वैसे ही खत्म हो जाएंगे। प्रीमियम दरों में 70 प्रतिशत तक की गिरावट के बाद औसत कमिशन 30 रुपये पर 7 प्रतिशत की बजाए 100 रुपये पर 7 प्रतिशत हो चुकी है।’
उद्योग का मानना है कि डीटैरिफिंग से बड़े ब्रोकरों, जैसे कि ऐयॉन ग्लोबल, मार्श और विल्लीज बीए अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। क्योंकि इनके पास संसाधन, वैश्विक नेटवर्क, अनुभव, निपुण टीम और जोखिम प्रबंधन सेवाएं हैं। ये कंपनियां डीटैरिफिंग का असर खत्म करने के लिए बड़ा निवेश करती हैं। एक प्रमुख ब्रोकिंग कंपनी के प्रबंध निदेशक का कहना है, ‘एकीकरण एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो अन्य बाजारों यहां तक कि ब्रिटेन में भी हो रही है।
अगर आप ऐयॉन पर नजर डालें तो यह भी कई ब्रोकिंग कंपनियों का मिश्रण है। भारत में, कुछ मुट्ठीभर ब्रोकर ही जोखिम प्रबंधन और सलाहकार जैसी पूरी सेवाएं देते हैं। अन्य बहुत से ब्रोकर तो अभी भी बीमा मूल्य निर्धारण जैसे लेन-देन के सौदे ही करते हैं। मुझे लगता है, पॉलिसी प्रबंधन तंत्र, सूचना प्रौद्योगिकी वितरण क्षमताओं और विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि विमानन और विद्युत में विशेष जानकारी की अनुपलब्धता की वजह से कुछ ब्रोकरों को इस क्षेत्र में आने में मुश्किल हो सकती है। यह ब्रोकरों के एकीकरण और अधिग्रहण को अनिवार्य बना देगा।’
डीटैरिफिंग ने छोटे ब्रोकरों के लिए एक और मुसीबत पैदा कर दी है। निजी बीमा एजेंटों ने ओवर राइडिंग कमिशन (ओआरसी) देना छोड़ दिया है। अधिक व्यवसाय बटोरने पर मिलने वाले मुनाफे के चलते यह अनौपचारिक तौर पर कमिशन दी जाती थी, जो कि इरडा द्वारा निर्धारित कमिशन के अतिरिक्त थी।
छोटे और डरे हुए ब्रोकरों के लिए समय उनके हाथ से छुटा जा रहा है, जैसा कि रामाकृष्णन का मानना है, ‘1 अप्रैल 2008 को जब कॉरपोरेट का हिसाब-किताब नए सिरे से शुरू होगा, तब उन्हें पता चलेगा कि उनकी आय में कुछ भी वृध्दि नहीं हुई है और अब उनहें कारोबार में नई दिशाओं की ओर निकल जाना चाहिए। छोटे ब्रोकर जब तक नए ग्राहक ना बना लें और उनमें विस्तार कर लेते, उनकी आय पर हमेशा दबाव बना रहेगा।’