भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व वाली समिति ने वाणिज्यिक बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के बीच सह-ऋण (को-लेंडिंग) को प्रोत्साहन देने के लिए 18 फीसदी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) हटाने की सिफारिश की है। यह समिति वित्त मंत्रालय के निर्देश पर स्थापित की गई थी।
इस मामले के जानकार व्यक्ति ने बताया, ‘एसबीआई के नेतृत्व वाली सह-ऋण समिति ने वित्त मंत्रालय को रिपोर्ट सौंप दी है। इस समिति की सिफारिश है कि सह-ऋण गतिविधियों पर कोई जीएसटी नहीं लगाया जाना चाहिए। रिपोर्ट में यह सिफारिश भी की गई है कि सह-ऋण को सिर्फ प्राथमिकता वाले क्षेत्रों तक सीमित रखना चाहिए और इसका विस्तार अन्य क्षेत्रों में नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे ज्यादा जोखिम जुड़ा है।’
वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) ने मई 2024 में एसबीआई से सह-ऋण से संबंधित मसलों के समाधान के लिए एक समिति गठित करने के लिए कहा था। रिजर्व बैंक ने 2018 में सह-ऋण की इजाजत दी थी लेकिन यह ज्यादा परवान नहीं चढ़ पाया है। सह-ऋण से कृषि, सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) और आवास जैसे असुरक्षित तथा अल्पसेवा वाले क्षेत्रों में विशेषकर कर्ज प्रवाह बढ़ने की उम्मीद है। रिजर्व बैंक का लक्ष्य बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को इस तरह की अनुमति देकर हाशिये के लोगों को अधिक किफायती ऋण मुहैया करवाना है।
इससे पहले वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया था कि समिति यह जांच भी करेगी कि आखिर बैंक सह-ऋण देने में क्यों हिचकते हैं। इस समिति का नेतृत्व एसबीआई के उप प्रबंध निदेशक सुरेंद्र राणा ने किया। इस समिति में बैंकिंग क्षेत्र से पंजाब नैशनल बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के प्रतिनिधि मौजूद थे।
इसमें वित्त औद्योगिक विकास परिषद (एफआईडीसी) के अलावा एनबीएफसी के तीन प्रतिनिधि थे। वित्तीय सेवा विभाग इस रिपोर्ट के आधार पर सह-ऋण के बारे में दिशानिर्देश पेश करेगा। एनबीएफसी की प्रतिनिधि निकाय एफआईडीसी ने बीते वर्ष नवंबर में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड के चेयरपर्सन को भेजे पत्र में जीएसटी लगाए जाने के खिलाफ तर्क पेश किए थे। सूत्रों के मुताबिक इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि हर बैंक में सह-ऋण के लिए एक प्रतिबद्ध विभाग होना चाहिए। इस रिपोर्ट में बैंकों और एनबीएफसी के बीच साझा चैनल स्थापित करने की भी सिफारिश की गई है।