सैन्य नीतिकार अक्सर पिछले युध्दों को भविष्य में फिर से लड़ने की योजना बनाते हैं। इस क्रम में वे तकनीकी विकास और परिस्थितियों में हुए बदलावों को नजरंदाज कर देते हैं।
उदाहरण के लिए, फ्रांस ने सोचा कि मैजिनॉट लाइन की निश्चित सुरक्षा से उन्हें साल प्रथम विश्व युध्द जैसे 1940 की में लड़ाई मदद मिलेगी। उन्होंने हवाई ताकत और हथियारों के प्रभाव को नजरंदाज कर दिया साथ ही यह भूल गए कि सड़क प्रणाली बेहतर होने से सेना को अधिक तेजी से आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
नीति निर्माता और प्रबंधन के बारे में सोचने वाले भी बीती घटनाओं के आधार पर भविष्य के लिए योजना तैयार करने के मामले में दोषी होते हैं। जब वर्तमान परिस्थिति की तरह तार-तम्य नहीं रह जाता और इसे सामान्य घटनाओं की तरह लिया जाता है तो चक्रीय गिरावट को समाप्त किया जा सकता है।
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं और विभिन्न श्रेणियों के बीच का संबंध एक महत्वपूर्ण कारक है। ये सब चलते रहेंगे। सामान्य तौर पर निर्यातकों पर नकारात्मक प्रभाव पहले ही स्पष्ट हो गया है। खास प्रभाव सूचना प्रौद्योगिकीआईटीईएस क्षेत्र पर पड़ा है। तार-तम्य टूटने से प्रभावित होने वाला दूसरा क्षेत्र रियल एस्टेट है।
यह सही है कि रियल एस्टेट का निवेश और इसके ग्राहक दोनों घरेलू हैं। अधिकांश कंपनियां जरूरत से अधिक लाभ उठा चुकी हैं। इन कंपनियों ने साल 2004 से 2008 के बीच अपने विस्तार की शुरुआत की और बड़ी परियोजनाओं को संपन्न करने के लिए विदेशी पूंजी प्रवाह (अब अनुपलब्ध) की उम्मीद करने लगे।
अधिकांश के बैलेंस शीट की तस्वीर धुंधली थी क्योंकि कारोबार के लिए यह उस समय स्वाभाविक था। बीएसई के रियल्टी सूचकांक में अब तक के शीर्ष स्तर से लगभग 85 से 90 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है।
इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि प्रमुख रियल्टी कंपनियों जैसे डीएलएफ और यूनिटेक के लाभों में अक्टूबर से दिसंबर 2008 के बीच 70 से 95 प्रतिशत की कमी देखी गई है। देश भर में परियोजनाओं का काम रुकना इस बात का सबूत है कि रियल्टर्स किस प्रकार नकदी की कमी से जूझ रहे हैं।
वाणिज्यिक और आवासीय दोनों क्षेत्रों में जिस प्रकार के सौदों की पेशकश की जा रही है उससे लगता है कि मांग कितना कम हो चुकी है। कीमतों में 30 से 40 प्रतिशत की कमी हुई है।
मोटे तौर पर देखें तो कीमतें वापस साल 2004-05 के स्तर पर जाने की जरूरत है साथ ही जब तक मांग में फिर से तेजी नहीं आ जाती, ऋण दरों के भी उसी स्तर पर जाने की आवश्यकता पड़ सकती है।
इसका मतलब है कि होम लोन की दरों में लगभग 3 प्रतिशत की कमी और रियल एस्टेट की कीमतों में और 30 से 40 प्रतिशत की कटौती की जरूरत है। रियल्टर पर इसका प्रभाव क्या होगा इससे अलग हो कर देखें तो ऋणदाताओं के लिए समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। आम तौर पर सुरक्षित परिसंपत्ति का लगभग 70 से 80 फीसदी का ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
इसलिए, साल 2007 और 2008 में तब के मूल्यांकन के आधार रियल एस्टेट के लिए जो ऋण दिया गया उसकी समीक्षा करनी पड़ सकती है अगर कीमतों में 50 फीसदी या उससे अधिक की कमी होती है। साल 1980 में जब ऐसी ही परिस्थिति का सामना करना पड़ा था तो अमेरिका और ब्रिटेन में कीमतों में भारी गिरारवट देखी गई थी।
तथाकथित ‘सेविंग ऐंड लोन’ संकट के समय में अमेरिकी बैंकिंग उद्योग का लगभग सफाया हो चुका था। अपेक्षाकृत बड़ी ब्लैक इकॉनमी के कारण भारत इससे कुछ हद तक सुरक्षित है। उधार देने वालों के खाते में जो कीमत दर्शाई जाती है वास्तव में अधिकांश जमीन की कीमत उससे कहीं अधिक होती है।
लेकिन डीफॉल्ट बड़ने के आसार हैं और भारतीय विधि प्रणाली को देखते हुए प्रतिबंधात्मक कार्रवाई एक सपना ही होगी। रियल एस्टेट कंपनियों के साथ मूल्यांकन की समस्या भी मूलभूत है। पीऐंडएल खाते के चलन के आधार पर भविष्य के लाभों की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
रियल्टर की व्यवहार्यता उसके पास कितनी जमीन है उस पर निर्भर करती है। जमीन खरीदने की लागत की तुलना में जमीन पर बिल्डिंग बना कर विकसित करने की लागत में उतार-चढ़ाव कम आते हैं।
जो भी हो, लेकिन भारत का रियल एस्टेट उद्योग फिर से पहले जैसा कभी नहीं होगा। जब यह बेहद विस्तार की दशा में था तो इसे भारी संकट से गुजरना पड़ा है। जो कंपनियां इससे उबर जाएंगी वे नये और ज्यादा मजबूत कारोबारी मॉडल के साथ बाजार में आएंगी।
लेकिन, एक बाहरी व्यक्ति के लिए यह अनुमान लगाना काफी मुश्किल है कि कौन-कौन सी कंपनियां इस संकट के दौर से ठीक-ठाक निकल पाएंगी।