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पूर्वग्रह से बदलती निवेश धारणा

Last Updated- December 07, 2022 | 8:04 AM IST

पिछली बार मैने मूर्खों का सोना कॉलम में मैथ्यू मैक्कनी का जिक्र किया था। उस क्रम में हमें एक बहुत ही प्रतिभावान कलाकार अल पचीनों की कलाकारी भी देखने को मिली थी।


वह कलाकारी हमें यूनिवर्र्सल नाम की फिल्म में देखने को मिली जो खेल में लगने वाले सट्टे पर आधारित थी। कहने का मतलब यह है कि उस फि ल्म में फिल्माए गए दृश्यों में दोनों लोगों की अलग अलग प्रवृत्तियों के पूर्वग्रहों को बड़ी खूबसूरती से फिल्माया गया और दिखाया गया कि बाजी के नतीजों को लेकर किस कदर दोनों की अपनी-अपनी सोच है।

फिल्म में जहां एक ओर मैक्कनी एक पूर्वानुमान के साथ चलते हैं वहीं अल पचीनों पहले से विचारी और मनमानी इच्छा को नतीजे पर थोपते हुए कयास लगाने की कोशिश करते हैं। एक ही कहीनी के दो किरदार और दोनों के सोचने के अपने अपने तरीके। एक के पास सोचने का तार्किक तरीका,जबकि दूसरे के पास बेकार हरेक नतीजे पर सट्टा लगाते हुए कयास लगाना।

एक दूसरा खिलाड़ी

हमारे गुरुदेव ने बाजार के बारे में जो सबसे पहली बात बताई थी कि बाजार कोई जुए का घर नही है,लेकिन उसके बाद भी हम यह  कम ही जान पाए कि संभावना व्यक्त करने की जो विधा हम सीखते आए हैं, उसे हम बतौर प्रतिरूप खिलाड़ी के लिए सट्टे के रूप में काफी आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं।

समय के साथ साथ तस्वीर स्पष्ट होती चली जा रही है और अब क यास लगाने की विधा का आयाम काफी बड़ा हो गया है। अब इस विधा का मतलब सिर्फ इतना नहीं है कि पूंजी बाजार के हाईवे पर अनुमानित और गुणा भाग की हुई कार को सरपट दौड़ाना बल्कि इस कार को दौड़ाने वाले ड्राइवर का भी ख्याल रखना कि वह सही से कार ड्राइव कर रहा है या नहीं।

इस बारे में एक आर्थिक इतिहासकार पीटर बर्नस्टीन का कहना है कि कारोबार संबंधी फैसले लेने में दुनियाभर की हालत एक समान है। बिल्कुल उस तरह जैसे खेती और जोखिम का रिश्ता है। कहने का मतलब यह है कि जिस प्रकार खेती की दशा-दिशा मौसम पर निर्भर है और मौसम के आगे अभी भी सारे औजार बेअसर हैं,कारोबारी फैसलों के साथ भी बात कु छ ऐसी ही है। लेकिन 17 वीं और 18 वीं शताब्दी के बाद से बाजार की तस्वीर कुछ और ही बनती चली गई।

अब बाजार में एक दूसरे खिलाड़ी ने दस्तक दी। अब जोखिम मौसम के बजाए उस खिलाड़ी की ओर मुड़ पडा कि वह खिलाड़ी क्या कर रहा है। यह दूसरे खिलाड़ी का किया कराया होता है जो सिस्टम में न केवल जोखिम को लाता है,बल्कि बाजार की कार्यप्रणाली को बदलने का माद्दा रखता है। लिहाजा अगर जीत हासिल करनी है तो हमें इस खिलाड़ी की मनोदशा इसके पूर्वग्रह को समझना होगा।

पूर्वग्रह

पूर्वग्रह क्या है? इस सवाल का जवाब बेहद आसान है कि यह एक गलत लिया गया फैसला है, जिसमें तर्क की कोई जगह नही होती और यह वहां ज्यादा फलता फूलता है जहां वास्तविक पैसा यानी गाढ़ी कमाई लगी होती है। ऐसे भावुक मनोभाव किसी के अपने स्वतंत्र विचार नहीं होते बल्कि यह भीड़ मानसिकता से लबरेज होती है। इसका हमारे अपने अनुभवों से भी ताल्लुक होता है,यानी कि बाजार में किए जाने वाले निवेश के प्रति हमारा एप्रोच क्या है।

कहीं हमारा नजरिया काफी कड़ा तो नही है क्योंकि बाजार कभी भी दृढ़, अकड़पन वाले विचारों को बर्दाश्त नही करता। तब यहां एक सच और भी है कि पूर्वग्रह से अलग होना आसान भी नही है,क्योंकि हम अपने चारों तरफ होने वाली घटनाओं, मौजूद चीजों से प्रभावित होते हैं। लिहाजा, इतिहास को पढ़ना और उससे सबक लेना सबसे मुफीद तरीका है कि गलतियां दोहराने से बचा जा सकता है। मसलन फ्रेडरिक दो नाम के एक शक्की राजा की घटना इस बारे में बिल्कुल प्रासंगिक है कि उसने उस आंकड़े को लेने से मना कर दिया जिसे वह गणित की भाषा में साबित नहीं कर सकता था।

जबकि उन दिनों सारा यूरोप गणितीय बुद्धिमता और तार्किकता की कमी से जूझ रहा था। इसी का तकाजा था कि उस शक्की राजा के दरबार में लियोनार्दो को अपनी प्रतिभा साबित करने के लिए साक्षात्कार देना पड़ा था। जबकि वह जिस प्रतिभा का धनी आदमी था, इसे यूरोप समेत सारी दुनिया ने बाद में जाना।

एक दक्ष पूर्वग्रह

तेल की आग लगाती कीमतें 200 डॉलर प्रति बैरल को पार कर जाएंगी, सिटी और जीएम के लिए मुश्किलें बरकरार रहेंगी। संकट अभी आ रहा है जैसे विभिन्न प्रकार के कयास हैं जो हालिया दिनों में दक्ष लोगों ने लगाए हैं। इस संबंध में सबसे पहले और सबसे पते की बात यह है कि उन दक्ष लोगों के भी अपने पूर्वग्रह हैं और उनके कयास काफी देर से आए हुए प्रतीत हो रहें हैं। दूसरी बात यहां सिर्फ उन दक्ष लोगों के साथ नहीं है बल्कि हमारी नाकाबालियत की भी है जो असल चीज को परख पाने में नाकाम साबित होती हैं।

समय पर हमसे बार-बार चूक होती है और फैसले लेने वाली घड़ी में ही हम सारे अनुमान और सारी भविष्यवाणियां भुला बैठते हैं। इसके अलावा हम उन बातों पर भी गौर नही फरमाते कि जिन चीजों से हम अपरिचित हैं और हमारे लिए जरूरी हैं, उन्हें जानने की कोशिश हम करें। मसलन अगर हम ऑयल बुल के बारे में जानते हैं और अगर कोई ऑयल एक्सपर्ट यह कहे कि अब तेल की कीमतें अगर 200 डॉलर प्रति बैरल को पार कर जाएंगी या फिर इस कीमत को बरकरार रखेंगी तो यह हमें ज्यादा भरोसेमंद लगता है।

या फिर सारी दुनिया में वित्तीय क्षेत्र में मंदी जारी रहेगी और इसके पीछे सिटी बैंक की नकारात्मकता है तो यह बात भी सही बैठ सकती है लेकिन हम कभी भी यह जानने की कोशिश नहीं करते कि आखिरकार वजह क्या है? हम पहले से ही मन में बिठाई धारणा के साथ इसे बिठाने की कोशिश करते हैं।

हम इसे जानने की कोशिश क्यूं नहीं करते कि जब तेल 40 डॉलर प्रति बैरल पर था,तो उस समय ही क्यों नही इन विश्लेषकों ने इसकी भविष्यवाणी की कि तेल की कीमतें 200 डॉलर प्रति बैरल की हो जाएगी या फिर सिटी और जीएम के शेयर में उठापटक देखने को मिल सकती है। अब जबकि सिटी और जीएम के शेयर अपने तीन दशकों के भी सबसे कम कीमत पर हैं तो काफी आसानी से हम यह कह देते हैं कि इन दोनों के शेयर नकारात्मक ही रहेंगे।

स्थायी पूर्वग्रह

कारोबार के जरिए पैसा बनाना बच्चों का खेल नहीं है और मार्केट के दोनों सिरों पर कारोबार करना तो और भी मुश्किल है। जैसे,हम लोगों को कई तरह की परेशानियों से रू-ब-रू होना पड़ता है। मसलन निश्चतता, सकारात्मक पूर्वग्रह समेत समानता जैसे कई और मसले। इसी का तकाजा है कि ब्रोकरों की दुकान चल रही है।

खासकर,तब जब कारोबार मंदा होता है और तब जब बाजार में अनिश्चितता या फिर कारोबार काफी मजबूत स्थिति में होता है। लिहाजा,उन ब्रोकरों के प्रोफाइल का बाजार के चढ़ने से ताल्लुक रहता है न कि बाजार की मंदी से। इस प्रकार हममें ज्यादातर लोग स्थायी पूर्वग्रहों से ग्रस्त रहते हैं। कोई भी इसे चुनौती देने की जुर्रत नही करता है। इसे चक्रीय पूर्वग्रह भी कहते हैं कि अगर चीजें सही जा रही हैं तो सबकुछ सही रहेगा और अगर उठापटक का माहौल है, जैसे वैश्विक मंदी का तो फिर सब कुछ उसी दिशा में जाएगा। 

(लेखक ऑर्फेस कैपिटल्स के सीईओ हैं)

First Published - June 29, 2008 | 11:15 PM IST

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