निवेश को लेकर कई लोग कई तरह के विचार रखते हैं। वित्तीय सलाहकार सामान्य तौर पर म्युचुअल फंड के रास्ते निवेश की सलाह देते हैं जबकि बहुत सारे लोग बिना इस रास्ते के सीधे किसी कंपनी में निवेश करते हैं।
ऐसे लोग जो सीधे तौर पर कंपनी में निवेश करते हैं उनकेलिए कुछ बातों का ध्यान रखना निवेश के लिहाज से बेहतर माना जाता है। मिसाल के तौर पर अगर आप किसी कंपनी में सीधे निवेश करते हैं तो आपको उस कंपनी के पूंजी आधार (बैलेंस शीट) की जानकारी रखना आवश्यक होता है।
निवेश करने पहले पूंजी आधार के बारे में आवश्यक जानकारी प्राप्त करना एक आदर्श शुरुआत मानी जाती है। लेकिन अमूमन यह होता है कि निवेशक महज कुछ वित्तीय जानकारी पर ही निर्भर होकर निवेश करते हैं जो बाद में जाकर उनकेलिए नासूर बन जाती है।
पूंजी आधार का विश्लेषण करते वक्त इसमें कुछ प्रमुख बिन्दुओं पर नजर दौडाना सुरिक्षत निवेश केलिए अहम माना जाता है।
इन प्रमुख बिन्दुओं पर विचार कर फिर इसकी तुलना कंपनी के पिछले आंकड़े से की जाती है जिससे कंपनी की प्रगति और इसके कारोबार विकास की सही तस्वीर आपकेसामने उभरती है।
इसके अलावा कंपनी के पूंजी आधार से आपको कंपनी की अन्य परिसंपत्तियों की भी पर्याप्त जानकारी उनपलब्ध होती जाती है।
नीचे कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा की गई है जिसकी मदद से किसी कंपनी की वित्तीय स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
नकदी और समतुल्य
अगर निवेशक किसी कंपनी की नकदी और इसके समतूल्य के बारे में छान-बीन करता है तो उसे कंपनी की नकदी की स्थिति के बारे में तत्काल जानकारी मिल जाती है।
सामान्य तौर पर देखा गया है कि कंपनी इसको बढा-चढ़ा कर पेश नहीं करती है क्योंकि नकदी किसी बैंक खाते में जमा होती है जिसकी पुष्टि किसी बाहरी ऑडिटर से आराम से करवाई जा सकती है।
हालांकि अगर किसी कंपनी में सत्यम की तरह बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी होती है तो ऐसे में शायद कोई कु छ नहीं सकता है। लेकिन इतना तो तय है कि मोटे तौर पर कंपनी के पास जितनी नकदी होगी कंपनी की बाजार में अहमियत भी उतनी ही होगी। वास्तव में इसका इस्तेमाल कंपनी के मूल्यांकन करने में किया जाता है।
कर्जदार और कर्जदाता
ऐसे लोग या इकाईयां होती हैं जो किसी कंपनी से धन उधार लेते हैं। किसी भी कारोबार में सारे परिचालन में तत्काल भुगतान हो, ऐसा जरूरी हर बार जरूरी नहीं होता है। ऐसे लोग या इकाईयां जो तत्काल भुगतान नहीं करती हैं, इन्हें लेनदार कहा जाता है।
लेनदार को सामान्य तौर पर प्राप्त होनेवाली राशि के तहत वर्णित किया जाता है। अगर इसकी जानकारी मिलती है तो हमें आनेवाले समय में कंपनी को कितने धन की प्राप्ति हो सकती है, इसकी पूरी जानकारी मिलती है।
अगर कंपनी की वित्तीय स्थिति में किसी तरह की गिरावट आती है तो फिर इसका तत्काल प्रभाव तुरंत देखने को मिल जाता है। इसके अलावा परिचालनों का भुगतान समय पर नहीं होने की स्थिति में कंपनी भी मुश्किलों में फंस सकती है।
अगर इस तरह की मुश्किलें आती हैं तो इसका मतलब यह निकलता है कि कंपनी का धन बुरी तरह से फंस चुका है और इससे कारोबार में और भी मुश्किलें पैदा हो जाती हैं।
आगे चलकर अगर अतिरिक्त बिक्री को बिना किसी उगाही के कर्जदार से जोडा जाता है इसका मतलब यह निकलता है कि कंपनी फिलहाल अपनी साख पर बिकवाली कर रही है।
कंपनी की वित्तीय स्थिति की मोटे तौर पर जानकारी के लिए पिछले कई वर्षो के कंपनी के कर्ज और कर्जधारकों की तुलना की जानी चाहिए। कंपनी को अपनी पूंजी को विभिन्न इकाईयों को मुहैया भी करानी होती है।
इनका जिक्र प्रमुख कर्जदाताओं के तहत किया जाता है। कंपनी के बाजार में कारोबार को जानने के लिए मौजूदा रकम और कर्जधारकों की संख्या की तुलना पिछले साल से की जानी चाहिए। ऐसा करने से आपको कंपनी की भुगतान प्रक्रिया के प्रबंधन क्षमता का भी पता लगता है।
अगर यह संख्या अधिक पाई जाती है तो इसका मतलब है कि कंपनी के कर्ज में बढ़ोतरी हो रही है। इसे एक बेहतर संकेत के रूप में नहीं लिया जा सकता है जो कंपनी की पूंजी जुटाने की राह में रोडा साबित हो सकता है।
पूंजी
कंपनी के मूल्यांकन की सही जानकारी होने के लिए, किसी कंपनी केपास कितनी पूंजी है, इसके बारे में जानकारी हासिल करना जरूरी है। कंपनी के पास मौजूदा पूंजी को देखते हुए निवेशक भी कंपनी के शेयरों में निवेश करते हैं।
हालांकि इसकी तुलना कंपनी के मुनाफे और कीमत से करने की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए 5,000 रुपये की पूंजी पर 500 करोड रुपये का मुनाफा हो तो ऐसी स्थिति में कंपनी का मूल्यांकन कम हो जाता है।
हालांकि 50 करोड़ रुपये की पूंजी पर 200 करोड़ का मुनाफे का मतलब बेहतर मूल्यांकन से जोड़कर जरूर देखा जा कसता है।
पूंजी जुटाने की क्षमता
कंपनी की वित्तीय स्थिति का जायजा लेने का यह एक और तरीका हो सकता है। पूंजी या तो शेयर जारी करके या फिर कर्ज लेकर जुटाई जाती है। इसका सीधा सा मतलब निकलता है कि या तो कंपनी पैसा जुटाने के लिए आम लोगों के पास जाएगी या फिर वित्तीय संस्थानों से कर्ज लेगी।
इनमें से किसी भी तरीके से धन जुटाने के लिए यह आवश्यक है कि कंपनी की वित्तीय स्थिति मजबूत हो। कंपनी की धन जुटाने की क्षमता को जानने के लिए कंपनी के बुक में डेट और इक्विटी के अनुपात पर नजर दौडानी चाहिए।
उदाहरण के लिए कंपनी के पास 100 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर हैं और कर्ज सिर्फ 5 करोड रुपये हैं तो ऐसे में कंपनी के लिए धन जुटाना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है।
लेकिन अगर कंपनी के पास 20 करोड रुपये के शेयर हैं और कर्ज 45 करोड रुपये है तो फिर कंपनी के लिए ऐसी स्थिति मुश्किल मानी जाती है और धन जुटाना आसान नहीं होता है।