क्लेम के कारोबार में भारतीय कंपनियों और विदेशी बीमा कंपनियों की भीड़ लग जाने से भारतीय कंपनियां, जो अब तक लाइफ और नॉन लाइफ की श्रेणी में इन कंपनियों को सेवाएं दे रहीं थी, अब नए क्षेत्रों में ग्रोथ की रणनीति बना रही है।
अब एक ग्रुप की कंपनियों में बीमा सेवा कारोबार भी एक प्रमुख क्षेत्र होता आया है, लेकिन अब वह नए क्षेत्रों में विस्तार कर रही है। रेड्डीज द्वारा प्रमोटेड अपोलो ग्रुप एक ऐसा ही ग्रुप है, जिसने ई-मेडिटेक का अधिग्रहण करके ब्रोकिंग क्षेत्र में प्रवेश कर लिया है। भायचंद अमोलक ग्रुप ने भी यही कदम उठाया है। उसकी अब तक बीमा और पुनर्बीमा कंपनी भायचंद अमोलक कंसलटेंसी थी।
अब उसने विल्स बीए ब्रोकिंग फर्म की 26 फीसदी हिस्सेदारी अधिग्रहित की है। विल्स बीए ब्रोकिंग मार्केट का एक बड़ा खिलाड़ी है। उसके पास टीपीए कही जाने वाली इंडिया हैल्थ के शेयर हैं। टीपीए स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाली एक अहम कंपनी है जो अस्पताल में भर्ती कराने से लेकर क्लैम की प्रोसेसिंग और सेटिंग की सेवाएं प्रदान करती है। दूसरे शब्दों में एक बीमा ब्रोकर का काम अपने कार्पोरेट क्लाइंट को न्यूनतम प्रीमियम पर सबसे अच्छा कवर उपलब्ध कराना है।
भारतीय बीमा नियामक प्राधिकरण (आईआरडीए) के पास इस तरह के 30 टीपीए रजिस्टर्ड हैं। 2007-08 में उन्होंने 4,400 करोड़ रुपये का प्रीमियम एकत्र किया। दिल्ली के विपुल ग्रुप, अंकित सेफ्टी, हैरिटेज ऐसे प्रमोटर्स हंर जो टीपीए सेगमेंट के साथ ब्रोकिंग के कारोबार में लगे है। इनके अतिरिक्त बीमा जोखिम प्रबंधन सेवा भी बीमा सेवा के बाजार में एक से अधिक क्षेत्रों में मौजूद हैं।
हालांकि कई सेवा प्रदाता संबंधित क्षेत्र में ही प्रवेश कर रहे हैं। इस बीच कई ऐसी बीमा कंपनियां हैं जो यह शिकायत कर रही हैं कि बीमा नियामक ब्रोकरों को प्रोसेसिंग क्लेम से रोकें। इसके साथ ही बिग टिकट कार्पोरेट पॉलिसी के नवीनीकरण के समय बीमा ब्रोकर वह जानकारी नहीं देते जो उन्हें टीपीए और बीमा कंपनियों से प्राप्त होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह हितों को लेकर संघर्ष भी है।