ज्यादातर विशेषज्ञ एक उचित परिसंपत्ति आवंटन की सलाह देते हैं, जिसमें कुछ पैसा छोटी, मझौली या बड़ी कंपनियों के शेयरों में निवेश किया जाए।
इसका मतलब है कि आपके निवेश पोर्टफोलियो में अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्र या उद्योग इसमें शामिल हों। ब्रिनसन, हूड और बीवोवर ने सबसे पहले 1986 में परिसंपत्ति आवंटन पर एक अध्ययन प्रकाशित किया था,
जिसके अनुसार ’10 साल की अवधि में 91 लार्ज फंडों के एक अध्ययन से पता चलता है कि परिसंपत्ति आवंटन के कारण फंडों के निवेश पर लगभग 94 प्रतिशत रिटर्न बदलते रहते है।’ इस अध्ययन की एक बार फिर पुष्टि 1991 में की गई।
ये सभी सलाह रणनीतिक परिसंपत्ति आवंटन के साथ शुरू होती है और फिर इनमें ही सूझ-बूझ के साथ परिवर्तन करना चाहिए। इसलिए पोर्टफोलियो का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से अलग-अलग क्षेत्रों में निवेशित होना चाहिए। और इंडेक्स फंडों में कम खर्च के साथ इस मूल पोर्टफोलियो को बनाया जा सकता है।
अभी तक भारत में ऐसे ही इंडेक्स फंड हैं, जो बड़ी कंपनियों के सूचकांक जैसे सेंसेक्स और निफ्टी का ही प्रदर्शन दिखाते हैं। कुछ क्षेत्रीय इंडेक्स फंड हैं और एक फंड है जो निफ्टी जूनियर का प्रदर्शन दिखाता है। कई फंड ओपन-एंड फंड के रूप में मौजूद हैं, जिन्हें म्युचुअल फंड कंपनियों से खरीदा जा सकता है।
कुछ फंड ईटीएफ (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड) के रूप में भी हैं, जिन्हें स्टॉक एक्सचेंज के जरिये खरीदा जा सकता है। हाल में खुला बेंचमार्क एसऐंडपी सीएनएक्स 500 फंड कम खर्च में मूल पोर्टफोलियो तैयार करने के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है। मैं इस फंड को कुल शेयर बाजार फंड कहूंगा।
यह फंड हो सकता है कि व्यापक इंडेक्स एसऐंडपी सीएनएक्स 500 इंडेक्स को दिखाए, जो लगभग पूरे शेयर बाजार का प्रतिनिधित्व करता है।
यह 500 कंपनियों के शेयरों में निवेश करता है, इसलिए यह इंडेक्स सभी बाजार पूंजीकरण (बड़ी, मझौली और छोटी कंपनियां), विकास और शेयर की कीमत (तेजी से बढ़ती हुई कंपनियों और मात खाये शेयरों) और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है।
दूसरे शब्दों में यह निवेशक को पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था में (कम से कम सूचीबध्द कंपनियों के बड़े हिस्से के रूप में) निवेश करने का मौका देता है।
इस इंडेक्स में बाजार पूंजीकरण का 90 प्रतिशत और नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का लगभग 95 प्रतिशत हिस्सा कवर होता है। क्या यह फंड सक्रिय प्रबंधन वाले फंडों को मात दे सकता है?
आपके दिमाग में भी दूसरा सवाल यही होगा। हालांकि सवाल कुछ इस तरह होना चाहिए : ‘क्या सक्रिय फंड प्रबंधक हर समय पर मिलने वाले औसत रिटर्न को पीछे छोड़ सकता है?’ आंकड़े तो यही संकेत दे सकते हैं कि सक्रिय फंड प्रबंधकों के लिए बाजार के औसत रिटर्न को पीछे छोड़ना तेजी से मुश्किल होता जा रहा है।
इसी समय, सलाहकारों और निवेशकों के लिए फंड प्रबंधकों में से भविष्य के सितारे चुनना और भी मुश्किल हो गया है। सक्रिय फंड प्रबंधकों की अपनी कुछ खामियां हैं, जो उन्हें सूचकांकों को मात देने में मुश्किलें पैदा कर रही है। चलिए ऐसी ही कुछ खामियों पर नजर डालते हैं:
सबसे बड़ी खामी है कीमतें। हम इन्हें प्रत्यक्ष और छुपे हुए खर्च के दो वर्गों में बांट देते हैं। सक्रिय फंड प्रबंधन में एक प्रत्यक्ष खर्च या कीमत फंड प्रबंधन शुल्क है। आमतौर पर इंडेक्स फंड की सालाना लागत 1.5 प्रतिशत होती है।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) के अनुसार सक्रिय फंड प्रबंधन पर एक साल में पहले 100 रुपये पर 2.25 प्रतिशत शुल्क लगता है, उसके बाद अगले 300 रुपये पर 2.25 प्रतिशत और उसके अलगे 300 रुपये पर प्रतिशत शुल्क लगता है, इसके बाद की रकम पर 1.75 प्रतिशत शुल्क लगाया जाता है।
साथ ही इंडेक्स फंडों में निवेश करने पर इक्विटी डाइवर्सिफाइड फंडों के उलट कोई प्रवेश शुल्क नहीं लगता। इक्विटी डाइवर्सिफाइड फंडों में 2.25 प्रतिशत प्रवेश शुल्क लगाया जाता है।
यहां बताए गए शुल्क के कारण सक्रिय फंड प्रबंधन में प्रत्यक्ष खर्च औसत से अधिक है। ये सेबी की ओर से अधिकतम सीमा की सिफारिशें थीं और कोई फंड प्रबंधक चाहे तो इससे कम शुल्क भी लगा सकता है।
प्रत्यक्ष सालाना लागत के अलावा इसमें कुछ छुपे हुए खर्च भी हैं। उदाहरण के लिए ट्रेडिंग कमीशन, प्रतिभूति कारोबार कर, पोर्टफोलियो में नकद का हिस्सा और किसी शेयर की बोली की कीमत और उसकी पेशकश में अंतर।
अंत में, क्या इंडेक्स फंड सक्रिय प्रबंधन फंडों से बेहतर रिटर्न कमा सकते है? इसका जवाब काफी स्पष्ट है। इंडेक्स और कुछ नहीं, बल्कि औसत फंड है और एक औसत फंड हमेशा औसत रिटर्न ही कमा पाता है।
यहां ऐसे भी कुछ फंड हो सकते हैं जो इंडेक्स से बेहतर प्रदर्शन कर पाएं। लेकिन भविष्य के विजेताओं की पहचान कर पाना लगभग नामुमकिन है।