सामान्य बीमा के क्षेत्र में निजी कंपनियों के हाथों 42 फीसदी मार्केट शेयर गंवाने के बाद अब सरकारी कंपनियों को होश आ गया है। अब वे निजी कंपनियों को जोरदार चुनौती देने की तैयारी कर रहीं हैं।
ये कंपनियां प्राइवेट कंपनियों द्वारा प्रभावशाली ढंग से अपनाई गई रणनीति को ही अमल में लाएंगी। उन्होंने रिटेल ग्राहकों, बड़े कारपोरेट घरानों, बैंक बीमा और ब्रोकरों के लिए उनकी जरूरत के अनुसार वर्टिकल्स तैयार किए हैं।
सामान्य बीमा क्षेत्र में प्राइवेट खिलाड़ियों के उतरने के बाद पहली बार चारों सरकारी सामान्य बीमा कंपनियां न्यू इंडिया एश्योरेंस, नेशनल इंश्योरेंस, यूनाइटेड इंडिया और ओरिएंटल इंश्योरेंस ने बड़े इंश्योरेंस ब्रोकरों को हेंडल करने के लिए एक विशेष सेल की स्थापना की है। इसे उद्योग से जुड़े बड़े तबके ने इसे एक बदलाव का निश्चित संकेत माना है।
2003 में बाजार में प्रवेश करने वाले बीमा ब्रोकरों के पास कंपनियों से मिलने वाले कारोबार का 20 फीसदी हिस्सा है। प्राइवेट कंपनियों के विस्तार में इन ब्रोकरों ने काफी अहम भूमिका निभाई है। सरकारी सामान्य बीमा कंपनियों से सरकार से अनुमति मिलने के बाद 2007 में बिजनेस प्रोसेस री-इंजीनियरिंग की शुरुआत की थी।
सरकार ने 2000 में सामान्य बीमा क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों को प्रवेश की अनुमति दी थी। उसके बाद से अब तक 10 प्राइवेट कंपनियां इस क्षेत्र में काम कर रहीं हैं। इनके अतिरिक्त कई इस क्षेत्र में प्रवेश करने को तैयार हैं। ओरिएंटल इंश्योरेंस के एक कार्यकारी ने बताया कि उनकी कंपनी पूरे ढांचे की पुनर्संरचना करने जा रही है।
इसके तहत बीमा प्रक्रिया में वर्तमान में लगने वाले चरणों की संख्या घटाई जाएगी, बेहतर प्रदर्शन करने वाले कर्मचारी को प्रोत्साहन और ग्राहकों को बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए सेवा केंद्र और एजेंसी बैक ऑफिसों की स्थापना की जाएगी। जारी वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में निजी क्षेत्र की आईसीआईसीआई लोंबार्ड ने प्रीमियम एकत्र करने के मामले में ओरिएंटल को पांचवें स्थान पर धकेल दिया है।
इस दौरान इन सरकारी सामान्य बीमा कंपनियों का प्रीमियम में आठ फीसदी बढ़कर 4,895 करोड़ रुपये हो गया जबकि इसी दौरान प्राइवेट बीमा कंपनियों का प्रीमियम 22 फीसदी बढ़कर 3,542 करोड़ रुपये हो गया। प्राइवेट बीमा कंपनियों का मार्केट शेयर जून माह के अंत तक बढ़कर 42 फीसदी हो गया जो वित्तीय वर्ष 2007-08 की पहली तिमाही में 39 फीसदी ही था।
सरकारी क्षेत्र की नेशनल इंश्योरेंस ने अपने कारोबारी ढांचे को व्यवस्थित करने के लिए पीडब्ल्यूसी की सेवाएं ली हैं तो अन्य तीन कंपनियों ने बोस्ट कंसल्टिंग गु्रप को नियुक्त किया है। उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकारी कंपनियां सेवा आधारित मोटर और स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों से पीछे हैं।
प्राइवेट कंपनियां बिना कैश के हैल्थ कवर उपलब्ध करा रहीं हैं, लेकिन कोई भी सरकारी कंपनी यह सेवा नहीं दे रही हैं। नई कंपनियों को अपने विज्ञापन और विपणन अभियानों का भी फायदा मिल रहा है। अब जाकर सरकारी कंपनियां भी इसकी अहमियत समझ पाई हैं।
सरकारी कंपनियों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उनके एक ही क्षेत्र में कई ऑफिस हैं, लेकिन वह कुछ ऑफिसों को बंद करके उनके कर्मचारियों को दूसरी जगहों में नियुक्त नहीं कर पा रहे हैं।