PhonePe- BharatPe dispute settlement: भारत की दो फिनटेक कंपनियों ने साल 2018 से चले आ रहे विवाद को कोर्ट से बाहर आपस में मिलकर ही सुलझा लिया है। भारतपे ग्रुप (BharatPe Group) और फोनपे ग्रुप (PhonePe Group) ने आज यानी 26 मई को आपस में मिलकर फैसला किया कि अब वे दोनों पे (Pe) प्रत्यय (suffix) को लेकर ट्रेडमार्क का दावा नहीं करेंगे। यह जानकारी दोनों फिनटेक फर्मों ने साझा बयान (joint statement) के जरिये दी।
साझा बयान में कहा गया है कि दोनों कंपनियों ने ट्रेडमार्क रजिस्ट्री में एक-दूसरे के खिलाफ सभी विरोधों को वापस लेने का फैसला किया है, जिससे उन्हें अपने संबंधित चिह्नों के पंजीकरण (पे/Pe) के साथ आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। इसका मतलब यह है कि अब दोनों फर्में अपने नाम के आगे Pe शब्द का इस्तेमाल करती रहेंगी।
गौरतलब है कि ‘Pe’ शब्द को लेकर भारतपे और फोनपे के बीच पिछले पांच सालों में कई बार कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया। लेकिन, आज बयान में कहा गया है कि दोनों के बीच हुआ यह समझौता सभी न्यायिक कार्यवाही को समाप्त कर देगा। दोनों कंपनियां दिल्ली हाईकोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष सभी मामलों के संबंध में समझौता करेंगी और सेटलमेंट ऑफ एग्रीमेंट (settlement agreement) के तहत मामले को समाप्त करने के लिए जरूरी कदम उठाएंगी।
BharatPe बोर्ड के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा, ‘यह इंडस्ट्री के लिए एक पॉजिटिव डेवलपमेंट है। मैं दोनों पक्षों के मैनेजमेंट की तरफ से दिखाई गई मैच्योरिटी और व्यावसायिकता (professionalism) की सराहना करता हूं, जो सभी बाकी बचे कानूनी मुद्दों को हल करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं और मजबूत डिजिटल पेमेंट इकोसिस्टम बनाने में अपनी ऊर्जा और सोर्सेज पर फोकस करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं।’
PhonePe के फाउंडर और CEO समीर निगम ने कहा, ‘मुझे खुशी है कि हम इस मामले में एक सौहार्दपूर्ण समाधान (amicable resolution) पर पहुंच गए हैं। इस नतीजे से दोनों कंपनियों को आगे बढ़ने में और फिनटेक इंडस्ट्री को ग्रो करने के लिए मिलकर फोकस करने में मदद मिलेगी।’
आपने देखा होगा कि फोनपे और भारतपे दोनों ही हिंदी की देवनागरी लिपि में ‘पे’ शब्द का यूज करते हैं। साल 2018 के अगस्त महीने की बात है, जब फोनपे ने भारतपे के खिलाफ ट्रेडमार्क उल्लंघन का आरोप लगाया और सीज एंड डेजिस्ट नोटिस जारी कर ‘पे’ का यूज बंद करने को कहा था।
इसके जवाब में भारतपे देवनागरी में ‘पे’ के साथ ‘भारतपे’ का इस्तेमाल न करने पर राजी हो गया। इसके बाद, भारतपे ने केवल अपनी सेवाओं के लिए ‘भारतपे’ मार्क का उपयोग करना शुरू कर दिया।
फोनपे ‘पे’ शब्द को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट गई, लेकिन 15 अप्रैल 2019 को कोर्ट ने फोनपे की याचिका को खारिज कर दिया।
फिर 2021 में PhonePe ने कई कैटेगरी में ट्रेडमार्क ‘PostPe, और ‘postpe’ के रजिस्ट्रेशन लिए भारतपे के खिलाफ एक कमर्शियल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी का मुकदमा दायर किया। मामला बांबे हाईकोर्ट गया। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने ‘पे’ शब्द के अर्थ के संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष फोनपे के रुख के बीच विरोधाभास का हवाला दिया और ट्रेडमार्क उल्लंघन मामले में फोनपे को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया।
अपने आदेश में बांबे हाईकोर्ट ने फोनपे से एक नई याचिका दायर करने के लिए भी कहा। इसके बाद फिर से फोनपे ने मुकदमा दायर किया।
अप्रैल 2023 में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने ब्रांड नाम ‘पोस्टपे’ के उपयोग पर रोक लगाने के लिए भारतपे की बाय-नाउ-पे-लेटर (BNPL) शाखा PostPe के खिलाफ फोनपे की तरफ से दायर याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि फोनपे ‘पे’ शब्द के अर्थ के संबंध में अपना रुख बदल रहा है और इसलिए वह विवेकाधीन राहत का हकदार नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि पार्टियों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं में ‘पे’ का इस्तेमाल ‘भुगतान’ के लिए किया जाना आम बात है और व्यापक रूप से उपयोग की जाती है। यह माना गया कि क्या ‘पे’ ने इस हद तक विशिष्टता और द्वितीयक (distinctiveness and secondary) अर्थ प्राप्त कर लिया है कि यह केवल फोनपे की सेवाओं से जुड़ा है, यह ट्रॉयल का विषय है।
हालांकि, फोनपे का कहना था कि वह पे मार्क 2014 में अपनाया था और मार्च 2016 में देवनागरी लिपि में लिखे गए ‘पे’ सहित ‘फोनपे’ और इसके वेरिएंट के लिए रजिस्ट्रेशन प्राप्त किया था।
हालांकि, आज दोनों पार्टियों के बीच मामला सुलझ गया है। अब दिल्ली और बांबे हाईकोर्ट में चल रहे मामले फर्मों की तरफ से वापस ले लिए जाएंगे।