मांग में लगातार जारी मंदी,कच्चे माल की कीमतों मे लगातार हो रही वृध्दि और ऊंची ब्याज दर देश की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी टाटा मोटर्स के लिए कोई अच्छी खबर नहीं है।
कंपनी को अपना लाभ बरकरार रखने के लिए पिछले पांच महीनों में अपने वाणिज्यिक और यात्री वाहनों के दाम बढ़ाने के लिए मजूबर होना पड़ा है। इस बीच कंपनी ने फोर्ड के स्वामित्व वाले दो ब्रांडों जगुआर और लैंडरोवर का 9,500 करोड़ रुपये में अधिग्रहण किया।
कंपनी को जहां इस अधिग्रहण के सिलसिले में 10,000 करोड़ रुपए कीविस्तार योजना पर अमल करना है, वहीं उसे अपनी बहुचर्चित और बहुप्रतीक्षित छोटी कार नैनो को भी बाजार में उतारना है। वैसे, इस ऑटोमोबाइल कंपनी के पास प्रसार के लिए सारा आकाश पड़ा हुआ है।
हालांकि जगुआर और लैंडरोवर का अधिग्रहण और इस वित्त्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही तक नए मॉडलों की लांचिंग कंपनी के दूरगामी भविष्य के लिहाज से तो ठीक हो सकती है लेकिन इनसे कंपनी का छोटी अवधि में लाभ प्रभावित हो सकता है।
कीमतों का ब्रेक
स्टील की कीमतों में जनवरी 2008 से अब तक 30 फीसदी से भी अधिक का उछाल आया है और स्टील की कीमतें 40,000 रुपये प्रति टन के स्तर पर पहुंच गई हैं। स्टील निर्माताओं पर अभी दबाव बना हुआ है कि वे कीमतों में वृध्दि करें जबकि इस्पात की ऑटोमोबाइल उद्योग में मुख्य भागीदारी है। स्टील की ऊंची कीमतों का मतलब है कि कंपनी को अपने हर उत्पाद के दाम तीन से चार फीसदी तक बढ़ाने पड़ेंगे।
अगले कुछ हफ्तों में स्टील के दामों और भी वृध्दि हुई तो कंपनी अपने उत्पादों के दामों में पांच फीसदी या बढ़ी हुई लागत के बराबर वृध्दि करने का कदम उठा सकती है। औद्योगिक बढ़त केलगातार गिरने,ऊंची ब्याज दरों और मानसून के महीनें में बिक्री कम रहने की आशंका के बीच कंपनी को अपने वॉल्यूम की बिक्री के अलावा लाभ बरकरार रखने के लिए भी जूझना पड़ेगा। हालांकि कंपनी की सफलता उसकेग्राहकों को होने वाले लाभ पर भी निर्भर करेगी।
पॉयोनियर इंटरमीडियरीज के ऋषभ बागड़िया का कहना है कि फ्रेट रेट स्थिर रहने की वजह से बढ़ी हुए परिचालन लागत का कंपनी की सेहत पर कोई खास असर नहीं पडेग़ा । हालांकि टाटा मोटर्स केप्रबंधकों का मानना है कि वाहनों के फाइनेंस महंगे होने,औद्योगिक बढ़त में मंदी छाए रहने,ऊंची ब्याज दरों और आर्थिक गतिविधियों का वाहनों की बिक्री पर भी प्रभाव पड़ सकता है और वाहनों की बिक्री में गिरावट हो सकती है।
टाटा मोटर्स का विचार है कि अपने वाहनों की बिक्री बढ़ाने के लिए कंपनी खुद अपनी फाइनेंस कंपनी के जरिए वाहनों का फाइनेंस करेगी। कंपनी का वाहनों की बिक्री बरकरार रखने के लिए डिस्काउंट भी देने का विचार है। गौरतलब है कि कंपनी इसके लिए अपनी अनुषंगी कंपनी टाटा मोटर्स फाइनेंस, टाटा फाइनेंस का इस्तेमाल करेगी।
एंजेल ब्रोकिंग की विश्लेषक वैशाली जाजू का कहना है कि हालांकि वित्त्तीय वर्ष 2009 के अंतिम पांच महीनों में कंपनी अपने वाहनों की बिक्री में कुछ सुधार कर सकती है लेकिन कंपनी का भविष्य कुछ ज्यादा उज्वल नहीं दिखता है। बढ़ती स्टील की कीमतों का मतलब है कि कंपनी को अगली दो तिमाहियों में अपने लाभ में एक से 1.5 फीसदी तक के दबाव का सामना कर पड़ सकता है। कंपनी हो सकता है कि ग्राहकों पर पूरा बोझ न डाले और अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाकर तथा नए उत्पाद लांच करके और डिस्काउंट के जरिए वह बढ़ी हुई लागत का बोझ खुद ही उठाने का उपक्रम कर सकती है।
उत्पादों की बढ़ती बिक्री
कंपनी ने वित्तीय वर्ष 2008 में 5.82 लाख यात्री वाहनों और वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री की। हालांकि वाहनों की बिक्री सपाट रही और इसमें खास सुधार नहीं देखा गया। हालांकि कंपनी केवाणिज्यिक वाहनों की बिक्री पांच फीसदी ज्यादा रही। इसकी वजह कंपनी के हल्के वाणिज्यिक वाहनों और बसों की बिक्री ज्यादा होना रही। कंपनी की बिक्री केवॉल्यूम में ब्रेक लगाने का काम यात्री वाहनों ने किया जिसकी बिक्री में 5.5 फीसदी की गिरावट आई।
वैसे, संपूर्ण यात्री वाहनों की बढ़त वित्त्तीय वर्ष 2008 में 11 फीसदी थी। राज्य परिवहन निगमों द्वारा ज्यादा बसों की मांग की वजह से कंपनी की बसों की बिक्री में जबरदस्त उछाल देखा गया। कंपनी के ट्रकों की बिक्री में अवश्य कमी आई। डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी होने से कंपनी की मुश्किलें और बढ़ गई हैं क्योंकि इससे ट्रकों की परिचालन लागत बढ़ गई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि दामों में संभावित वृध्दि और मिश्रित उत्पादों से कंपनी की लाभ प्राप्त करने की क्षमता में वृध्दि हो सकती है। कंपनी ज्यादा टन भार वाले वाहनों की बिक्री से 10 फीसदी इबिडटा मार्जिन केस्तर को भी पा सकती है। विश्लेषकों का अनुमान है कि इस वित्त्तीय वर्ष में बस और हल्के वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में दोहरे अंकों की वृध्दि होने की संभावना है जबकि ट्रकों में मात्र इकहरे अंक में ही बढ़त की संभावना है।
अर्थव्यवस्था के मौजूदा माहौल के कारण भी कंपनी केलिए वित्त्तीय वर्ष 2009 परेशानी भरा है जबकि वित्त्तीय वर्ष 2010 में कंपनी के लिए प्रतियोगिता के बढ़ने की संभावना है। हालांकि कंपनी को आशा है कि वह अपनी बाजार हिस्सेदारी बरकरार रखने में सफल हो पाएगी जबकि वाणिज्यिक वाहनों में कंपनी की 60 फीसदी हिस्सेदारी अवश्य बीते जमाने की बात हो सकती है।
कंपनी को अपने वाणिज्यिक वाहनों के सेगमेंट में महिंद्रा और आईटेक के संयुक्त उपक्रम (जिसकी 2,500 करोड़ रुपए के निवेश की योजना है), डैमलर हीरो जेवी (4,000 करोड़ रु. केनिवेश की योजना) और वोल्वो आयशर (1,000 करोड़ रुपये का निवेश करना है) की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। कंपनी के लिए सबसे बड़ी चुनौती निसान और अशोक लीलैंड के संयुक्त उपक्रम से है जो हल्के वाणिज्यिक वाहनों के सेगमेंट में 2,400 करोड़ रुपए का निवेश करेगी। अब सवाल यह उठता है कि बढ़ती प्रतियोगिता और लागत केबीच क्या टाटा मोटर्स अपने वाहनों की बिक्री बढ़ा पाएगी?
नैनों और उसके आगे की राह
कंपनी कुछ नए मॉडलों की लांचिंग के लिए खुद को तैयार कर रही है। कंपनी का विचार वाणिज्यिक और यात्री वाहनों दोनों सेगमेंट में नए मॉडल लाने का विचार है। कंपनी की 10,000 करोड़ की विस्तार योजना है। इसके जरिए वह 100 नए मॉडल व उत्पाद लाएगी और वर्तमान उत्पादन संयंत्रों को सुचारू बनाएगी। साथ ही, चार नई ग्रीनफील्ड यूनिट की स्थापना भी करेगी।
कंपनी ये चार नई ग्रीनफील्ड यूनिट धारवाड़ (कर्नाटक), सिंगूर, पंतनगर (उत्तराखंड) और रंजनगांव में स्थापित करेगी। वाणिज्यिक वाहनों के सेगमेंट में कंपनी ऐस,नई बसों, बड़े ट्रक और सैन्य वाहन लाएगी। नैनो के अलावा कंपनी की इंडिका और इंडिगो के नए मॉडल लाने भी योजना है। हालांकि कंपनी अपना सारा ध्यान लोगों की कार-नैनो पर देगी।
विश्लेषकों का अनुमान है कि कंपनी वित्त्तीय वर्ष 2009 में 30,000 कारों की बिक्री कर सकेगी। नैनों में कम लाभ की संभावना और कम संख्या के चलते वर्तमान वित्त्तीय वर्ष में कंपनी के कारोबार में खास बदलाव होने की संभावना नहीं है। लेकिन इन सबसे कंपनी की बिक्री वित्त्तीय वर्ष 2010 में बढ़ सकती है।
जेएलआर का असर
टाटा मोटर्स इन दिनों अपनी बिक्री में इजाफे केलिए जो कदम उठा रही है, उसका पर्याप्त फायदा उसे मिलना चाहिए। मालूम हो कि टाटा इस बीच तीन निर्माण प्लांटों को जोड़ने, दो डिजाइन केंद्रों समेत तीन लाख यूनिटों की बिक्री के लिए बड़ा नेटवर्क को अंजाम देने में जुटी है। जाहिर है, इन कदमों से टाटा मोटर्स की उत्पादन क्षमता में खासा इजाफा होगा।
लेकिन जो सबसे ताजातरीन काम टाटा ने किया है और जिससे उसके मोटर विभाग की विश्व स्तर पर पहचान बन जाएगी, वह है जगुआर और लैंडरोवर का अधिग्रहण। इन दोनों प्रीमियम ब्रांडों की कार कंपनी के अधिग्रहण से निश्चित तौर पर कंपनी की उत्पाद क्षमता में जबरदस्त इजाफे की उम्मीद है। लैंडरोवर के अधिग्रहण से जहां टाटा मोटर्स को अपने चार पहिया सेगमेंट में अन्य प्रीमियम गाड़ियों के साथ तालमेल बिठाने में मदद मिलेगी, वहीं वह अपने एसयूवी की तकनीक को अपग्रेड करने में भी सफल साबित हो सकेगी।
इसके अलावा जगुआर के स्पोर्ट कार सेगमेंट के जरिए टाटा का लक्ष्य कार सेगमेंट के प्रीमियम एंड वाली श्रेणी को भुनाना है। जेएलआर का अधिग्रहण सिर्फ इतना ही फायदा नहीं पहुंचा रहा बल्कि टाटा के लिए सस्ती दर पर कार की तकनीक को आउटसोर्स करना भी आसान साबित होगा। हालांकि जेएलआर के लिए भारत में राहें इतनी आसान नही हैं क्योंकि यहां पहले से ही बाजार में बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज, ऑडी इत्यादि मौजूद हैं, जिनकी लाखों की संख्या में गाड़ियां बिक रही हैं।
लिहाजा जगुआर के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि वह यूरो मानकों के कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन पर खरी उतरे,क्योंकि चार साल के भीतर कार्बन उत्सर्जन को 250 ग्राम प्रति किलोमीटर से 120 ग्राम प्रति किलोमीटर पर लाना खासा मुश्किल काम है। क्योंकि इस वक्त इसके लिए वैकल्पिक तकनीकों मसलन हाइब्रिड और फ्यूल सेल का इस्तेमाल कोई बच्चों का काम साबित नही होने जा रहा है।
विश्लेषकों की नजर में टाटा मोटर्स ने वैल्यूएशन के टर्म में जहां एक बेहतर डील को अंजाम दिया है, वहीं उत्पाद के इनोवेशन और मार्केट विस्तार पर वह कितना अमल कर पाती है, उसी पर आगे की सारी बात निर्भर करेगी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि कंपनियों के लिए पुर्जों और इंजन की आपूर्ति संबंधी व्यवस्थाओं को किस प्रकार अंजाम दिया जाएगा? यह भी एक बड़ा मसला साबित होगा। दूसरा सवाल आरऐंडडी पर टिका है। शोध के अलावा नए मॉडल, कार्बन उत्सर्जन और पेंशन घाटे के लिए भी कंपनी को प्रावधान करने पड़ेंगे और इसके लिए उसे 7000 लाख डॉलर सालाना की दरकार होगी।
इस बाबत टाटा मोटर्स प्रबंधन का कहना है कि उसने एक लांग टर्म प्लान की रूपरेखा तैयार की है। इसके तहत कलपुर्जों की आपूर्ति के इंतजाम को पुख्ता बनाया जाएगा। वैसे, टाटा मोटर्स ने अधिग्रहण और शार्ट टर्म कैपिटल जरूरतों के मद्देनजर कर्ज समेत इक्विटी फंडों के जरिए पूंजी जुटाने का काम शुरू कर दिया है। हालांकि टाटा मोटर्स का मानना है कि जेएलआर को इक्विटी बेचने समेत मार्केटिंग पर होने वाला खर्च कम करके आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।
जहां तक बात पेंशन घाटे की है तो इस बारे में विश्लेषक मानते हैं कि यह इक्विटी बाजार पर निर्भर करेगा कि यह घाटा किस ओर मुखातिब होता है। गौरतलब है कि फोर्ड को टाटा मोटर्स के साथ डेफिसिट संबंधी डील के लिए कुल 6000 लाख डॉलर की रकम तैयार करनी पड़ी थी। अगले वैल्यूएशन की तारीख अब अप्रैल 2009 तय की गई है। अब अगर परिचालन की बात करें तो जेएलआर प्रबंधन को विश्वास है कि अच्छे मांग के चलते चीन और रुस जैसे बाजारों से कारोबार बेहतर किया जा सकता है।
जेएलआर के मुताबिक उसकी कारों की बिक्री में कुल 50 फीसदी का इजाफा हुआ है जिसे महज पांच सालों के भीतर अंजाम दिया जा सका है। इसके अलावा इसके ग्रास प्राफिट मार्जिन में भी 6 फीसदी का सुधार इन सालों के दौरान दर्ज हुआ है। इसके इबिडटा की बात करें तो साल 2005 के बाद इसमें सकारात्मक बदलाव दर्ज हुआ है।
हम अगर तुरंत पिछले तिमाही की बात करें तो कंपनी की बिक्री 4100 लाख डॉलर पर पहुंच गई है। लेकिन ये सारे आंकड़ें मार्च में लांच किए गए जगुआर एक्स एफ से पहले के कारोबार के हैं। लिहाजा, अगले दो तिमाहियों के दौरान यह अपने प्रदर्शन को बरकरार रख पाएगी कि नहीं, यह एक सवाल हो सकता है।
नफे में मददगार
इसके छह सहायक प्लांटों के जबरदस्त प्रदर्शन के चलते वित्तीय वर्ष 2008 में यह मुनाफा बरकरार रख सकी है। आलम यह है कि सिर्प स्टैंडअलोन इबिडटा की बात करें तो यह साल दर साल के आधार पर 7 फीसदी हो गया है। खासकर अब तक, इसमें इजाफे का दौर बरकरार है लेकिन भविष्य में टाटा मोटर्स की कमाई इस बात पर निर्भर करेगी कि जेएलआर के मॉडल कैसा प्रदर्शन करते हैं।
हालांकि वित्तीय वर्ष 2009 तक जेएलआर के टाटा मोटर्स में संयुक्त राजस्व में 63 फीसदी के योगदान देने की उम्मीद है। लिहाजा, कुल कारोबार 100,000 करोड़ रुपये हो सकता है। इन कामों को अंजाम देने के लिए टाटा मोटर्स 7,200 करोड़ रुपये का राइट्स इश्यू लाने जा रही है जिसके लिए वह 45 फीसदी का इक्विटी कम कर सकती है।
जहां तक बात इसके शेयरों की है तो मौजूदा 488 रुपये के स्तर पर ये शेयर वित्तीय वर्ष 2009 के अनुमानित कीमत कमाई (पीई) अनुपात से 9 गुना पर कारोबार कर रहे हैं। शेयर काफी महंगे तो नही हैं, लिहाजा निवेशकों के लिए बेहतर यह होगा कि वे दिसंबर तक का इंतजार करें ताकि उस वक्त तक टाटा मोटर्स और जेएलआर की प्रगति देख लें। उसके बाद ही वे इसमें निवेश का मन बनाएं।