दुनिया भर में मौजूदा आर्थिक माहौल बोझिल ही नहीं, अनिश्चितता से भरा भी है।
भारत इस मामले में कुछ बेहतर हालत में हो सकता है, लेकिन उसकी आर्थिक सेहत भी बिगड़ रही है और उसमें सुधार के संकेत नहीं दिख रहे हैं।
औद्योगिक उत्पादन में गिरावट, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में मंदी और कॉर्पोरेट जगत की कमाई में कमी का अंदेशा बाजारों के लिए चिंता का सबब बने हुए हैं।
जितेंद्र कुमार गुप्ता ने इस माहौल में मुख्य मसलों पर जाने माने निवेश विशेषज्ञ और टेम्पलटन ऐसेट मैनेजमेंट के कार्यकारी चेयरमैन डॉ. मार्क मॉबियस से जवाब जानने की कोशिश की।
उभरते बाजारों के मिजाज को समझने में माहिर मॉबियस इस बाजारों में फिलहाल करीब 2,400 करोड़ डॉलर की संपत्तियों का प्रबंधन कर रहे हैं।
गिरावट का शिकार हुए शेयरों के बीच चयन करने में दक्ष मॉबियस ने भारतीय इक्विटी बाजार के बारे में बातचीत की और अपनी निवेश नीतियों का भी खुलासा किया। पेश हैं मुख्य अंश :
भारत सरकार ने आर्थिक सहायता के जिस पैकेज का ऐलान किया है और भारतीय रिजर्व बैंक ने नकदी और ब्याज दर की हालत सुधारने के लिए जो कदम उठाए हैं, उनके बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या इतना करना काफी होगा?
सरकार के पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है क्योंकि वित्तीय हालत ही अच्छी नहीं है।
बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को अगर सार्वजनिक-निजी सहभागिता के मॉडल पर चलाया जाता है, जो वित्त का इंतजाम अहम हो जाएगा, जो इस समय आसान नहीं है।
इसलिए सरकार की मंशा तो अच्छी हो सकती है, लेकिन परियोजनाओं को अंजाम देने के उससे भी अच्छे तरीके हो सकते हैं।
क्या अमेरिका और यूरोप के विकसित देशों में लंबी मंदी का मतलब भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए ज्यादा परेशानी समझा जाए?
भारत तो कई दूसरे देशों के मुकाबले अभी बेहतर स्थिति में है क्योंकि उसकी घरेलू अर्थव्यवस्था मजबूत है और व्यापार पर उसकी निर्भरता भी कम है।
लेकिन मंदी के असर से तो भारत को भी रूबरू होना पड़ेगा। इसका सबसे अच्छा हल अर्थव्यवस्था को और खोलना तथा नौकरशाही को कम करना है।
भारत के कुछ राज्यों में हुए चुनाव के जो नतीजे आए, उनमें आपको क्या दिख रहा है?
सरकारें बदलती हैं, लेकिन यहां आर्थिक सुधार बदस्तूर जारी रहे हैं। यह देखकर अच्छा लगता है कि आम जनता के बीच विकासोन्मुखी नीतियां गहरे तक जड़ जमा चुकी हैं।
कई राजनीतिक पंडित कह भी चुके हैं कि नई सरकारें आर्थिक मोर्चों पर पिछली सरकार से बेहतर काम करती हैं।
इक्विटी बाजार के बारे में आपका क्या खयाल है? इसमें उतारचढ़ाव कब तक जारी रहेगा और बाजार सुधरने की कितनी उम्मीद है?
वित्तीय बाजार में वाकई इस वक्त पीड़ादायक माहौल है। लेकिन असल में अर्थव्यवस्था के लिए आने वाले दिनों में और भी बुरी खबरें छिपी हुई हैं। वैसे, हालात कुछ हद तक सुधरते नजर आ रहे हैं और बाजार की बर्बादी के निशान अब खत्म हो रहे हैं।
भारतीय इक्विटी बाजार को दूसरी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में आप कहां देखते हैं?
भारत के इतिहास को देखा जाए, तो इक्विटी बाजार आकर्षक नजर आ रहा है और दूसरे उभरते बाजारों में भी ऐसा ही है। कुल मिलाकर आर्थिक संकट से निपटने के मामले में भारत बेहतर हालत में है।
जिंस खास तौर पर धातुओं और कच्चे तेल के बारे में आप क्या सोचते हैं?
जिंस की कीमतों पर हमारा सकारात्मक नजरिया है। हमें जिंस स्टॉक भी पसंद हैं, जिनमें धातु स्टॉक भी शामिल हैं क्योंकि उनमें से कुछ में अच्छी खासी गिरावट आई है। वे बेहतर साबित होंगे क्योंकि दीर्घकालिक विकास के लिए दुनिया भर में जिंसों की मांग बरकरार रहेगी।
निकट भविष्य में आय बढ़ने की क्या संभावना है? आपके मुताबिक चालू और अगले वित्त वर्ष में शेयरों की आय में कितना इजाफा होगा?
कॉर्पोरेट आय में इजाफा दुनिया भर में देखने को नहीं मिल रहा है। इसका असर बाजार पर भी पड़ा है। इसके अलावा नकदी की हालत जैसे ही बेहतर होती है और हालात ठीकठाक होते हैं, आय में भी इजाफा होना चाहिए।
अभी तक विदेशी निवेश भारतीय इक्विटी बाजारों में बिकवाली ही कर रहे हैं। आप भारत में विदेशी धन की वापसी कब देख रहे हैं?
विदेशी निवेशक तो सभी बाजारों में बिकवाली कर रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ हफ्तों में एशिया में विदेशी निवेश आना शुरू हुआ है।
इसमें उतारचढ़ाव जारी रह सकता है क्योंकि निवेश अमेरिका से आने वाली खबरों के मुताबिक लिवाली या बिकवाली करते हैं। लेकिन हमारे हिसाब से निवेशकों को भारत में पैसा लगाने की अहमियत समझ में आनी चाहिए।
भारतीय रियल एस्टेट में निवेश का तरीका कैसा होना चाहिए?
रियल एस्टेट के दाम गिरे हैं, लेकिन ब्याज दरों में गिरावट और सरकारी नीतियों से इनमें फिर उछाल आ सकता है। हमें लगता है कि भारत में रियल एस्टेट की मांग बनी रहेगी।