सार्वजनिक क्षेत्र में सरकारी हिस्सेदारी को 51 फीसदी से कम रखने और नए विधेयकों केलागू होने तक सरकार नियंत्रित क्षेत्रों के विलय के प्रस्ताव के बाद वित्तीय क्षेत्र पर गठित समिति ने बैंकिंग क्षेत्र को धीरे-धीरे विदेशी बैंकों के लिए खोले जाने की बात कही है।
इसके अलावा कुछ अन्य क्षेत्रों में भी इस तरह के प्रावधान की बात कही गई है जिसमें कैपिटल अकाउंट कन्वर्टिबिलिटी और क्रेडिट डेरिवेटिव और ऐसेट सिक्योराइटाइजेशन शामिल हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए कैपिटल अकाउंट कन्वर्टिबिलिटी पर भारत सरकार और भरतीय रिजर्व बैंक के रवैये को दोहराया है।
समिति ने कहा है कि कैपिटल अकाउंट कन्वर्टिबिलिटी पर सरकार अपने रुख पर कायम है और चाहती है कि साथ ही साथ बाहरी और राजकोषीय क्षेत्र में अपेक्षाकृत कम महंगाई के साथ संतुलन बना रहे।
भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन की अध्यक्षता वाली समिति ने पाया कि मौजूदा वित्तीय संकट से भारतीय अर्थव्यवस्था उबर पाने में कामयाब रहेगी और मध्यम अवधि में 8 फीसदी की विकास दर हासिल कर पाने में सक्षम हो सकेगी।
समिति ने भारतीय अर्थव्यवस्था का गहराई से अध्ययन करने के बाद सबकुछ सकारात्मक पाया। हालाकि ऐसा नहीं हैं कि कुछ चिंताएं नहीं जुड़ी हुई हैं। वैश्विक वित्तीय संकट की मार से परेशान भारतीय अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सरकार की तरफ से जो उपाया किए गए उससे सरकार पर आर्थिक बोझ काफी ज्यादा बढ़ गया। इस बात को लेकर खासी चिंता भी व्यक्त की गई है।
इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया कि इस बात की संभावना है आंतरिक आय के स्रोतों के कमजोर पडने से कंपनियों के डेट-इक्विटी अनुपात में कुछ बदलाव हो सकते हैं। भारतीय वित्तीय क्षेत्र की सेहत का पता लगाने के उद्देश्य से किए गए इस अध्ययन में यह भी देखने को मिला कि गंभीर आर्थिक संकट के बावजूद वित्तीय क्षेत्र मजबूती के साथ डटा रहा और प्रस्तावित नियमों का भी बखूबी पालन किया।
एक ओर जहां बैंकों को क्रेडिट जोखिम का सामना नहीं करना पडा वहीं समिति ने बेहतर क्रेडिट ग्रोथ के समय बैंकों द्वारा किए गए उपायों के प्रतिकूल असर पर भी ध्यान आकर्षित किया गया।