बैंकों के लिए वित्त वर्ष 2008 की पहली तिमाही की आशाभरी शुरुआत आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच फंसती दिख रही है।
इस वर्ष की पहली तिमाही में मार्जिन घटने और बांड और डूबते कर्ज के लिए प्रॉविजनिंग में सुधार के चलते बैंक के मुनाफे में औसत इजाफा केवल 10 प्रतिशत ही रह सकता है। रिजर्व बैंक द्वारा महंगाई पर लगाम कसने केलिए किए गए मौद्रिक उपायों के कारण बैंको के कंज्युमर ग्रोथ और कॉरपोरेट लोन पर इसका असर पडा जिसके कारण बैंकों की होनेवाली आमदनी 17 प्रतिशत की धीमी गति से आगे बढ़ सकती है।
हालांकि तेल कंपनियों द्वारा अपनी आवश्यकताओं से निपटने केलिए बैंकों से कर्ज लिए जाने के कारण बैंको को थोड़ी राहत जरूर महसूस हुई है। बैंक का लोन पिछले साल के 24.6 प्रतिशत की तुलना में इस तिमाही में 26.3 प्रतिशत बढ़ा है। बैंकों के मुनाफे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेट इंटरेस्ट मार्जिन पर विपरीत असर पड़ने की उम्मीद है क्योंकि फंड के खर्चे में बढ़ोतरी और दूसरी तरफ बैंक से लोन लिए जाने की दर में भी कमी आई है।
एक ओर जहां बैंकों ने जमा दरों में 50 से 125 बेसिक प्वाइंट की बढ़ोतरी कर दी वहीं लेंडिंग दरों में बढ़ोतरी किए जाने के बावजूद भी बैंकों को उस अनुपात में फायदा नहीं हुआ। किसानों की कर्जमाफी, डिफाल्टरों की बढ़ती संख्या और एसेट की गुणवत्ता में गिरावट के कारण सार्वजनिक क्षेत्रों की बैंकों के मुनाफे पर इसका विपरीत असर पड़ सक ता है। आईसीआईसीआई बैंक का मुनाफा फीस आधारित इनकम और लेडिंग दरों की पुर्नसमीक्षा केकारण 28 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 980 करोड़ रुपये पहुंच सकता है।
विशेषज्ञों के एक सर्वे के अनुसार आईसीआईसीआई बैंक का कुल मुनाफा 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 4,300 करोड रुपया पहुंच सकता है जबकि नेट इंटरेस्ट इनकम 29.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 1916 रुपये पहुंच सकता है। बांड वैल्यू में आई कमी के कारण स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का मुनाफा 11.9 प्रतिशत की धीमी गति से बढ़कर 1,426 करोड रुपये पहुंच सकता है। बैंक ने पहले ही इस बात के संकेत दे दिए थे कि इस तिमाही में वह सेक्योरिटीज में आई गिरावट को पूरा करने के लिए 1,000 करोड़ रुपये का प्रावधान करेगी।
जून के महीने में महंगाई पर लगाम कसने के बहुत सारे उपाय किए गए जिसमें रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में बढोतरी कर दी और उसके बाद बैंकों ने अपनी पीएलआर दरों में बढाेतरी कर दी। भारतीय रिजवई बैंक द्वारा नगद आरक्षित अनुपात(सीआरआर) में बढ़ोतरी के बाद से बैंकों के नेट इंट्रेस्ट मार्जिन पर असर पड़ने की बात कही जा रही है। हालांकि बैंकों मे किसी भी संभावित मंदी से बचने के लिए जमा दरों और ऋण दरों में बढ़ोतरी कर दी है।
लेकिन फिर भी बैंकों के लाभ में कमी देखी जा सकती है। हालांकि कई बैंकरों ने कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक के फैसले के बाद बैंकों के के्रडिट ग्रोथ पर कोई खास असर नही पड़ा है लेकिन ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट के कर्जों में अवश्य कमी आई है।