facebookmetapixel
Flexi Cap Funds का जलवा, 5 साल में ₹1 लाख के बनाए ₹3 लाख से ज्यादा; हर साल मिला 29% तक रिटर्नTerm Insurance Premiums: अभी नए युवाओं के लिए कौन सा टर्म इंश्योरेेंस प्लान सबसे बेहतर है?Reliance Jio के यूजर्स दें ध्यान! इन प्लान्स के साथ मिलेंगे Netflix, Amazon और JioHotstar फ्री, जानें डिटेल्सअगस्त में Equity MF में निवेश 22% घटकर ₹33,430 करोड़ पर आया, SIP इनफ्लो भी घटाटाटा शेयर को मिलेगा Gen-Z का बूस्ट! ब्रोकरेज की सलाह- खरीदें, 36% अपसाइड का ​टारगेटJ&K के किसानों को बड़ी राहत! अब रेलवे कश्मीर से सीधे दिल्ली पार्सल वैन से पहुंचाएगा सेब, ‍13 सितंबर से सेवा शुरूITR Filing 2025: क्या इनकम टैक्स रिटर्न में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड से हुई आय के बारे में बताना जरूरी है?मुश्किल में अदाणी! रिश्वत केस सुलझाने की कोशिश ठप, आखिर क्यों आई ऐसी नौबतUP: नए बिजली कनेक्शन के नियमों में बड़ा बदलाव, लगाए जाएंगे सिर्फ स्मार्ट प्रीपेड मीटरभारत पर लगने जा रहा था 100% टैरिफ? क्या हुई ट्रंप और EU के बीच बातचीत

जब शेयर भाव आकर्षक होंगे तभी सौदों की संख्या बढ़ेगी

Last Updated- December 07, 2022 | 7:42 PM IST

निवेश बैंकों के लिए यह कठिन समय चल रहा है। वैश्विक क्रेडिट दबाव और साथ ही शेयर बाजार में गिरावट की वजह से इस साल विलय और अधिग्रहण कम हो रहे हैं।


यूरोप के निजी स्वामित्व वाले निवेश बैंक की भारतीय इकाई एन.एम. रॉशचाइल्ड एंड संस (इंडिया) के प्रबंध निदेशक संजय भंडारकर ने अभिनीत कुमार को बताया कि जैसे-जैसे बाजार सुधरता है और मूल्यांकन आकर्षक होता है वैसे ही भारत नॉन-फ्रेंडली सौदों की संख्या में बढ़त देख सकता है।

इस निवेश बैंक ने टाटा स्टील को ब्रितानवी कंपनी कोरस खरीदने में मदद की थी और केयर्न इंडिया को दो अरब डॉलर की सार्वजनिक पेशकश लाने में मदद की थी। उनसे बातचीत-

क्रेडिट दबाव और शेयर बाजार में गिरावट ने अधिग्रहण सौदों पर कितना असर डाला है?

सौदों की संख्या या वैल्यू किसी भी लिहाज से देखें तो साफ दिखता है कि इसमें कमी आ रही है। लोग ज्यादा चयन पसंद हो गए हैं। चाहे डेट के जरिए बाहर से पूंजी जुटानी हो या इक्विटी का रास्ता अपनाना हो, फंडिंग में कठिनाई हो रही है। इन सभी वजहों से स्पष्ट रूप से कम संख्या में सौदे हुए हैं। लेकिन जो सौदे हो रहे हैं, वे अच्छे हैं और औचित्यपूर्ण हैं।

सबसे बड़ी बाधा क्या है-पूंजी की अनुपलब्धता या अनिश्चित कारोबारी माहौल?

दोनों का मिश्रण है। मेरे अनुसार बड़ी बाधा ज्यादा फाइनेंस की अनुपलब्धता होगी। कुछ विस्तार में यह अनिश्चितता कीमतों में देखी जा सकती है। लेकिन यह नहीं कह रहा कि यह कोई मामला नहीं है।

कितनी और कितने विस्तार तक कर्ज की लागत में वृध्दि हुई है?

यह नाटकीय ढंग से बढ़ी है लेकिन बेस घटा है और सुनिश्चित आधार पर लागत ज्यादा नहीं बढ़ी है। लेकिन यह उपलब्ध फाइनेंसिंग की मात्रा है जो एक बाधा बन गई है। लीवरेज के साथ पूंजी की सुनिश्चित मात्रा जो आप जुटा सकते हैं, कठिन होती जा रही है।

दूसरी बात यह है कि इस तरह के ज्यादातर सौदे ब्रिज लोन के तहत फाइनेंस किए गए जिन्हें तब पूंजी पेशकश को बाहर लाने केलिए लाया गया था। यह एक चुनौती बनती जा रही है। कैपिटल मार्केट जिन हालात में हैं, लोग शार्ट-टर्म लोन लेने के बारे में कम निश्चित हैं, यह न जानकर भी उनके पास शार्ट टर्म पीरियड में रिफाइनेंस करने की क्षमता होगी।

क्या भारतीय विलय और अधिग्रहण बाजार मेच्योरिटी दिखा रहा है क्योंकि प्रवर्तक अपनी फ्लैगशिप कंपनियां बेचने की इच्छा रख रहे हैं( जैसे रेनबैक्सी) और प्रतिकूल बोलियां अपनी उपस्थिति दिखा रही हैं (जैसे इमामी-झंडू सौदा)?

यह यह कहना बहुत जल्दी होगा कि यह एक रुझान है। लेकिन यह सत्य है कि अब ज्यादा लोग परंपरागत फ्रेमवर्क की जगह गैर-परंपरागत विकल्पों की ओर देख रहे हैं। वे यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह का सौदा फायदेमंद होगा। इसलिए आप ज्यादा मात्रा में सौदे देखेंगे। यह वॉल्यूम के साथ-साथ वैल्यू में भी बढ़ेंगे। आप अनफ्रेंडली सौदों की संख्या में बढ़ोतरी भी देखेंगे।

First Published - September 2, 2008 | 10:17 PM IST

संबंधित पोस्ट