योजना आयोग द्वारा गठित एक कमिटी का मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की अधिक हिस्सेदारी की वजह से बैंकों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
बैंकों व वित्तीय क्षेत्रों में सुधार लाने के लिए गठित इस कमिटी ने भविष्य में बैंकों में सुधार लाने के लिए कई सारे सुझाव पेश किए हैं। कमिटी की रिपोर्ट में बताया गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के वे बैंक जिनका प्रदर्शन बेहद खराब रहा है, उन्हें या तो बेच दिया जाना चाहिए या फिर सरकारी बैंकों में निवेशकों की हिस्सेदारी को और अधिक बढ़ा देना चाहिए।
वित्तीय क्षेत्रों में सुधार हेतु बनाई गई इस कमिटी के अध्यक्ष रघुराम राजन हैं। राजन यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर हैं। राजन ने बताया कि कमजोर बैंकों को बेचने से इस विलय के नतीजों का पता चल जाएगा और अगर इसके अच्छे नतीजे सामने आते हैं तो फिर बड़े पैमाने पर इस दिशा में कदम उठाए जाएंगे।
इस रिपोर्ट में अन्य बैंकों के लिए खासकर देश के बड़े बैंकों को सुझाव दिए गए हैं कि बैंकों को एक मजबूत बोर्ड की व्यवस्था करना चाहिए और साथ ही बाहरी शेयरधारकों को अधिक से अधिक अधिकार प्रदान किए जाने चाहिए। रिपोर्ट में निजी क्षेत्र के निवेशकों को भी शामिल करने की बात कही गई है। इसके अलावा, उस बोर्ड को यह भी जिम्मेदारी सौंपी जाएगी कि वह बैंक के उन उच्चस्तरीय कार्यकारियों पर नजर रखें, जिन्हें अच्छा मुआवजा (वेतन) दिया जाता है।
रिपोर्ट में बैंकों के लिए सुझाए गए दिशा-निर्देश में यह भी कहा गया है कि एजेंसियों की निगरानी से बैंकों को परे रखा जाना चाहिए। मसलन, बैंक को केंद्रीय सतर्कता आयोग और संसद से अलग रखना चाहिए।
इसके अलावा, बैंकों को चौकसी मुक्त करने के लिए अन्य सुझाव भी पेश किए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार एक नियंत्रण कंपनी की व्यवस्था कर सकती है या फिर सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों से सरकार अपने हिस्सेदारी को 50 फीसदी से भी कम कर दे। मसलन सरकार अपने शेयर को अन्य निजी कंपनियों में बेच सकती है।
इसका अर्थ यह हुआ कि उन बैंकों पर सरकार (मौटे तौर पर परिभाषित) का अधिकार तो होगा लेकिन सरकार (बारीक तौर पर परिभाषित) का उन बैंकों पर स्वामी कहा जाएगा।उल्लेखनीय है कि एनडीए सरकार ने इस मसौदे को आगे बढ़ाने का असफल प्रयास किया। उसने एक विधेयक पारित कराने की कोशिस की जिससे केंद्र को अपनी हिस्सेदारी कम कर 33 फीसदी करनी होती। लेकिन विधेयक को राजनीतिक समर्थन के अभाव में खारीज होने दिया गया।
हालांकि राजन कमिटी ने कहा कि अगर इन सिफारिशों को लागू कर दिया जाता है, तो सरकार को अपने कार्यक्रमों में फिर से बदलाव करना पड़ेगा। कमिटी ने बताया,”अगर बैंक को दुधारू गाय बनाना है तो देश के कमजोर बैंकों को बड़े बैंकों के साथ विलय किए जाने की सिफारिश को मंजूर कर लिया जाना चाहिए।”
मुख्य बातें
जर्जर हाल छोटे बैंकों को बेच दिया जाना चाहिए।
सरकार बैंकों से अपनी 50 फीसदी हिस्सेदारी कम करे।
निवेशकों से गठजोड़ करना होगा फायदेमंद।