नकदी की किल्लत झेल रहे सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों में 20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जमा होने की पूरी उम्मीद है।
दरअसल, यह रकम सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की ओर से जमा कराई जाएगी। वित्त मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र की सभी कंपनियां अपनी अतिरिक्त नकदी को सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों में जमा कराएं।
आंकड़ों के मुताबिक, 45 सूचीबद्ध सार्वजनिक कंपनियों की बैंकों में जमा रकम करीब 1,13,500 करोड़ रुपये है। कैप्टनलाइन के मुताबिक, ये आंकड़े मार्च 20008 तक के हैं। इनमें गैर-सूचीबद्ध दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल और ऑयल इंडिया लिमिटेड को शामिल नहीं किया है।
कंपनी के वरिष्ठ वित्तीय अधिकारियों का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र की ये कंपनियां अपनी 10 से 40 फीसदी नकदी को निजी बैंकों में जमा रखती हैं। हालांकि अब कुछ निजी बैंक इतनी तादात में रकम जमा करने से इनकार कर रहे हैं। निजी बैंकों का कहना है कि जमा इसलिए नहीं स्वीकार किए जा रहे हैं, क्योंकि ब्याज दर महंगा होने से यह सौदा महंगा पड़ रहा है।
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि वर्तमान में निजी बैंक उनकी जमा रकम पर सरकारी बैंकों की तुलना में 2 फीसदी अधिक ब्याज देते हैं। ऐसे में 20,000 करोड़ रुपये निजी बैंकों की बजाए सरकारी बैंकों में जमा कराने का मतलब है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को तकरीबन 400 करोड़ रुपये सालाना का नुकसान होगा।
सेल के एक अधिकारी ने बताया कि निजी बैंकों में पिछले महीने से जमा की जाने वाली रकम में कटौती की जा रही है। लेकिन उन्होंने इस बात का खुलासा नहीं किया कि यह रकम कितनी है। सेल का बेंगलुरु मुख्यालय स्थित केनरा बैंक में खाता है।
स्टील निर्माता कंपनी सेल नकदी के मामले में तीसरी सबसे बड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है। सितंबर 2008 तक निजी बैंकों में इसने अपनी कुल जमा रकम का करीब 15 फीसदी जमा कराया हुआ है। वित्त मंत्रालय ने एक माह पहले ही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया है कि वे अपनी रकम को सरकारी बैंकों में जमा कराएं।
मंत्रालय ने यह भी तय किया कि कोई भी कंपनियां ब्याज दरों को बढ़ाने के लिए निविदा आमंत्रित नहीं कर सकती है। वित्त मंत्रालय की ओर से यह कदम इसलिए उठाया गया, क्योंकि वित्तीय संकट की स्थिति में बैंकों को नकदी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। यही वजह है कि बैंक कॉरपोरेट को कर्ज देने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं।
ऐसे में सरकार बैंकों के पास पर्याप्त मात्रा में नकदी उपलब्ध कराने पर जोर दे रही है, ताकि बैंक आसानी से कर्ज दे सकें। मुंबई स्थित एक विश्लेषक ने बताया कि अगर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां अपनी रकम को सरकारी बैंकों में जमा कराती हैं, तो सरकार बैंकों पर कर्ज देने का दबाव बना सकती है। हालांकि इससे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को ब्याज से होने वाली रकम में थोड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
देश की सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी ओएनजीसी अपनी जमा रकम में से 25,000 करोड़ रुपये भारतीय स्टेट बैंक में जमा कराने का निर्णय लिया है। उल्लेखनीय है कि ओएनजीसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली कंपनी है।
ओएनजीसी के एक अधिकारी ने बताया कि कंपनी के बोर्ड ने यह तय किया है कि कंपनी अपनी अतिरिक्त रकम को स्टेट बैंक में जमा कराएगी। वर्तमान में ओएनजीसी अपनी कुल जमा में से 15 फीसदी निजी बैंकों में जमा कराती रही है, जबकि शेष करीब 20 फीसदी रकम स्टेट बैंक में जमा कराती है।
कुछ माह पहले कंपनी ने 1,000 करोड़ रुपये की जमा के लिए विभिन्न बैंकों से ब्याज दरों के लिए कोटेशन की मांग की थी और 11 फीसदी सालाना दर पर उसने जमा करने पर सहमति जताई थी। इसी तरह ऑयल इंडिया लिमिटेड और हिंदुस्तान पेट्रोलियम का 12 फीसदी की दर पर करीब 200 करोड़ रुपये जमा है।
हालांकि कोल इंडिया लिमिटेड ने वित्त मंत्रालय के फैसले पर नाराजगी जताई है। कोल इंडिया के चेयरमैन पार्थ एस. भट्टाचार्य ने कहा कि कंपनी अपनी जमा रकम को निजी बैंकों से नहीं हटाएगी। कंपनी के कुल जमा में से करीब 25 फीसदी हिस्सा निजी बैंकों के पास है।
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को सरकारी बैंकों में रकम जमा कराने का निर्देश
सरकारी बैंकों में करीब 20,000 करोड़ रुपये जमा हो सकते हैं
इन कंपनियों को ब्याज दरों से होने वाला फायदा होगा कम
बैंकों को नकदी की उपलब्धता कराने के लिए वित्त मंत्रालय ने किया है यह फैसला
बैंक कर्ज देने में होंगे सक्षम