वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई उथल-पुथल की वजह से एल ऐंड टी के हेज फंड को भी 500 लाख रुपये का झटका लगा है। विशेषज्ञों का कहना है कि विदेशी एक्सचेंज डेरिवेटिव्स मार्केट में भारतीय कंपनियों को जो नुकसान होगा, वह विदेशी मुद्रा के अदला-बदली की वजह से होगी और इन डेरिवेटिव्स की परिपक्वता मार्र्च के बाद पूरी होगी। यानी कंपनियों के घाटे का पता मार्च के बाद पता चलेगा।
मुंबई स्थित विदेशी विनिमय सलाहकार के मुताबिक, कई कंपनियों इतना घाटा उठाना पड़ा है, जितना कि उनका सालाना मुनाफा होता है। हालांकि वे इसका जिक्र करना नहीं चाहते हैं।
एक कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, हार्डवेयर के कारोबार से जुड़ी कंपनी को 81 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। दरअसल, वर्ष 2007 की अंतिम तिमाही में कंपनी ने अनधिकृत विदेशी एक्सचेंज डेरिवेटिव्स के साथ कारोबार किया था। उल्लेखनीय है कि कंपनी ने वर्ष 2007 में 110.07 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया था।
गौरतलब है कि बैंकों ने अपने डेरिवेटिव्स बड़ी और छोटी, दोनों कंपनियों को बेचा है। हालांकि ये डेरिवेटिव्स मार्च के बाद परिपक्व होंगे। ऐसे में कंपनियां इसके घाटे को चालू वित्त वर्ष में शामिल करने की जरूरत नहीं होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि वास्तव में कंपनियों को यह घाटा अगले वित्त वर्ष की पहली और दूसरी तिमाही में उठाना पड़ेगा।
मैकलाई फाइनैंशियल के सीईओ जमाल मैकलाई का कहना है कि कंपनियों को तकरीबन 4,000 करोड़ रुपये का घाटा होने का अनुमान है। हालांकि कुछ लोगों का मानना हैकि यह घाटा 12,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। जमाल ने बताया कि यह आंकड़ा काफी ज्यादा है। कल पता चला कि एक कंपनी ने विदेशी डेरिवेटिव्स एक्सचेंज में 150 करोड़ रुपये का निवेश किया है, जिसमें उसे 50 करोड़ का घाटा उठाना पड़ा है।
कुछ का मानना है कि बैंकों ने कंपनियों को धोखे में रखकर सभी तरह के डेरिवेटिव्स बेचे हैं। ऐसे ही एक मामले में कागज औैर स्टेशनरी उत्पाद निर्माता कंपनी सुंदरम मल्टी पेपर ने विदेशी डेरिवेटिव्स उत्पादों में घाटा होने पर आईसीआईसीआई बैंक के खिलाफ अदालत में वाद दायर किया है।
कई कंपनियों ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से इसकी शिकायत भी की है। यही नहीं, कई अन्य भी मुकदमा दायर करने की तैयारी में हैं। दरअसल, ये केवल मुद्रा की अदला-बदली का मामला नहीं है। विदेशी डेरिवेटिव्स एक्सचेंज के एक जानकार ने बताया कि बैंकों ने आकर्षक औैर जटिल प्रारूप के तहत अपने डेरिवेटिव्स को बेचा है, जिसे कई लोग समझ ही नहीं पाए।
मुंबई स्थित रिस्क मैनेजमेंट के सलाहकार ए वी राजवाड़े ने बताया कि बैंकों के ओर से बेचे गए डेरिवेटिव्स के बारे में कई कंपनियां अच्छी तरह समझ नहीं पाईं, तो कुछ ने लालच में आकर उसकी खरीदारी की।
राजवाड़े ने बताया कि कई कंपनियां हेजिंग और ह्रास के बीच के अंतर को समझ ही नहीं सकीं। यही वजह है कि बाजार बेहद जोखिम भरा हो गया है।
जमाल ने बताया कि बाजार की इस स्थिति से परंपरागत लेखांकन स्तर का पता चलता है, जबकि अन्य देशों में मार्क-टू-मार्केट घाटे का बाकायदा जिक्र किया जाता है। सच तो यह हैकि लेखांकन के प्रारूप को और दुरुस्त करने की जरूरत है।
लगभग सभी निजी बैंक, जैसे-यस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक यहां तक कि सार्वजनिक क्षेत्र के स्टेट बैंक ऑॅफ इंडिया ने ऐसे डेरिवेटिव्स को बेचा है। यही नहीं, ये कंपनियों को होने वाले घाटा की जिम्मेदारी से भी खुद को बचाने में सक्षम हैं।
हालांकि विदेशी एक्सचेंज के एक सलाहकार ने बताया कि बैंकों को यह भय है कि अगर कंपनियां उनके खिलाफ मुकदमा दायर करती है, तो उन्हें कंपनियों के नुकसान की भरपाई करनी होगी। उधर, शेयर बाजार सिर पर मंडराते खतरे से सचेत नहीं है। अगर लोग बैंकों के शेयर बेचने शुरू कर दें, तो स्थिति और बिगड़ सकती है।
जनवरी माह में जब बीएसई सूचकांक 20,873.33 अंक की रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंच गया था, तब बीएसई बैंकेक्स में 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी।
