facebookmetapixel
MCap: सात बड़ी कंपनियों का मार्केट कैप डूबा, SBI सबसे बड़ा नुकसान उठाने वालीIncome Tax Refund: टैक्सपेयर्स ध्यान दें! ITR में छूटी जानकारी या गलत दावा? अब सही करने का आखिरी अवसरZepto IPO: SEBI में गोपनीय ड्राफ्ट फाइल, ₹11,000 करोड़ जुटाने की तैयारीFake rabies vaccine row: IIL का बयान- रैबीज वैक्सीन से डरने की जरूरत नहीं, फर्जी बैच हटाया गयाDelhi Weather Update: स्मॉग की चादर में लिपटी दिल्ली, सांस लेना हुआ मुश्किल; कई इलाकों में AQI 400 के पारअरावली की रक्षा पर सुप्रीम कोर्ट का एक्शन, 29 दिसंबर को सुनवाईYearender 2025: टैरिफ और वैश्विक दबाव के बीच भारत ने दिखाई ताकतक्रेडिट कार्ड यूजर्स के लिए जरूरी अपडेट! नए साल से होंगे कई बड़े बदलाव लागू, जानें डीटेल्सAadhaar यूजर्स के लिए सुरक्षा अपडेट! मिनटों में लगाएं बायोमेट्रिक लॉक और बचाएं पहचानFDI में नई छलांग की तैयारी, 2026 में टूट सकता है रिकॉर्ड!

रिजर्व बैंक ओएमसी बदलेगा खेल

Last Updated- December 14, 2022 | 10:48 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा राज्य विकास ऋण (एसडीएल) या राज्यों द्वारा जारी बॉन्डों की द्वितीयक बाजार में खरीद का फैसला, निवेशकों के लिए इन बॉन्डों को गंभीरता से लेने व उन पर कारोबार शुरू करने की दिशा में अहम कदम है। अब तक केंद्रीय बैंक बाजारोंं को आश्वासन देता रहा है कि एसडीएल सुरक्षित हैं और इन बॉन्डों पर गारंटी निहित है। केंद्रीय बैंक कंसालिडेटड सिंकिंग फंड (सीएसएफ) बनाए रखता है, जिससे राज्यों की बाजार उधारी चलाई जाती है और अगर कोई चूक होती है तो ऐसी स्थिति में गारंटी मोचन निधि (जीआरएफ) का इस्तेमाल हो सकता है।
इसके बावजूद विदेशी निवेश इन बॉन्डों की खरीद को लेकर सुस्त हैं। क्लियरिंग कॉर्पोरेशन आफ इंडिया (सीसीआईएल) के आंकड़ों के मुताबिक 11 अक्टूबर तक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने अपनी 67,630 करोड़ रुपये निवेश सीमा के महज 1.03 प्रतिशत का इस्तेमाल किया था। सरकारी प्रतिभूतियों के मामले में इसका इस्तेमाल सीमा का 41.13 प्रतिशत है।
राज्यों के बॉन्ड से विदेशी निवेशकों के दूर रहने की कई वजह है। ये निवेशक मानते हैं कि राज्य का लेखा खुलासा अपारदर्शी है। कई राज्यों के वित्त पर भारी दबाव है और इसके साथ ही केंद्र सरकार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) बकाये के भुगतान को लेकर भी सुस्त नजर आ रहा है।
निवेशकों के दूर रहने की एक बड़ी वजह यह है कि ये बॉन्ड गैर नकदी हैं। इन बॉन्डों का कोई द्वितीयक बाजार नहीं है और राज्य हर उधारी नए बॉन्ड से लेते हैं। ये बॉन्ड सिर्फ 10 साल की श्रेणी में हैं, जिससे द्वितीयक बाताल में कारोबार व्यावहारिक रूप से असंभव हो जाता है। बहरहाल घरेलू निवेशक अभी भी इन बॉन्डों को खरीद रहे हैं।
लेकिन आपूर्ति ज्यादा होने से बाजार की चिंता बढ़ी है और निवेशक इसे लेकर अपनी नाखुशी जता रहे हैं। यह ऐसा मसला है, जिसका समाधान अब रिजर्व बैंक करना चाहता है। अपनी नीति में रिजर्व बैंक ने कहा है कि वह ओपन मार्केट ऑपरेशन (ओएमओ) संचालित करेगा, जिसके माध्यम से वह द्वितीयक बाजारों से बॉन्ड की बिक्री व खरीद करेगा, जिससे कि नकदी की स्थिति में सुधार हो और प्रभावी मूल्य बना रह सके। साथ ही यह भी जोर दिया गया है कि यह चालू वित्त वर्ष के दौरान विशेष मामले के रूप में किया जाएगा।
ओएमओ की सुविधा देकर रिजर्व बैंक ने पहले की तुलना में अपनी भूमिका बढ़ा दी है। कुछ लोगों ने रिजर्व बैंक की तुलना यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) से करनी शुरू कर दी है। इंडिया रेटिंग ऐंड रिसर्च में एसोसिएट डायरेक्टर सौम्यजीत नियोगी ने कहा, ‘राज्यों के बॉन्डों में ओएमओ ईसीबी के बॉन्ड करीद की तरह है, जो कई देशों का एक केंद्रीय हैंक है। इसे लेकर एक स्पष्ट ढांचा होना चाहिए, जिससे यह विभिन्न उद्देश्यों से जोड़ा जा सके। इस समय इसे जीएसटी मुआवजे में कमी के साथ जोड़ा जा सकता है।’

First Published - October 13, 2020 | 1:57 AM IST

संबंधित पोस्ट