सरकार 43 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को एक इकाई के तहत लाने के लिए नई नीति पर काम कर रही है। इसका मकसद इन बैंकों का प्रशासन बेहतर करना और बाजार से इक्विटी जुटाने में इनकी मदद करना है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकिंग के क्षेत्र में सुधार का खाका आगामी बजट मेंं पेश किया जा सकता है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) का कोई केंद्रीकृत प्रबंधन ढांचा नहीं है और उन्हें एक शीर्ष इकाई या होल्डिंग कंपनी के तहत लाने से उनकी कार्यप्रणाली को केंद्रीकृत करने में मदद मिलेगी।
अलग-अलग राज्यों में आरआरबी को चलाने का अलग पेशेवर अंदाज है। उन्होंने कहा कि अगर इनको एक इकाई के तहत रखकर इनका नियमन किया जाता है तो बैंकों को पेशेवर तरीके से चलाने में मदद मिलेगी। अगर इन 43 बैंकों को एक साझा प्रबंधन के तहत लाया जाता है तो इससे इनकी कुशलता में सुधार होगा और इन 43 बैंकों की 21,871 शाखाओं के नेटवर्क के लिए साझा रणनीति लागू करने में मदद मिलेगी।
यह भी उम्मीद की जा रही है कि इस प्रस्ताव से आरआरबी को प्रभावी तरीके से होल्डिंग कंपनी के माध्यम से बाजार से पूंजी जुटाने में मदद मिलेगी।
सरकार ने एक आंतरिक समिति का गठन किया था, जिसमें राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और भारतीय रिजर्व बैंक के सदस्य भी शामिल थे। इस मामले के जानकार एक और अधिकारी ने कहा कि समिति की सिफारिशें सरकार स्वीकार कर सकती है और इसकी घोषणा बजट में की जा सकती है।
सरकार द्वारा आरआरबी को व्यावहारिक बनाने के लिए समेकन करने के बाद इस कवायद से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकिंग क्षेत्र में एक और सुधार हो सकता है।
आरआरबी का गठन एक अधिनियम के तहत छोटे किसानों, कृषि श्रमिकों और ग्रामीण इलाकों के कारोबारियों को कर्ज मुहैया कराने के लिए किया गया था। इस तरह के बैंकों के मालिकाने का ढांचा अन्य सरकारी बैंकों से अलग होता है और इसमें केंद्र सरकार की 50 प्रतिशत, प्रायोजक बैंंक की 35 प्रतिशत और राज्य सरकारों की 15 प्रतिशत हिस्सेदारी होती है। आरआरबी की निगरानी नाबार्ड करता है।
इन बैंकों की सालाना योजना और वित्तीय स्थिति की निगरानी हर तिमाही रिजर्व बैंक और नाबार्ड करते हैं। करीब एक तिहाई आरआरबी का पूंजी पूंजी पर्याप्तता अनुपात 9 प्रतिशत से कम है और सरकार ने इन बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए 670 करोड़ रुपये डाले हैं। आरआरबी का कुल मिलाकर घाटा वित्त वर्ष 2019-20 में 2,206 करोड़ रुपये हो गया है, जबकि 2018-19 में शुद्ध नुकसान 652 करोड़ रुपये था।
2005 में सरकार ने ग्रामीण इलाकों के वित्तीय समावेशन में सुधार और बेहतर नकदी प्रवाह के लिए समेकन की कवायद की थी। 2005 में आरआरबी की संख्या 196 से घटाकर 43 कर दी गई। आरआरबी में समेकन 3 चरणों में किया गया है। पहले चरण में आरआरबी को राज्य के भीतर प्रायोजक बैंक में 2005 में विलय कर दिया गया। दूसरे चरण में 2012 में राज्य के भीतर प्रायोजक बैंकों में विलय किया गया। तीसरे चरण में 2019-20 में आरआरबी में छोटे राज्योंं में एक राज्य एक आरआरबी के सिद्धांत पर आरआरबी का समेकन किया गया और बड़े राज्यों में इनकी संख्या कम कर दी गई।
आरआरबी के समेकन का सुझाव भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा गठित वीएस व्यास समिति के सुझावों के आधार पर किया गया था, जिसने होल्डिंग कंपनी के गठन का भी सुझाव दिया था, जिसमें प्रायोजक बैंकों व नाबार्ड की इक्विटी होगी। उपरोक्त उल्लिखित अधिकारी ने कहा कि इसी तरह की होल्डिंग कंपनी की संभावना अब तलाशी जा सकती है।
अधिकारी ने कहा कि आरआरबी में प्रस्तावित बदलाव करके उन्हें होल्डिंग कंपनी के ढांचे में लाने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम 1976 मेंं संशोधन की जरूरत पड़ सकती है।
प्रस्तावित कदम के लाभ को लेकर विशेषज्ञों में मतभेद हैं। वित्तीय सेवा सचिव रहे डीके मित्तल का कहना है कि एक होल्डिंग कंपनी ढांचे के तहत आरआरबी को लाना तब तक कठिन है, जब तक कि केंद्र सरकार राज्यों व प्रायोजक बैंकों की हिस्सेदारी खरीद नहीं लेती है। उन्होंने कहा कि यह एक कृत्रिम ढांचा बनाने जैसा होगा और इससे पेशेवर तरीके से कामकाज चलाने में मदद नहीं मिलेगी।
बहरहाल इंडिया रेटिंग ऐंड रिसर्च में वित्तीय संस्थान विभाग के प्रमुख और निदेशक प्रकाश अग्रवाल का कहना है कि आरआरबी को एक इकाई के तहत लाने से मजबूती से निगरानी हो सकेगी, जिससे बैंकों को मजबूत करने में मदद मिलेगी।