– मौद्रिक नीति के रुख में बदलाव होने या नहीं होने पर अलग-अलग है अर्थशास्त्रियों और बाजार पर नजर रखने वालों की राय
– 4.90 फीसदी की मौजूदा रीपो दर में 35 से 50 आधार अंक बढ़ोतरी के आसार
– वैश्विक वृद्धि की चिंता और घरेलू महंगाई चरम पर पहुंच चुकने के आरबीआई अधिकारियों के बयानों से बंधी दर में कम बढ़ोतरी की उम्मीद
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) अपनी बैठक के बाद शुक्रवार को दरें बढ़ाने या नहीं बढ़ाने की घोषणा करेगी। मगर इस बात में शायद ही किसी को संदेह हो कि ऊंची महंगाई पर काबू पाने के लिए समिति रीपो दर में एक बार फिर बढ़ोतरी करेगी।
असली सवाल यह है कि बेंचमार्क नीतिगत दरों के कोविड-19 महामारी से पहले के स्तरों पर लौट आने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति का रुख बदलेगा या नहीं। इस मामले में अर्थशास्त्रियों और बाजार पर नजर रखने वालों की राय अलग-अलग है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड के एक सर्वेक्षण के मुताबिक एमपीसी रीपो दर में 35 से 50 आधार अंक की बढ़ोतरी कर सकती है। इस समय रीपो दर 4.90 फीसदी है। 35 आधार अंक इजाफे से भी नीतिगत दर बढ़कर 5.25 फीसदी पर पहुंच जाएगी। अर्थव्यवस्था को कोविड संकट से बचाने के लिए दर कटौती का दौर शुरू होने से पहले रीपो दर यही थी।
कोविड के दौरान ब्याज दरों में हुई कटौती अब पूरी तरह खत्म कर दी गई है। इसलिए कुछ अर्थशास्त्रियों को लग रहा है कि रिजर्व बैंक आगे मुट्ठी कसने का रुख जता सकता है क्योंकि महंगाई अब भी उसके हिसाब से सहज दायरे के ऊपर है। इस समय केंद्रीय बैंक घोषित तौर पर राहत और नरम नीति को वापस लेने पर काम कर रहा है।
इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के निदेशक सौम्यजित नियोगी ने कहा, ‘हम रीपो दर में 35 आधार अंक की बढ़ोतरी और रुख बदलकर तटस्थ किए जाने की उम्मीद कर रहे हैं। रीपो दर महामारी से पहले 5.15 फीसदी थी। इसे बढ़ाकर 5.25 फीसदी करने से दो संकेत मिलेंगे – पहला, महामारी से पहले का स्तर लक्ष्य नहीं है, जो बाजार का एक वर्ग मानता है और दूसरा, महंगाई से निपटने के लिए महामारी से पहले की तुलना में अधिक दर की दरकार है।’
रोचक बात यह है कि रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ाता नजर आ रहा है। लेकिन काफी हद तक ब्याज दरों के अनुमानों से तय होने वाला सरकारी बॉन्डों का प्रतिफल बता रहा है कि केंद्रीय बैंक नीतिगत सख्ती की रफ्तार सुस्त कर रहा है।
10 वर्षीय बेंचमार्क बॉन्ड का प्रतिफल 16 जून को तीन साल के सबसे ऊंचे स्तर 7.62 फीसदी पर पहुंच गया था, लेकिन अब इसमें 46 आधार अंक की गिरावट आ चुकी है। इसका प्रतिफल आज 7.16 फीसदी रहा।
रिजर्व बैंक का रुख नरम पड़ने की बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि वैश्विक वृद्धि की चिंताएं बढ़ी हैं और बैंक के अधिकारी कह रहे हैं कि महंगाई अपना चरम पहले ही छू चुकी है। बॉन्ड बाजार पर पहले ही भविष्य में दरों में अहम बढ़ोतरी का असर पड़ चुका है। इसका पता रीपो दर और 10 साल के बॉन्ड के प्रतिफल के बीच 200 आधार अंक के अंतर से चलता है।
बाजार की उम्मीदों को आकार देने में आरबीआई के रुख की अहम भूमिका होती है। रुख नरम हुआ तो केंद्रीय बैंक जरूरत से ज्यादा तरलता को बाजार से आसानी से सोख लेता है और उसे सके लिए त्वरित कदम नहीं उठाने पड़ते। महामारी के दौरान रिजर्व बैंक ने तंत्र मंव अधिक तरलता डाली थी और उसी ने उधारी दरें बढ़ने नहीं दीं।
एचडीएफसी बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता ने कहा, ‘आरबीआई आगामी नीति में अपना रुख बदलकर ‘संतुलित सख्त’ करने से परहेज कर सकता है क्योंकि क्योंकि इससे आर्थिक प्रणाली में तरलता और घट जाएगी। इससे ओवरनाइट रेट एसडीएफ के बजाय रीपो दर के नजदीक आ जाएगी। वृद्धि बरकरार है मगर वैश्विक उथलपुथल बढ़ गई है, जिससे केंद्रीय बैंक तरलता में अधिक कमी करने से पीछे रहेगा।’
पिछले कुछ महीनों में रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के रुख पर खासी बहस हुई है क्योंकि बैंक ने रुख बताते समय भाषा में बदलाव किए हैं। उदाहरण के लिए जब एमपीसी ने 4 मई को निर्धारित बैठक से इतर दर बढ़ोतरी कर दरों को सख्त करना शुरू किया था तो समिति के बयान में कहा गया था कि उसने दरों में कटौती वापस लेते हुए रुख नरम रखने का फैसला किया है। 8 अप्रैल को दरें जस की तस रखते समय भी समिति ने यहीकहा था।
लेकिन इसके बाद भी जून में समिति ने रीपो दर बढ़ा दी। उस बार इसने 50 आधार अंक का इजाफा किया और नरमी वाली बात हटा दी। उसने कहा कि अब राहत और नरमी खत्म करने पर उसका जोर है। आम तौर पर नरम रुख का मतलब होता है दरें कम करना और तरलता को बढ़ावा देना। मगर रुख नरम रखने की बात कहते हुए भी दरें बढ़ाने के मई के कदम से बाजार में भ्रम पैदा हुआ है।