भारतीय रिजर्व बैंक ने एक बार फिर शुक्रवार की प्राथमिक नीलामी में 10 वर्षीय बॉन्ड बेचने से इनकार कर दिया। यह उस घटनाक्रम के एक दिन बाद हुआ जब आरबीआई ने द्वितीयक बाजार से कोई बॉन्ड खरीदने से मना कर दिया था जबकि इन पर 10,000 करोड़ रुपये लगाने की योजना थी। यह लगातार चौथा मौका है जब केंद्रीय बैंक ने बाजार में 10 वर्षीय बॉन्ड नहीं बेचना चाहा और उसने अन्य बॉन्ड निवेशकों को बेचते देखता रहा। शुक्रवार की नीलामी के साथ 2020-21 की पहली छमाही का उधारी कार्यक्रम समाप्त हो गया। दूसरी छमाही का कैलेंडर जल्द जारी हो सकता है।
बॉन्ड डीलरों ने कहा कि केंद्रीय बैंक ने 10 वर्षीय बॉन्ड को विशिष्ट दर वाला बनाने का संकेत दिया है और इसे एक तरह से बाध्यकारी दर के संकेतक के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। वरिष्ठ बॉन्ड ट्रेडर ने कहा, कुछ हद तक यह बैंकों को संकेत भी है कि वे उधारी परिचालन से निश्चित तौर पर मुनाफा कमाएं, न कि सिर्फ ट्रेजरी से क्योंकि दूसरी तिमाही खत्म होने वाली है।
18,000 करोड़ रुपये के 10 वर्षीय बॉन्डों की नियोजित बिक्री में आरबीआई ने 17,863.90 करोड़ रुपये की बोली ठुकरा दी। बाकी अन्य बॉन्डों की 12,000 करोड़ रुपये की नीलामी आराम से हुई। 10 वर्षीय बॉन्डों की बिक्री हर पखवाड़े होती है। 11 सितंबर को आरबीआई ने 10 वर्षीय बॉन्डों का करीब-करीब पूरा बैच ठुकरा दिया था। उससे पहले 14 अगस्त और 28 अगस्त को आरबीआई ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था।
डीलरों ने कहा, बाजार को ये चीजें आश्चर्यचकित कर रही है कि केंद्रीय बैंक बाजार को मौजूदा प्रतिफल देने को तैयार नहीं है। 10 वर्षीय बॉन्ड की कट-ऑफ दर 6.0095 फीसदी पर आ गई। लेकिन 10 वर्षीय बॉन्ड का प्रतिफल 6.0384 फीसदी पर बंद हुआ। यह स्पष्ट तौर पर बताता है कि आरबीआई बाजार के प्रतिफल से खुश नहीं है और बॉन्ड बाजार को स्पष्ट तौर पर कह रहा है कि प्रतिफल को नीचे लाने की दरकार है। सरकार की रकम का प्रबंधक होने के नाते आरबीआई स्पष्ट तौर पर 6 फीसदी पर उधारी चाहता है, उससे ऊपर नहीं। आरबीआई हालांकि प्रतिफल को नीचे रखना चाहता है, लेकिन केंद्रीय बैंक का इरादा 10 वर्षीय बॉन्ड के प्रतिफल को नीचे रखने का है। 10 वर्षीय बॉन्डों के क्षेत्र में नीतिगत दरों का फायदा नहींं दिखा है, जितना कि तीन साल या उससे नीचे वाले बॉन्डों में नजर आया है। इंडसइंड बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री गौरव कपूर के मुताबिक, 10 वर्षीय बॉन्डों व रिवर्स रीपो दरों के बीच स्प्रेड काफी ऊंचा बना हुआ है और जरूरत से ज्यादा आपूर्ति की चिंता के बावजूद आरबीआई के लिए यह सही है कि वह प्रतिफल में थोड़ी गिरावट देखना चाहता है, खास तौर से इतने ज्यादा नकदी के कदमों के बाद। गुरुवार की ओएमओ खरीद को रद्द करने का आरबीआई का फैसला यह भी बताता है कि बैंक आसान नकदी के साथ आर्बिट्रेज में दिलचस्पी ले रहे हैं, न कि इस रकम को उधार दे रहे हैं।