के वी कामत आईसीआईसीआई टावर के दसवें माले पर स्थित अपने नए केबिन में जाने की तैयारी कर रहे हैं। आज से उनकी भूमिका बदल जाएगी और वे आईसीआईसीआई बैंक के गैर-कार्यकारी अध्यक्ष बन जाएंगे।
एक दशक से अधिक समय तक नारायण वागुल इस पद पर बने रहे। श्यामल मजूमदार और सिध्दार्थ को दिए अपने साक्षात्कार में 61 वर्षीय इस बैंकर का कहना था कि वे ग्राहकों से मिलना पहले ही बंद कर चुके हैं और अपना अधिकांश वक्त अध्ययन में लगाना चाहते हैं। बातचीत के अंश:
आपके कार्यालय के आस पास निर्माण कार्य चल रहे हैं। क्या सबकुछ पहले से बेहतर लग रहा है?
रियल एस्टेट मंदी से उबर रहा है। हालिया संकेतों के आधार पर देखें तो खरीदारी में दिलचस्पी लौट रही है हालांकि अभी भी बिल्डरों और खरीदारों में अभी भी कुछ दूरी है।
पिछले छह महीनों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की वजह से तेजी का माहौल रहा, शहरी क्षेत्र जस के तस रहे लेकिन अब हमारी वापसी हो रही है। सबसे बुरे दिन लद चुके हैं। साल 2008 की अंतिम तिमाही में वास्तव में धारणाएं ऋणात्मक थीं। मध्य जनवरी से इसमें सुधार होना शुरू हुआ और धारणाओं में बदलाव स्पष्ट देखा जा सकता है।
आईसीआईसीआई बैंक पिछली दो-तीन बुनियादी परियोजनाओं, जैसे सासन अल्ट्रा-मेगा पावर परियोजना, से दूर क्यों था?
हम क्या करेंगे और क्या नहीं इसकी नीति हमारा अंदरुनी निर्णय है। इस बात के लिए हमारी अपनी नीति है कि कॉपोरेट या रिटेल के क्षेत्र में हम किस हद तक जाएंगे। कल चंदा द्वारा बताई गई विस्तृत नीतियों का हम अनुसरण करेंगे। अगर राष्ट्रीय स्तर पर विकास की रफ्तार बाधित होती है तो मुझे इसमें ज्यादा दिलचस्पी होगी।
तो अब जिंदगी में व्यस्तता कुछ कम होगी?
जब मैं 46 साल का था और इंडोनेशिया में रहता था तो मैंने तय किया था कि अब काम नहीं करुंगा और अध्ययन करुंगा। मेरी पत्नी का मानना था कि मैं कुछ जल्दी ही सेवा निवृत्त हो रहा हूं।
हालांकि, ऐसा नहीं हो सका क्योंकि वागुल ने मुझे आईसीआईसीआई में बुला लिया। अब मैं ज्यादा परिपूर्ण होना चाहता हूं। मैं अध्ययन शुरू करना चाहता हूं जैसा कि सभ्यता का इतिहास। मैंने दर्शनशास्त्र या अध्यात्म का कुछ भी नहीं पढ़ा है। लोग केवल मेरी उपलब्धियां देखते हैं लेकिन मैं परिपूर्ण नहीं हूं।
नई सरकार से आपकी क्या उम्मीदें हैं?
हमें विकास को ही फोकस में रखना चाहिए। हमें और तेज गति से विकास की कोशिश करनी चाहिए। 10 फीसदी की विकास दर हासिल करने के लिए पहले तो हमारे लक्ष्य साफ होने चाहिए। इसके बाद ही हमें इस दिशा की तरफ कदम उठाने चाहिए।
मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों को आपस में जोड़ देना चाहिए क्योंकि दुनिया अब उस दिशा में बढ़ रही है, जहां तरलता कोई मुद्दा नहीं रह जाएगी। हम बुनियादी ढांचे के मामले में भी काफी कुछ कर सकते हैं। हालांकि, इससे शुरुआत में सरकारी खर्च बढ़ता नजर आएगा, लेकिन बुनियादी ढांचे से जुड़े प्रोजेक्टों की वजह से ही आज कई मुल्कों की तस्वीर आज बदल चुकी है।
मिसाल के तौर पर 2000 में शुरू हुई आखिरी सड़क परियोजना, स्वर्णिम चतुर्भुज, से औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई थी।
क्या सचमुच ब्याज दरें कम हो रही हैं?
कर्ज में कमी की वजह से बाजार में भी बॉन्ड अलग-थलग नजर आ रहा है। बाजार को अब भी आश्वासन की जरूरत महसूस हो रही है। यह तभी हो सकता है, जब नई सरकार सत्ता में आएगी।
मिसाल के तौर पर मेरे मुताबिक कर्ज का पैमाना अब भी काफी ऊंचा है, लेकिन अब आप स्पेक्ट्रम और विनिवेश के मुद्दे पर भी स्पष्ट कदम उठाने होंगे। इससे कर्ज में थोड़ी कमी आ सकती है। जिस वक्त आपने इस बारे में ऐलान कर दिया, 10 सालों का मुनाफा कम हो जाएगा और आपको एक संतुलित बेंचमार्क मिल जाएगा।
आप ऐसे वक्त में अपनी कुर्सी छोड़ रहे हैं, जब आपके बैंक को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है?
कई लोग कहेंगे कि कैरियर के इस उठान पर अपनी कुर्सी छोड़ कर, मैंने सही कदम उठाया है। लेकिन यह सही जवाब नहीं है। मैंने आईसीआईसीआई की नींव एक ऐसे संस्थान के रूप में नहीं रखी है, जो सिर्फ अगली तिमाही को ध्यान में रखकर कदम उठाए। वागुल ने आईसीआईसीआई की स्थापना एक सोच के साथ की थी। मैंने भी उन्हीं के नक्शे कदम पर चल रहा हूं।
जब मैंने कमान संभाली, तो मैं जरूरी बदलावों सें अच्छी तरह से परिचित था। साथ ही, मैं यह भी जानता था कि ये बदलाव रातोंरात नहीं आ सकते। पिछले 10 सालों में हमने तरक्की की ऊंचाइयों को चूमा और विकास की राह पर आगे बढ़ते रहना सीखा। पहली कामयाबी हमें रिटेल सेक्टर में मिली, जिससे काफी हौंसला मिला।
उसके बाद हमने यह बात सामने रखी है, देसी कारोबारियों को दुनिया से जोड़ने के लिए पहले देश को दुनिया से जुड़ना पड़ेगा। हालांकि, 2003 के उस दौर में हमारी बात पर किसी ने भरोसा नहीं किया। कामयाबी का अगला कदम था कॉर्पोरेट भारत का 2003 के बाद से तेजी से आगे बढ़ना। इसके बाद हुआ ग्रामीण भारत का उदय, जिसमें आज काफी पैसा निवेश किया जा चुका है। अगर हम सिर्फ तिमाही नतीजों का ध्यान रखते, तो हम इतना आगे कभी नहीं बढ़ पाते।
