नाबार्ड केंद्र सरकार द्वारा किसानों के ऋण माफ किए जाने के बाद नकदी की दिक्कतों से जूझ रहे सहकारी और क्षेत्रीय बैंकों की मदद करेगा।
नकदी के संकट से उन्हे उबारने के लिए नाबार्ड ने इन बैंकों को वित्त्तीय वर्ष 2009 में सहायता के रुप में 7,000 करोड़ रुपए देने का निर्णय लिया है। नाबार्ड ने यह फैसला बैंकों की बढ़ी हुई क्रेडिट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लिया है।
नाबार्ड यह 7,000 करोड़ रुपए 32,000 करोड़ केअपने पूर्व निर्णय से अतिरिक्त देगा। नाबार्ड के चेयनमैन यूसी सारंगी ने कहा कि इस वित्त्तीय वर्ष में कर्जमाफी की स्कीम की वजह से राज्यों के सहकारी बैंक को 7,000 करोड़ के लिक्विडिटी सपोर्ट की जरुरत होगी। इस तरह नाबार्ड अब ग्रामीण क्रेडिट संस्थाओं में पिछले वित्तीय वर्ष की अपेक्षा 39,000 करोड़ रुपए लगाएगी जबकि पिछले साल नाबार्ड ने इस मद में 24,000 करोड़ की राशि खर्च की थी।
इसमें से छोटे समय का लक्ष्य 22,000 करोड़ रुपए है जबकि पिछले साल यह 15,000 करोड़ रुपए था। इसीतरह इस बैंक की मार्केट बारोइंग भी 26,000 करोड़ के करीब रहेगी। नाबार्ड इस वित्त्तीय वर्ष में पहले ही 3,000 करोड़ रुपए जुटा चुकी है। इसके अलावा नाबार्ड के पास 5,000 रुपयों का रिजर्व है जबकि बैंक के पास 5,000 करोड क़ी सरकारी सहायता भी है। सारंगी ने कहा कि जबकि हमारे पास 13,000 करोड़ की राशि उपलब्ध है तो हम बाकी राशि बाजार से कर्ज लेकर जुटाएंगे।
इसके अलावा इस लिक्विडिटी सपोर्ट के लिए नौ फीसदी ब्याज लिया जाएगा जबकि रिफाइनेंस के 3.5 फीसदी से यह काफी ज्यादा है। इसकी वजह है कि इस लिक्विडिटी सपोर्ट को सरकारी सहायता उपलब्ध नहीं है। फिक्की बैंकिंग कॉनक्लेव 2008 के दौरान सारंगी ने कहा कि चूंकि कोई सबवेंशन नही है इसलिए ब्याज दरें ऊंची होंगी। इसलिए सहकारी बैंकों को हमने सलाह दिया है कि वे कुछ राशि लिक्विडिटी सपोर्ट के रुप में ले और कर्ज देना शुरु करें। एक बार लेंडिंग के बाद यह राशि रिफाइनेंस के अधीन आ जाएगी। कर्जमाफी की घोषणा के बाद कर्ज की वापसी की दर में कमी आई है।