एस. श्रीधर, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने तकरीबन तीन हफ्ते पहले ही सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के सीएमडी का पद संभाला है। इससे पहले उन्होंने एक्जिम बैंक और नैशनल हाउसिंग बैंक के साथ काम किया है लेकिन वाणिज्यिक बैंक के लिए वह बहुत नए हैं। उन्होंने अभिजीत लेले के साथ अपनी नई भूमिका के संदर्भ में बात की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश:
आप अपने आकलन से अवगत कराएं कि बैंक किस तरह की चुनौतियों से रूबरू होता है?
बैंक उपभोक्ता केंद्रित संगठन होता है और यही उसका सबसे प्रमुख एजेंडा होता है। बैंक के पास लंबे समय तक के लिए अपने उपभोक्ताओं से संबंध बनाता है व्यावसायिक वृद्धि के लिए यह बेहद खास चीज है। कर्मचारियों की योग्यता में सुधार और समय के हिसाब से काम के तरीके में आधुनिक होना बेहद जरूरी है।
दिसंबर 2008 के अंत तक प्रति कर्मचारी औसत व्यावसाय उत्पादकता 5.49 करोड़ रुपये थे जो एक साल पहले के 3.82 करोड़ रुपये से ज्यादा है। कुछ मामूली मुद्दे को छोड़कर तकनीकी अपग्रेडेशन जिसमें कोर बैंकिंग का बेहतर इस्तेमाल शामिल है, वह बेहद जरूरी है। कर्मचारियों की दक्षता और तकनीकी पहल से बैंक को एक आधुनिक रूप मिलेगा।
सरकार ने हाल ही में बैंकों के लिए 700 करोड़ रुपये का आवंटन किया है और वर्ष 2009-10 में भी अतिरिक्त 700 करोड़ रुपये देंगे। इससे बैंक को किस तरह से मदद मिलेगी?
इससे पूंजी पर्याप्तता अनुपात में सुधार होगा और ग्राहकों को कर्ज देने के लिए भी सहूलियत होगी। इससे बैंलेंस शीट में भी विस्तार होगा। दूसरा फायदा यह है कि इससे के्रडिट रेटिंग में सुधार होगा। तीसरी तिमाही के अंत में कुल पूंजी पर्याप्तता 10.02 फीसदी है। इस पैसे से पहले दर्जे की पूंजी को मजबूती मिलेगी। इसके साथ ही पहले दर्जे के उपकरणों के ब्याज दरों में भी इस हफ्ते मजबूती आने की उम्मीद की जा रही है।
आपके बैंक ने पिछले महीने होम और ऑटो लोन पर ब्याज दरों को कम किया है। इस पर किस तरह का रिस्पॉन्स मिल रहा है?
ग्राहकों की ओर से मांग में बढ़ोतरी के संकेत मिल रहे हैं। हमने 5 लाख तक की होम लोन दरों पर पर ब्याज दर घटाकर 8 फीसदी कर दिया है। यह बहुत ही छोटे स्तर का व्यावसायिक क्षेत्र है। यह फायदा 5-20 लाख रुपये तक के लोन की श्रेणी में भी है और हमारे पास आने वाले रिस्पॉन्स भी बढ़ ही रहे हैं।
मौजूदा तिमाही में आपका प्रदर्शन कैसा रहा है क्योंकि आमतौर पर यह बेहद व्यस्तता का समय होता है? साल दर दर कर्ज और जमा की बढ़ोतरी का प्रदर्शन कैसा रहेगा?
तीसरी तिमाही मसलन अक्टूबर-दिसंबर 2008 के मुकाबले मौजूदा तिमाही तक बैंक से लोन की मांग में बहुत सुधार आया है। वैसे मैं वित्तीय वर्ष के खत्म होने के बाद इसके आंकड़ों पर अपनी कोई टिप्पणी दूंगा। पिछली तिमाही के अंत तक सकल अग्रिम की साल दर साल बढ़ोतरी दर 38.3 फीसदी थी और दिसंबर के अंत तक सकल अग्रिम 81,467 करोड़ रुपये रही है।
इस महीने सरकारी बॉन्ड पर मिलने वाले लाभ कम हो गए हैं। इससे आपके सरकारी प्रतिभूतियों के पोर्टफोलियों की कीमत पर कैसे असर पड़ेगा?
यह असर बहुत सकारात्मक नहीं होगा। देखिए मार्च के बाकी बचे दिनों में लाभ में किस तरह का बदलाव आता है।
बकाये जैसे जोखिम की संभावनाओं को लेकर बैंक क्या कार्रवाई करेगा?
बैंक इस तरह की जोखिम से वाकिफ है और मेरी कोशिश ज्यादा सक्रिय रहने की होगी। हमने पहले से ही व्यवहार्य खातों की पुर्नसंरचना का काम शुरू कर दिया है जो अस्थायी नकदी के प्रवाह की परेशानियों से जूझता रहता है। दिसंबर 2007 में सकल गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए)में 4.37 फीसदी की जबरदस्त कमी आई।
जबकि पिछले साल दिसंबर में इसमें 2.81 फीसदी की कमी आई। हमारा जोर इस बात पर होगा कि खातों को एनपीए की श्रेणी में आने से बचाएंगी। इसके अतिरिक्त उद्योग में किस तरह का चलन है इस पर गहरी निगाह डालने से भी अंदाजा मिलेगा।
