वित्तीय सेवाओं का विभाग के सचिव देवाशिष पांडा ने कहा है कि संपत्ति पुनर्गठन और संपत्ति प्रबंधन कंपनी से 2.25 लाख करोड़ रुपये की दबाव वाली संपत्तियों के समाधान में मदद मिलेगी। ऐसी कंपनी को ‘बैड बैंक’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कहा, ‘अगर दबाव वाली 2.25 लाख करोड़ रुपये की इन संपत्तियों की बिक्री होती है तो इससे मिलने वाला पैसा बैंकों के खाते में आ जाएगा।’
इंडियन बैंक एसोसिएशन ने यह विचार पेश किया था। सरकार ने इस तरह के संस्थान के गठन की जरूरत महसूस की, क्योंकि इस समय दुनिया महामारी के दौर से बाहर आ रही है और फंसे कर्ज की समस्या और बढ़ सकती है। इस समय 3-4 संपत्ति पुनर्गठन कंपनी (एआरसी) हैं, जिनकी क्षमता 500 करोड़ रुपये की करीब 70 संपत्तियों के समाधान की है। संपत्ति पुनर्गठन और संपत्ति प्रबंधन कंपनी की स्थापना सार्वजनिक व निजी दोनों बैंकों द्वारा की जाएगी और सरकार की इसमें कोई हिस्सेदारी नहीं होगी। बैंक अपनी संपत्तियों को नेट बुक वैल्यू (संपत्ति के प्रावधान के मूल्य) के आधार पर स्थानांतरित कर सकेंगे। इसमें करीब 15 प्रतिशत नकद सौदा होगा और 85 प्रतिशत प्रतिभूति प्राप्तियों के माध्यम से होगा। बैंकों के लिए यह नकदी तटस्थ सौदा होगा। बैंक सरकार से कुछ प्रावधान के लिए कुछ गारंटी का अनुरोध कर सकते हैं, जो सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी।
उसके बाद संपत्ति प्रबंधन कंपनी अनुभवी पेशेवरों की टीम कुछ समय के लिए संपत्ति का परिचालन करेगी, निवेशक या एक एआईएफ तलाशेगी, जिसे बाजार मूल्य खोज व्यवस्था के तहत निपटाया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘पैसे वापस पाने के हिसाब से यह सभी बैंकों के लिए लाभदायक होगा।’
बैंकों का निजीकरण : सभी बैंक निजीकरण के पात्र हैं। सचिवों की समिति फैसला करेगी कि किस बैंक का निजीकरण किया जाए। बैंकों के निजीकरण के लिए कानूनी बदलाव किया जाएगा और फैसले को लागू करने के लिए दीपम से सहयोग लिया जाएगा। नीति आयोग सबसे पहले कंपनियोंं की जांच करेगा, कि किनका निजीकरण होगा और इस प्रस्ताव पर सचिवों का प्रमुख समूह विचार करेगा और उसके बाद वैकल्पिक व्यवस्था द्वारा अंतिम फैसला किया जाएगा।
बैंकों में पूंजी डालना : चालू वित्त वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पूंजीकरण के लिए करीब 14,000 करोड़ रुपये का लंबित आवंटन पर्याप्त होगा। बैंकों ने पहले ही बाजार से करीब 51,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं और उम्मीद की जा रही है कि इस साल बैंक बाजार से 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये और जुटाएंगे।
विकास वित्त संस्थान : बुनियादी ढांचा के वित्तपोषण में लंबे समय के लिए पूंजी की जरूरत होती है और अभी यह शुरुआती अवस्था में है। सॉवरिन समर्थित संस्थान विवेकपूर्ण है, जिससे सॉवरिन वेल्थ और पेंशन फंडों जैसे निवेशकों को भरोसा मिलेगा। एक संस्थान होने से सुविधा प्रदाता की भूमिका निभाने में मदद मिलेगी। यह बॉन्ड बाजार में संभावनाओं के दोहन में अहम भूमिका निभा सकेगा। इसकी विकासात्मक भूमिका में परियोजनाओं की रियल टाइम निगरानी भी हो सकेगी।
