भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) के सदस्य शशांक भिड़े ने कहा कि बीती तीन तिमाहियों से मुद्रास्फीति की दर ऊंची बनी हुई है जिसका कारण दामों पर बाहरी दबाव है और इस मुद्दे से निपटने के लिए समन्वित नीतिगत प्रयासों की जरूरत होगी। भिड़े ने कहा कि मुद्रास्फीतिक दबाव बहुत अधिक है और यह भारत की महंगाई से निपटने की रूपरेखा के लिए निश्चित ही एक परीक्षा है।
खुदरा मुद्रास्फीति छह फीसदी से ऊपर
उन्होंने कहा, ‘2022-23 की दूसरी तिमाही में उच्च मुद्रास्फीति रही, इससे पहले दो तिमाही में भी मुद्रास्फीति ऊंचे स्तर पर थी। ईंधन और खाद्य वस्तुओं के ऊंचे दाम और अन्य क्षेत्रों पर इसके असर ने मुद्रास्फीति की दर को अधिक बना रखा है।’ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी 2022 से छह फीसदी से ऊपर बनी हुई है, सितंबर में यह 7.41 फीसदी थी। मौद्रिक नीति समिति (MPC) RBI की द्विमासिक मौद्रिक नीति पर निर्णय लेते वक्त खुदरा मुद्रास्फीति पर गौर करती है।
खपत और निवेश मांग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा
भिड़े ने कहा, ‘इस स्थिति की वजह बाहरी मूल्य आघात हैं और बाकी की अर्थव्यवस्था पर इसके असर को सीमित करने के लिए कदम उठाना आवश्यक है। इन मुद्दों से निपटने के लिए समन्वित नीतिगत प्रयासों, मौद्रिक नीति और अन्य आर्थिक नीतियों की जरूरत होगी।’ उन्होंने कहा कि RBI की मौद्रिक सख्ती का उद्देश्य मुद्रास्फीतिक दबावों को कम करना होता है क्योंकि मुद्रास्फीति का ऊंचे स्तर पर बने रहने का खपत और निवेश मांग पर प्रतिकूल असर पड़ता है। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की तीन नवंबर को विशेष बैठक होने जा रही है। दरअसल RBI को सरकार को यह रिपोर्ट देनी है कि वह जनवरी से लगातार तीन तिमाहियों से खुदरा मुद्रास्फीति को छह फीसदी के लक्ष्य से नीचे रखने में क्यों विफल रहा है।
रिपोर्ट तैयार करेगी MPC
RBI गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में छह सदस्यीय एमपीसी यह रिपोर्ट तैयार करेगी जिसमें मुद्रास्फीति के लक्ष्य को पाने में विफलता के कारण बताए जाएंगे। इसके अलावा यह भी बताया जाएगा कि देश में दामों में नरमी लाने के लिए केंद्रीय बैंक ने क्या उपाय किए हैं। भारत की मौजूदा व्यापक आर्थिक स्थिति के बारे में भिड़े ने कहा, ‘जोखिम अनिश्चित वैश्विक माहौल से आता है, हालांकि चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि करीब सात फीसदी रहने का अनुमान है।’