तेल की कारोबार करनेवाली कंपनियां क्रेडिट ग्रोथ को बढ़ावा दे रही है।
बैंकिंग सेक्टर के क्रेडिट में शुरूआती महीनों में कमी देखने को मिली लेकिन फिर इस वित्त वर्ष के पहले सात सप्ताहों में इसने अपने क्रेडिट में 16,000 करोड़ रुपये के एडवांस जोड़ने में सफल रही।
गौरतलब है कि तेल की कीमतें बढ़ने के कारण घरेलू तेल कंपनियां जैसे इंडियन ऑयल कार्पोरेशन, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम को लिक्वीडिटी की कमी का सामना करने के लिए कर्ज लेने पड़े लिक्वीडिटी में कमी रिटेल प्राइस में तेजी आने के कारण हुआ जिससे तेल कंपनियां काफी परेशान हो गई थी।
इसके परिणामस्वरूप इंडियन ऑयल को इस वित्त वर्ष के शुरूआती दो महीनों में ही बैंक से करीब 6,000 करोड़ रुपये उधार लेने पड़ गए जिससे इसके बैंक से लिए कुल उधार बढ़कर 41,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया। कंपनी के अधिकारी ने बताया कि पिछले साल इसी समय कंपनी ने बैंकों से अपेक्षाकृत कम उधार लिया था, हालांकि अधिकारी ने इसकी कोई संख्या बताने से इनकार कर दिया।
ठीक इसी तरह हिन्दुस्तान पेट्रोलियम ने भी वित्त वर्ष 2008-09 के पहले दो महीनों में लगभग 2000 करोड़ रुपये बैंक से उधार लिए। कंपनी के एक कार्यकारी ने बताया कि यह राशि दोगूनी के बराबर है। बैंक तेल कंपनियों से दो तरीके से जुड़ी रहती हैं,एक ऑयल बांड में इनवेस्टमेंट के जरिए और दूसरी तेल कं पनियों को उधार देकर। तेल कंपनियों को वाहनों के ईंधन और रसोई गैस को अंतर्राष्ट्रीय कीमतों से कम कीमतों पर बेचने के लिए बांड इश्यू किए गए थे।
एसबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बाजार की खस्ता हालत के बावजूद हमने सरकार नियंत्रित तेल कंपनियों को उधार देने की ब्याज दरों में हमने कोई बढ़ोतरी नहीं की है। एक बैंकर ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में हम ब्याज दरों में बढ़ोतरी करते हैं लेकिन इन तेल कं पनियों से हमारे रिश्ते अच्छे होने की वजह से और यह जानते हुए कि ये सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियां हैं,हमने ब्याज दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की है।
सार्वजनिक क्षेत्र की एक बैंक के प्रमुख ने बताया कि इन तेल कंपनियों के साथ हमारे संबंध बहुआयामी हैं। उन्होंने बताया कि तेल कंपनियां उधार लेने के अलावा रुपये भी डिपोजिट करती है।