साल 1998 -एचडीएफसी की फिक्सड होम लोन की दरें 10 लाख से कम कीमत वाले घरों के लिए 13 से 17 फीसदी की थीं जबकि उससे ज्यादा कीमत वाले घरों की पर 18 फीसदी के ब्याज दर होते थे।
2008 -फिक्सड होम लोन की दरें 14 फीसदी की पर हैं और ऊपर की ओर ही अग्रसर हैं। किसी भी व्यक्ति के लिए अपना घर होना एक सपने जैसा होता है लेकिन शेयर बाजार के निवेशक और घर खरीदने की आस लगाए लोग दस साल पहले और आज की तेजी (ब्याज दरों की) को लेकर चिंतित हैं।
आज की इस महंगाई के दौर में अपना घर होना वाकई मुश्किल हो चला है। जिस कदर रिटेल लोन में इजाफे हुए हैं उसे देखकर तो यही लग रहा है। एचडीएफसी ने 1999 में फ्लोटिंग रेट की अवधारणा लांच की थी। भारत के प्राइवेट सेक्टर के सबसे बड़े बैंक आईसीआईसीआई ने 1999 से होम लोन देना शुरू किया। 90 के दशक की बात करें तो हाउसिंग इंडस्ट्री पूरे शबाब पर था। घर की कीमतें बिल्डरों की मर्जी का गुलाम हुआ करती थीं।
मसलन, बिल्डरों के द्वारा घर की कीमत जो कही जाती थी वह कर्ज मिलते मिलते तक कुछ और बढ़ जाती थी। ऐसी स्थिति डेढ़ साल पहले भी थी जब घंटों में या कहा जाए कुछ ही दिनों में कीमतें कहां से कहां पहुंच जाया करती थी। 1995 के बाद से 1998-99 तक संपत्तियों की कीमतों में खासी गिरावट देखने को मिली। कुछ जगहों पर तो कीमतों में 30 से 35 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिली। इस बारे में कई प्रॉपर्टी कंसल्टेंटों ने यह महसूस किया कि छह महीने पहले जो करेक्शन का दौर शुरू हुआ है वह शायद और आगे बढ़ सकता है।
विशेषकर, खरीदार अपने घर लेने के फैसलों को फिलहाल ठंडे बस्ते में डालना शुरू कर दिया है। पॉर्क लेन प्रॉपर्टी एडवाइजर के सीईओ अक्षय कुमार कहते हैं कि 1998 में मांग ज्यादा होने के बावजूद कीमतें पहले तो काफी ज्यादा चढ़ीं फिर बाद में इनमें काफी तेज गिरावट दर्ज हुई जिसने खरीदारों को खरीदारी करने के फैसलों को स्थगित करने पर मजबूर किया। अभी भी खरीदार और गिरावट होने के इंतजार में हैं। और सिर्फ प्रॉपर्टी बाजार ही नहीं बल्कि शेयर बाजार के निवेशक भी कुछ अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे।
मसलन अप्रैल 1998 की बात करें तो उस वक्त सेंसेक्स 4,100 अंको पर था जो उसी साल जुलाई में 25 फीसदी की गिरावट के साथ 3,200 अंकों पर पहुंच गया। इसी साल की बात करें तो जनवरी के बाद से शेयर बाजार ने 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की है। इसके अलावा डाइरेक्ट शेयरों और म्युचुअल फंड के निवेशकों को भी इस लगातार जारी गिरावट के कारण बाहर निकलने का रास्ता नही मिल रहा है। हालांकि निश्चित तौर पर कुछ चीजें बदली हैं। मसलन प्रति व्यक्ति आय की बात करें तो यह अब 9,244 रुपये से सीधे 24,321 रुपये हो गया है।
नतीजतन इस दौरान प्रॉपर्टी कीमतों में कुल 300 फीसदी का उछाल दर्ज हुआ। बकौल कुमार जिस बांद्रा-खार इलाके में कीमतें 5,000 से 7,000 रुपये स्क्वायर फीट के आसपास हुआ करती थीं वही अब चढ़कर 15,000 से 20,000 रुपये प्रति स्क्वायर फीट पर पहुंच गई हैं। हालांकि दो सालों के बीच सबसे ज्यादा अंतर 1998 में देखने को मिला जब हम करेक्शन चक्र के लगभग अंतिम दौर में थे। बल्कि सेंसेक्स भी 1999 में चढ़कर 5,000 अंकों के स्तर पर था।