इक्विटी बाजार में चल रहे मंदी के दौर और नगदी की समस्या के चलते इनवेस्टमेंट बैंकरों को इनवेस्टमेंट बैंकिंग के लिए ली जाने वाली फीस को घटाने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
थाम्सन रायटर्स के आंकड़ों के मुताबिक भारत में इनवेस्टमेंट बैंकिंग की फीस में सालाना आधार पर 37.8 फीसदी की गिरावट आई है। विश्लेषक इसकी वजह वैश्विक अर्थव्यवस्था में चल रही मंदी की वजह से डील एक्टीविटी और अधिग्रहण-विलय में आई कमी को बताते हैं। घरेलू बाजार में जनवरी की अपनी ऊंचाई से 35 फीसदी से भी ज्यादा की गिरावट आ चुकी है।
जिससे निवेशकों और इश्यू जारी करने वाली कंपनी दोनों का आईपीओ मार्केट से विश्वास उठा है। कई कंपनियों ने आईपीओ लाने के अपने फैसले को टाल दिया है या उससे हांथ खींच लिया है। गिरते बाजार ने प्राइवेट इक्विटी डील पर भी प्रभाव डाला है और पीआईपीई (प्राइवेट इक्विटी इन पब्लिक इंटरप्राइजेस) में कमी देखी गई है। हालांकि पूरे एशिया पैसेफिक क्षेत्र में इनवेस्टमेंट बैंकिंग फीस में 19 फीसदी की गिरावट आई है लेकिन भारत में बाजार के कमजोर होने की वजह से ज्यादा गिरावट आई है।
भारत के विलय-अधिग्रहण सौदों में पिछले साल के इसी समय की तुलना में 51.1 फीसदी की गिरावट आई है। इसके अतिरिक्त लोन सिंडीकेशन ने इक्विटी कैपिटल मार्केट में पिछले साल के 69.4 फीसदी के बढ़ोतरी की जगह सिर्फ 66 फीसदी की बढ़ोतरी देखी। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 31.3 मिलियन डॉलर के 31 इनवेस्टमेंट बैंकिंग सौदे किए जबकि 26.3 मिलियन डॉलर के 18 सौदों के साथ मेरिल लिंच का दूसरा स्थान रहा। इनवेस्टमेंट बैंकिंग में एनर्जी, पॉवर और टेलीकॉम सेक्टर की इनवेस्टमेंट बैंकिंग के सौदों में आधी हिस्सेदारी रही।