जब देश की अर्थव्यवस्था 11 साल की सबसे कम वृद्धि दर के साथ आगे बढ़ रही है ऐसे में भारतीयों ने अपनी उधारी को कम करते हुए सकल आर्थिक बचत में इजाफा किया है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी सालाना रिपोर्ट में यह आंकड़े प्राप्त हुए हैं।
वर्ष 2019-20 में देश में घरों की शुद्ध आर्थिक बचत व्यय योग्य आय के 7.6 प्रतिशत पर रही जो साल 2018-19 के 6.4 प्रतिशत के मुकाबले तेज इजाफा है। वित्त वर्ष 2011-12 में यह सबसे कम रही थी।
हालांकि बचत में यह तेजी नए एवं तात्कालिक कारकों पर निर्भर रही है। विशेषज्ञों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इनमें से अधिकांश बचत आय में इजाफे के बजाय एहतियाती कदमों के कारण की गई है जिसके कारण भविष्य में इसमें दोबारा कमी देखी जा सकती है। वित्त वर्ष 2020 के दौरान प्रति व्यक्ति आय में पिछले एक दशक में सबसे धीमी वृद्धि दर देखने को मिली है तथा विशेषज्ञों के अनुसार इस दौर में आर्थिक बचत में तेजी भविष्य में उपभोक्ताओं द्वारा खर्च में तेज कमी की ओर इशारा करती है।
आसान भाषा में कहा जाए तो लोग की उधारी क्षमता पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले कम हुई है और उनकी हालिया बचत बैंक जमाओं के तौर पर देखी जा सकती हैं। हालांकि इस समय बैंकों द्वारा जोखिम उठाने के चलते बैंक जमाएं आर्थिक निवेश का बेहतर विकल्प नहीं हैं और यह स्थिति इन जमाओं को सामान्य स्थिति के मुकाबले कम उत्पादक बनाती है।
एक बड़ा संकेत यह भी मिला है कि वित्त वर्ष 2019-20 में लोगों ने सरकार को धन प्रदान करने वाली योजनाओं में निवेश को कम करके बीमा तथा सेवानिवृत्ति फंड की ओर रूख किया है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि कोरोना महामारी के चलते लोग अधिक सावधानी बरत रहे हैं जिससे बचत एवं निवेश की हालिया स्थिति में इजाफा हो सकता है। एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्या कांति घोष ने कहा कि वित्त वर्ष 21 के दौरान आय में इस हालिया गिरावट और गिरावट की प्रवृत्ति के बावजूद घर-परिवारों की शुद्ध आर्थिक बचत इस वर्ष भी बेहतर रह सकती है, लेकिन चूंकि सामान्य रूप से लोग अधिक नकदी के रूप में एहतियातन बचत कर रहे हैं, इसलिए बैंक जमा और यहां तक ??कि सेवानिवृत्ति कोष को भी अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि इसलिए उपभोक्ता मांग में पुनरुद्धार हमारे अनुमान की तुलना में कठिन होगा। शुद्ध वित्तीय बचत सकल बचत और देनदारियों का शेष हैं। परिवारों की सकल वित्तीय बचत कुल राष्ट्रीय डिस्पोजेबल आय (जीएनडीआई) का 10.5 प्रतिशत रही हैं जो दशक के औसत के करीब है। लेकिन वित्तीय देनदारियां जो वित्तीय संस्थानों को परिवारों के भुगतान के बारे में बताती हैं, वित्त वर्ष 20 के दौरान जीएनडीआई के 2.9 प्रतिशत के चार साल के निचले स्तर पर आ गई हैं।
आरबीआई केआर्थिक नीति एवं अनुसंधान विभाग द्वारा घरेलू वित्तीय बचत के अपनी तरह के पहले तिमाही विश्लेषण में इस संबंध में कुछ तथ्य उपलब्ध किराए गए हैं। इससे यह जानकारी मिलती है कि जून में वित्त वर्ष 20 की शुरुआत के दौरान परिवारों की वित्तीय देनदारियां नकारात्मक थीं। इस बात से यह पता चलता है कि पिछले वर्ष की जून तिमाही में लोगों ने नई उधारी से किनारा किया था और इसके परिणामस्वरूप अब पूरे वित्त वर्ष में शुद्ध वित्तीय बचत में सुधार हुआ है।
परिवारों की सकल वित्तीय बचत (जीएनडीआई) में बैंकों में जमा की गई पूंजी, भविष्य निधि, पेंशन योजनाएं, शेयर, बीमा और मुद्रा जैसी श्रेणियां शामिल हैं। ये बचत निवेश के लिए घरेलू वित्त का एक पूल बनाती है जो रोजगार सृजन के लिए महत्वपूर्ण हैं और वर्तमान में यह काफी अहम है क्योंकि ये आर्थिक सुधार की गति तय करने के लिए महत्त्वपूर्ण साबित होंगे।
परिवारों की वित्तीय बचत के आरबीआई के आकलन से पता चलता है कि सरकार का दावा वित्त वर्ष 2020 में शून्य के स्तर पर आ गया जो वित्त वर्ष 2019 में खर्च करने योग्य आमदनी का 1 प्रतिशत तक था जबकि बीमा फंड के योगदान में सुधार दिखा और यह एक साल में जीएनडीआई के 1.3 से 1.7 फीसदी के स्तर पर आ गया। आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में शुद्ध वित्तीय बचत में सुधार का संकेत देने वाले आंकड़ों के साथ एक चेतावनी नोट भी था।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘यह सुधार वित्तीय परिसंपत्तियों की तुलना में घरेलू वित्तीय देनदारियों में आई तेज नरमी के कारण हुआ है। कोविड-19 से संबंधित आर्थिक बाधाओं की वजह से 2019-20 की चौथी तिमाही में परिवारों की वित्तीय परिसंपत्तियों में तेज गिरावट आई।’
