सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को इस समय भारी दुविधा का सामना करना पड़ रहा है और वे कर्ज की दरों में बढ़ोतरी करने का कोई निर्णय नहीं ले पा रहे हैं।
इन बैंकों को लगता है कि इसका सीधा असर उनकी बॉटम लाइन ग्रोथ पर पड़ेगा। चार बैंकों के कार्यकारियों ने बताया कि वे ब्याज दरों में अनुमानित बढ़ोतरी के कर्जदाताओं पर पड़ने वाले प्रभाव की समीक्षा कर रहे हैं। इनमें छोटी एवं मझोली कंपनियां और छोटे कर्जदार शामिल हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के एक कार्यकारी ने कहा कि हमें कर्ज लेने वालों की ब्याज दरों में बढ़ोतरी सहन करने की क्षमता को भी ध्यान में रखना होगा। क्योंकि उनमें से कई ब्याज दरों में बढ़ोतरी के लिए तैयार हैं लेकिन डिफॉल्ट का जोखिम भी बढ़ने की संभावना है। गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल में रेपो रेट में 0.50 फीसदी और सीआरआर में 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी की थी और अब दोनों नौ फीसदी के स्तर पर पहुंच गई है।
पिछली बार भी वित्त मंत्रालय ने बैंकों से ब्याज दरों में होने वाली बढ़ोतरी को स्वयं ही वहन करने के लिए कहा था। लेकिन एक सरकारी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार इस बार सरकारी बैंकों के प्रमुखों को कोई निर्देश जारी नहीं किए गए हैं। एक सूत्र ने कहा कि वे हमारे विकास को लेकर विचारों के प्रति जागरूक हैं और ब्याज दरों में बढ़ोतरी के दौरान इसका ध्यान रखेंगे।
अभी तक सिर्फ पंजाब नेशनल बैंक, आईडीबीआई बैंक और पंजाब और सिंध नेशनल बैंक ने प्रधान कर्ज दरों में बढ़ोतरी की है जबकि दूसरे अन्य बैंकों ने इस पर अभी फैसला नहीं लिया है। ओरियंटल बैंक ऑफ कामर्स और बैंक ऑफ इंडिया ने सिर्फ अलग अलग मेच्योरिटी की जमा दरों में बढ़ोतरी की है। वित्त मंत्री की विभिन्न सरकारी बैंकों के प्रमुखों के साथ 13 अगस्त को मीटिंग होनी है और अधिकांश बैंक तब तक ब्याज दरों में किसी भी प्रकार की बढ़ोतरी से बचना चाहते हैं।