अमेरिका के भारतीय निर्यात पर शुल्क लगाने के फैसले का असर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) पर भी देखने को मिल सकता है। अपने एमएसएमई पोर्टफोलियो में तनाव की स्थिति से बचने के लिए बैंक सतर्क हो गए हैं और वे अब ऋण बांटने के मामले में जोखिम नहीं लेने का दृष्टिकोण अपना सकते हैं। यही नहीं, वे निर्यात-उन्मुख एमएसएमई को नए ऋण देने की गति धीमी कर सकते हैं। यह बात बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में बैंकों के अधिकारियों ने कही। उन्होंने कहा कि इसके अलावा बैंक इस खंड को ऋण देते समय अधिक गारंटी की मांग सकते हैं।
एक सरकारी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘कारोबार के लिए हमें एमएसएमई के बीच यह अवश्य देखना होगा कि वे निर्यात-उन्मुख हैं या नहीं। क्योंकि हम नहीं चाहते कि निर्यात की राह में आने वाला तनाव हमारे आंकड़ों को प्रभावित करे। लगभग 45-50 प्रतिशत एमएसएमई निर्यात-उन्मुख हैं, इसलिए किसी भी प्रकार के तनाव से बचने के लिए जोखिम से बचने की रणनीति अपनाई जा सकती है। यही नहीं एक बैंक के रूप में हम एमएसएमई को ऋण देते समय और कड़ा रुख अपना सकते हैं।’
ट्रंप प्रशासन ने 1 अगस्त से भारत से आयातित वस्तुओं पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाया है। साथ ही रूसी हथियारों और तेल खरीदने के लिए एक अनिर्दिष्ट जुर्माना भी थोपा है। विशेषज्ञों ने बताया कि इससे भारत के एमएसएमई क्षेत्र की वृद्धि बाधित होगी। यह मोटे तौर पर कपड़ा, रत्न-आभूषण, फुटवियर और फर्नीचर जैसे निर्यात आय पर निर्भर है। अब 25 प्रतिशत शुल्क लगने की स्थिति में ये एमएसएमई अमेरिका के साथ कारोबार में चीन और वियतनाम जैसे देशों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, यूको बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, आईसीआईसीआई बैंक और ऐक्सिस जैसे कुछ बैंक एमएसएमई क्षेत्र के साथ बड़े स्तर पर कारोबार करते हैं। निजी क्षेत्र के बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘एमएसएमई को नए ऋण देने पर असर पड़ सकता है।’ इसके अलावा ये बैंक खासकर कुछ निचले स्तर के ग्राहकों को ऋण देने के लिए रहन या गिरवी शर्तों को बढ़ा सकते हैं या उच्च ब्याज दरों पर रकम देने की रणनीति अपना सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘कुल मिलाकर क्रेडिट वृद्धि प्रभावित नहीं होगी और बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता भी खराब नहीं होगी। हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि टैरिफ के कारण बदलते हालात का कुछ क्षेत्रों में कुछ तनाव देखने को मिल सकता है। एमएसएमई भी उनमें से एक है।’
अर्थशास्त्रियों के अनुसार, एमएसएमई जो टैरिफ के प्रभाव के साथ संतुलन नहीं बना सकते, उन्हें मार्जिन में कमी की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इससे उनके भुगतान में देरी हो सकती है या ऑर्डर रद्द होने जैसी समस्या आ सकती है। इससे बिना बिकी इन्वेंट्री का बोझ बढ़ सकता है। इसलिए कार्यशील पूंजी में कमी और नकदी संकट का सामना भी उन्हें करना पड़ सकता है। एमएसएमई क्षेत्र की परिसंपत्ति गुणवत्ता अब तक स्थिर बनी हुई है। एमएसएमई मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार इस क्षेत्र में सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) इस साल 31 मार्च तक कुल अग्रिम का 3.59 प्रतिशत तक गिर गई हैं, जो वित्त वर्ष 20 में 11.03 प्रतिशत थीं।
सरकार के मजबूत समर्थन वाले सरकारी बैंकों ने केंद्रीय योजनाओं के तहत एमएसएमई क्षेत्र को ऋण देने की गति बढ़ा दी है। वित्त वर्ष 25 में एमएसएमई ऋण खुदरा और सेवा क्षेत्रों से आगे निकल गया और बैंक क्रेडिट में समग्र गिरावट के बीच इसमें 14.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इस उछाल को सीजीएफएमयू और ईसीएलजीएस जैसी सरकारी गारंटी योजनाओं का समर्थन मिला।
वित्तीय क्षेत्र की रेटिंग एजेंसी इक्रा के उपाध्यक्ष और सेक्टर हेड सचिन सचदेव ने कहा, ‘अमेरिकी शुल्क से निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों के लिए वैल्यू चेन में मौजूद संस्थाएं अधिक प्रभावित हो सकती हैं। इससे न केवल ऋण मांग पर असर पड़ेगा, बल्कि संपत्ति गुणवत्ता के दृष्टिकोण से भी चिंता बढ़ेगी। क्योंकि उनकी नकद धनराशि का प्रवाह प्रभावित होगा। फिर भी, किसी भी सरकारी प्रोत्साहन या अन्य बाजारों में बदलाव से उन्हें प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी। इस पर हर समय निगरानी बनाए रखनी होगी।’