वैसे समय में जब बैंक बढ़ते डिफॉल्ट और फंसे कर्जों को लेकर चिंतित थे। बंबई उच्च न्यायालय के एक फैसले से उन्हें काफी राहत मिली है।
बंबई उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि कर्ज को फंसा कर्ज मानना उसे बट्टे-खाते में डालने के लिए अंतिम माना जाएगा और इस पर वे आयकर में छूट का दावा कर सकते हैं।
ओमान इंटरनेशनल बैंक द्वारा आयकर में छूट के दावे के विरुध्द आयकर विभाग की अपील पर उच्च न्यायालय ने अपना फैसला बैंक के पक्ष में देते हुए कहा कि फंसे कर्जों का वर्गीकरण करना आयकर अदाकर्ता (इस मामले में बैंक) का वाणिज्यिक निर्णय है और खातों में इसे शामिल किए जाने के बाद इसे फंसा हुआ कर्ज ही माना जाएगा।
आयकर अदाकर्ता के ऊपर बट्टे-खाते में डाले गए कर्ज को सचमुच फंसा हुआ कर्ज साबित करने का आगे कोई बोझ नहीं होगा और इस प्रकार आयकर अदाकर्ता फंसे कर्ज के विरुध्द उस साल आयकर में छूट का दावा कर सकता है जिस वर्ष फंसे कर्ज की राशि को बट्टे-खाते में डाली गई है।
इस प्रकार, इस बात का दायित्व अब आयकर विभाग का हो जाता है कि अगर वह आयकर अदाकर्ता के तर्कों से संतुष्ट नहीं है तो साबित करे कि कर्ज वास्तव में फंसा हुआ कर्ज नहीं है। साल 2007 में एपीलेट अथॉरिटी ने ओमान इंटरनेशनल बैंक के ऐसे ही मामले में निर्णय दिया था जिसमें विभाग की हार हुई थी।
धारा 36 में किए गए संशोधन के अनुसार, ऐसे छूट अब धारा 36 (1)(7) के तहत आ गए है। न्यायालय का नजरिया है कि यह कानून फंसे कर्ज के वर्गीकरण को लेकर काफी स्पष्ट है और कहता है कि फंसे कर्जों और संदिग्ध ऋणों के लिए किए गए छोटे प्रावधानों को बट्टे-खाते में डाल कर आयकर में छूट का दावा नहीं किया जा सकता है।
वास्तव में बट्टे-खाते में डालने और आयकर में छूट के दावे के लिए इन कर्जों की उगाही नहीं किया जा सकना जरूरी है। वास्तव में इस नियम में संशोधन आयकर अदाकर्ता और आयकर अधिकारियों के बीच उठने वाले विवादों को देखते हुए किया गया था। अदालत ने परिभाषित किया कि अगर खाते से बकाया ऋण उगाही की कोई उम्मीद नहीं है तो उसे फंसा हुआ कर्ज माना जाना चाहिए।
आयकर अधिकारियों का नजरिया है कि कंपनियां इसका इस्तेमाल कर अदा करने से बचने के लिए करते हैं। अच्छे कारोबारी समूह अपना अतिरिक्त फंड वित्तीय रूप से कमजोर अपनी कंपनियों में रखते हैं। ऐसी कमजोर कंपनियां ऋण पर ब्याज अदा नहीं करतीं और इस कर्ज को बट्टे-खाते में डाल दिया जाता है।
