देश के बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र ने वर्ष 2019-20 में अपनी गिरकर संभलने की क्षमता दिखाई है, लेकिन बकाया ऋणों में से करीब 40 फीसदी स्थगन के तहत हैं। ऐसे में वित्तीय प्रणाली की आस्ति गुणवत्ता में तेज गिरावट आ सकती है। यह बात भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से आज जारी सालाना रिपोर्ट ‘भारत में बैंकिंग का रुझान एवं प्रगति’ में कही गई है। रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2019-20 में बैंकिंग क्षेत्र के प्रदर्शन का आकलन किया गया है और आगामी समय को लेकर भी कुछ विचार पेश किए गए हैं। समीक्षाधीन वर्ष में आस्ति गुणवत्ता, पूंजी स्थिति और मुनाफा मजबूत हुआ है। कुल फंसे हुए ऋणों (जीएनपीए) का अनुपात मार्च, 2018 के अपने सर्वोच्च स्तर से थोड़ा नीचे आया है। यह सितंबर, 2020 के आखिर में 7.5 फीसदी पर आ गया। यह सुधार कम स्लीपेज और ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के तहत बड़े खातों के समाधानों की बदौलत आया है। स्लीपेज सितंबर, 2020 में गिरकर 0.74 फीसदी पर आ गया। नए स्लीपेज सबसे अधिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में रहे।
हालांकि वर्ष 2020-21 में नीतिगत प्रोत्साहन वापस लिए जाने के बाद कोविड-19 महामारी का असर बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की सेहत पर दिख सकता है। सितंबर 2020 के आखिर में जीएनपीए का अनुपात 7.5 फीसदी के सामान्य स्तर पर रहा है, जो अंदरूनी कमी को ढक दे रहा है। आरबीआई ने कहा कि अगर कोविड-19 राहत उपाय के रूप में आस्ति गुणवत्ता को नहीं रोका जाता तो एनपीए अधिक होता। केंद्रीय बैंक ने कहा कि कोविड-19 की वजह से पैदा अनिश्चितता और इसके वास्तविक असर को मद्देनजर रखते हुए बैंकिंग प्रणाली की आस्ति गुणवत्ता आगे चलकर तेजी से बिगड़ सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक बैंकिंग प्रणाली का दबाव संभवतया आस्ति गुणवत्ता को रोकने से ढक गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘इन चुनौतियों और किसी खंड विशेष में काम करने वाली कंपनियों के आने और उभरती वित्तीय तकनीकों के कारण आने वाले समय में बैंकों को तेजी से विकसित होते आर्थिक परिदृश्य के मुताबिक खुद को ढालना होगा।’ प्रावधान के मद में खासा इजाफा होने से बैंकों का एनपीए अनुपात मार्च 2020 के अंत तक कम होकर 2.8 प्रतिशत रह गया और सितंबर 2020 तक और घटकर 2.2 प्रतिशत रह गया। कुछ बैंकों के तिमाही नतीजों पर आधारित शुरुआती अनुमानों के अनुसार सितंबर 2020 के अंत में सकल एनपीए 0.10 से 0.66 प्रतिशत के साथ ऊंचे स्तर पर होता, लेकिन कोविड-19 से संबंधित प्रावधान और लाभांश वितरण पर रोक के बाद बैंकों के बहीखाते को काफी राहत मिली।
आरबीआई के शुरुआत अनुमान इस ओर इशारा कर रहे हैं कि नियामकीय आवश्यकताएं पूरी करने और वृद्धि के लिए पूंजी की जरूरत बैंकिंग प्रणाली के सामान्य इक्विटी टीयर 1 अनुपात का 150 आधार अंक तक हो सकती है। इसके एवज में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पूंजी डालने के लिए 20,000 करोड़ रुपये अलग से रखे हैं। इस तरह, बैंकों को एक पर्याप्त पूंजी जुटाने की रणनीति के तहत बाजार से अतिरिक्त संसाधन जुटाने चाहिए। कोविड-19 महामारी के मद्देनजर केंद्रीय बैंक दरों में कटौती, नकदी डालने, नियामकीय प्रावधानों आदि उपायों के जरिये वित्तीय प्रोत्साहन और वित्तीय स्थितर बहाल करने में जुटा है। रिपोर्ट के अनुसार बैंकिंग क्षेत्र की सेहत में सुधार आर्थिक सुधार की रफ्तार पर निर्भर करता है। हालांकि अर्थव्यवस्था मंदी की गिरफ्त में थी, इसलिए बैंकों के ऋण आवंटन में भी इस बात झलक साफ दिखी थी।