मैंने बैलेंस फंडों में निवेश किया पर मुझे 22 से 28 फीसदी का पूंजी नुकसान हुआ है।
मकसद की बात करें तो ऐसे फंड अगर 100 फीसदी पूंजी की सुरक्षा नहीं दे सकते, तब भी ऐसे फंडों से उम्मीद की जाती है कि वे निवेशक को कम से कम नुकसान होने देंगे।
कृपया, मुझे सलाह दें कि मुझे अपने पोर्टफोलियो में कोई एक बैलेंस फंड रखना चाहिए या नहीं। पिछले दो वर्षों से मैं डीएसपीबीआर बैलेंस्ड, एचडीएफसी प्रुडेंस और मैग्नम बैलेंस्ड में निवेश करते आ रहा हूं।
जगन्नाथ बाबू
बैलेंस्ड फंडों में निवेश करने से नियमित बढ़ोतरी में सहायता मिलती है। उनकी सहज रचना उनको ऋण और इक्विटी में असरदारतालमेल बनाने के लिए प्रेरित करती है। इसी संरचना के कारण ये लंबी अवधि के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं।
बैलेंस्ड फंडों को बाजार के हालात के अनुरुप परिसंपत्ति वर्गों में भी अदला-बदला जा सकता है। हालांकि, यह हो सकता है कि वे बाजार में तेजी के दौरान इक्विटी फंडों की भांति नहीं बढ़ें, लेकिन इनकी संरचना इस तरह की है कि बाजार की गिरावट के दौरान ये बहुत ज्यादा नहीं गिरते।
पिछले वर्ष, इक्विटी डाइवर्सिफाइड फंड औसतन 55 फीसदी तक लुढ़क गए थे, जबकि बैलेंस्ड फंडों में 41 फीसदी की औसत गिरावट दर्ज की गयी थी। लिहाजा, इक्विटी फंडों के मुकाबले बैलेंस्ड फंडों में नुकसान की संभावना कम रहती है।
इसके अलावा, बैलेंस्ड फंड स्वचालित संतुलन की सुविधा प्रदान करते हैं। साथ ही अच्छे दौर में कर की भी गुंजाइश नहीं होती है।
ऐसे फंडों को कर संबंधित मामलों में इक्विटी फंडों के बराबर माना जाता है। फलस्वरूप लंबी अवधि में बढ़ोतरी के लिए आपने बैलेंस्ड फंडों में जो निवेश किया है, उसे आगे जारी रखने में समझदारी है।
यदि मैं किसी टैक्स फंड में 20,000 रुपये का निवेश करता हुं, तो मैं कितना कर बचा सकता हूं? क्या इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ईएलएसएस) में निवेश करने की कोई सीमा है?
अजय सेंगर
फिलहाल, ईएलएसएस में निवेश करने पर कोई सीमा नहीं है। मगर आप कर बचाने के लिए ईएलएसएस में 1 लाख रुपये तक का निवेश कर सकते हैं।
आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत, एक निजी निवेशक द्वारा इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ईएलएसएस) में निवेश करने पर उसे अधिकतम एक लाख रुपये तक की आय में कर छूट मिलती है या कोई ऐसी अन्य योजना में भी इस धारा के तहत छूट प्राप्त की जा सकती है पर यह राशि अकेले या मिलाकर एक लाख से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
वर्तमान में एक व्यक्ति अपनी इस निवेश क्षमता को चाहे जितना बढ़ा सकता है। पूर्व में विभिन्न योजनाओं में कई प्रकार की निवेश सीमा तय की गयी थी। इससे पहले, ईएलएसएस निवेश योजना के तहत छूट धारा 88 के तहत मिलती थी।
छूट की सीमा निवेशक की आय पर निर्भर करती थी। यदि कुल आय 1.5 लाख रुपये से कम है, तो 20 फीसदी की छूट का प्रावधान था।
1.5 लाख रुपये से लेकर 5 लाख रुपये की आय पर 15 फीसदी की छूट का प्रावधान था। 5 लाख रुपये से अधिक की आय पर धारा 88 लागू नहीं होती थी। साथ ही ईएलएसएस में अधिकतम निवेश की सीमा 10,000 रुपये थी।
यह आम धारणा बन चुकी है कि गिल्ट फंडों का निवेश प्राथमिक तौर पर भारत सरकार के बांडों और सुरक्षित जमाओं (बैंकों एवं कंपनियों) में किया जाता है।
यदि यह सच्चाई है, तो 7 जनवरी 2009 को सत्यम कम्पयूटर्स की वित्तीय गड़बडियों की खबर से जब शेयर बाजार 7 फीसदी लुढ़के तो इन फंडों में भी 5 से 8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। क्यों?
सरोज माटी
7 जनवरी 2009 को गिल्ट फंडों के मुनाफे में आई गिरावट का सत्यम के घोटाले से कोई संबंध नहीं है। दरअसल यह गिरावट भारत सरकार के 10 वर्षों के सिक्योटिी बॉन्ड पर आनेवली रकम बढोतरी के कारण आई।
रकम में बढ़ोतरी सरकार के उसी दिन 10 अरब डॉलर के ऋण लेने की घोषणा के बाद दर्ज की गई। वर्ष की शुरूआत में ब्याज दरों के घटने की आशंका के चलते बांड की आय में हल्की गिरावट आयी। 7 जनवरी को सरकार की घोषणा के बाद बांड की आय में फिर थोड़ी गिरावट रही।
बांड आय और इसकी कीमतों का आपस में पूरक संबंध है, जिस कारण आय में उछाल के चलते बॉन्ड की कीमतों में गिरावट दर्ज की गयी। पिछले कई महीनों में ब्याज दरों में नियमित कटौती की गई है और आनेवाले समय में दरों को लेकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।
सरकारी सिक्योरिटी परहोनेवाली आय में भी मुश्किलें हैं। ब्याज दरों में किसी भी तरह के बदलाव को लेकर ये काफी संवेदनशील होते हैं। इन बातों से गिल्ट फंडों के साथ जुड़ी अनिश्चितता का पता चलता है।
मैं पिछले कुछ महीनों से लार्सन ऐंड टुब्रो, रिलायंस और एसबीआई के शेयरों में नियमित तौर पर निवेश करता आ रहा हूं। इससे पहले मैंने शेयरों में प्रत्यक्ष रुप से कभी निवेश नहीं किया है।
क्या मैं इस तरह से शेयरों में सीधे तौर पर निवेश करना जारी रखूं या फिर आप बिड़ला सनलाइफ फ्रंटलाइन इक्विटी और एचडीएफसी टॉप 200 में नियमित निवेश योजना (एसआईपी)के तहत निवेश करने की सलाह देंगे?
किरण निझर
यह आप पर निर्भर करता है। साथ ही यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप अपने निवेश के समय का प्रबंधन किस तरह से करते हैं। आप ने जिस आधार पर अपने शेयरों का चयन किया है अगर उसमें दम है, साथ ही आप उस पर कायम रहते हैं तो यह आपके लिए बेहतर हो सकता है।
इससे आपके खर्च में भी कमी आएगी। लेकिन मात्र तीन शेयरों को चुनकर इसी में निवेश करने की बजाय अन्य शेयरों में भी निवेश किया जा सकता है। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आपको पोर्टफोलियो को लेकर कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
इससे बचने के लिए पोर्टफोलियो में कुछ विविधता लाने के लिए कुछ शेयरों को आप अपने पोर्टफोलियो में शामिल कर सकते हैं। कर से जुड़े मसलों का भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
म्युचुअल फंडों में निवेश करना एक बेहतर विकल्प माना जाता है जिससे निवेशक को कर छुट और कई सुविधा का लाभ मिलता है।
निवेश के दौरान सावधि जमा पर मिलने वाले ब्याज दरों में किसी तरह का बदलाव नहीं होता है। क्या यही बात डेट फंडों पर भी लागू होती हैं?
यदि नहीं, तो फिर एसे समय में जबकि सावधि जमा पर मिलने वाले ब्याज की दरें घट रही हैं, किसी छोटी अवधि की डेट योजना में निवेश करना तर्कसंगत है?
सचिन मेहता
डेट फंड सावधि जमा योजना की तरह जोखिम मुक्त और निश्चित मुनाफा देने की गारंटी नहीं देते हैं। इन पर ब्याज दरों के उतार-चढ़ाव का काफी असर पड़ता है।
ब्याज दरों में गिरावट से बॉन्ड की कीमतों में उछाल आता है, जबकि ब्याज दरों में उछाल के बॉन्ड की कीमतों में गिरावट आती है। इस वजह से ब्याज दरों में हो रही गिरावट की स्थिति में डेट फंड बेहतर कारोबार करते हैं।
डेट फंडों की परिपक्वता अवधि जितनी अधिक होगी, ब्याज दरों में आनेवाले उतार-चढ़ाव को लेकर ये उतने ही संवेदनशील होते हैं। अत: कम अवधि के डेट फंड, लंबी अवधि के डेट फंडों की अपेक्षा ब्याज दरों में होनेवाले बदलाव से कम प्रभावित होते हैं।
लिक्विड फंड एक बेहतर विकल्प हो सकता है, जो कम अवधि की योजनाओं जैसे कोषीय योजनाएं, जमाराशि प्रमाणपत्र और व्यावसायिक पत्रो