सशस्त्र बलों और ऐसी ही अन्य सर्विस वाले मतदाताओं की संख्या में इजाफा हो रहा है। ये मतदाता आमतौर पर अपने घर से दूर होने के कारण और किसी अन्य जगह पर तैनात होने की वजह से नियमित तौर पर अपना मतदान नहीं कर पाते हैं।
अगर वे अपने कार्यस्थल पर सामान्य मतदाता के तौर पर नामांकन नहीं करना चाहते हैं तो उन्हें प्रॉक्सी अथवा डाक मतपत्र से मतदान करने का विकल्प दिया जाता है और इसके लिए उन्हें पर्याप्त समय भी मिलता है। पिछले दस वर्षों में ऐसे मतदान और नामांकन के आंकड़ों में वृद्धि देखी जा रही है।
साल 2014 के चुनावों की तुलना में साल 2019 के मतदान में यह आंकड़ा 30 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया है। सर्विस मतदाताओं के बीच मतदान 2014 के 4 फीसदी बढ़कर साल 2019 में 60 फीसदी हो गया। मतदान उनकी हिस्सेदारी बताता है जो सही मायने में अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं।
पहले दो चरणों के लिए प्रमुख राज्यों से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि अब तक पंजीकृत सर्विस मतदाताओं की संख्या करीब 6 लाख है, जो साल 2019 में देखी गई कुल संख्या का एक तिहाई है।
निर्वाचन आयोग के अनुसार, केंद्रीय सशस्त्र बलों, राज्य के सशस्त्र पुलिस बल और भारत सरकार के कर्मचारी को एक सर्विस मतदाता माना जाता है। समय और त्रुटियों को कम करने के लिए पिछले आम चुनावों में निर्वाचन आयोग ने इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम (ईटीपीबीएस) शुरू किया था। संवैधानिक निकाय के अनुसार, इससे मतदान प्रतिशत साल 2014 के 4 फीसदी से बढ़कर साल 2019 में 60.14 फीसदी हो गया।
अधिकतर सर्विस मतदाता देश के कुछ राज्यों से ही आते हैं। शीर्ष सात राज्यों की हिस्सेदारी 50 फीसदी से अधिक है। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान और पंजाब सर्वाधिक सर्विस मतदाताओं वाले प्रमुख राज्यों में से एक हैं।