वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत ई-इन्वॉयस तैयार करने की योजना शुरुआती हिचक के बाद आसानी से शुरू हुई और महीने भर के भीतर ही रोजाना तीन गुना ई-इन्वॉयस तैयार होने लगे हैं। इस समय रोज 24 लाख इन्वॉयस रेफरेंस नंबर (आईआरएन) या ई-इन्वॉयस बन रहे हैं, जबकि 1 अक्टूबर को यह संख्या केवल 8 लाख ही थी। 1 अक्टूबर से सालाना 500 करोड़ रुपये या इससे अधिक कारोबार करने वाली इकाइयों के लिए ई-इन्वॉयसिंग अनिवार्य कर दी गई है।
इस व्यवस्था को मिली शानदार प्रतिक्रिया से सरकार खासी उत्साहित है और 50 करोड़ रुपये या इससे अधिक कारोबार करने वाली इकाइयों के लिए भी 15 नवंबर से इसका परीक्षण शुरू कर सकती है। बाद में उनके लिए भी इसे अनिवार्य किया जा
सकता है। अधिकारी ने कहा, ‘हम 50 करोड़ रुपये और इससे अधिक सालाना कारोबारी करने वाली इकाइयों के लिए यह व्यवस्था प्रायोगिक तौर पर 15 नवंबर से शुरू करेंगे। इससे उन्हें पूरी तरह तैयार होने का समय मिल जाएगा।’
गुरुवार तक 18,111 जीएसटी आइडेंटीफिकेशन नंबर्स (जीएसटीआईएन) ई-इन्वॉयस बनाना शुरू कर चुके हैं, जबकि 1 अक्टूबर को इनकी संख्या केवल 8,000 थी। 500 करोड़ रुपये से अधिक सालाना कारोबार वाले 48,000 से अधिक जीएसटीआईएन हैं, लेकिन परिवहन एवं बीमा और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थान, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान, माल वहन करने वाली एजेंसियों और यात्री परिवहन सेवाओं जैसे क्षेत्र इस व्यवस्था से मुक्त रखे गए हैं। इनके अलावा विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाइयों के लिए भी ई-इन्वॉयङ्क्षसग अनिवार्य नहीं की गई है। अगर कोई कारोबारी इकाई दो या या अधिक कारोबार करती है तो वह ज्यादा जीएसटीआईएन रख सकती है।
इस बारे में एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘ई-इन्वॉयसिंग पर शानदार प्रतिक्रिया मिली है। ज्यादातर इकाइयां इसका पालन करने के लिए तैयार हैं। केवल बैंकिंग एवं परिवहन और कुछ अन्य क्षेत्र इससे अलग रखे गए हैं। इस व्यवस्था के क्रियान्वयन को लेकर अब तक कोई शिकायत नहीं आई है। इसकी एक वजह यह भी है कि ये बड़ी कंपनियां के पास पुख्ता एवं मजबूत तकनीकी प्रणाली है।’ ई-इन्वॉयसिंग या बिक्री के बिल ऑनलाइन माध्यम से सौंपने के लिए कंपनियों को सरकारी पोर्टल से इन्वॉयस पंजीकरण क्रमांक (आईआरएन) लेना पड़ता है। माल ढुलाई के समय अधिकारियों को यह क्रमांक दिखाना पड़ता है। अगले कुछ समय तक के लिए यह व्यवस्था मौजूदा ई-वे बिल प्रणाली की जगह लेगी और सरकार को लगता है कि बाद में सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों के लिए जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की जरूरत नहीं रह जाएगी। बिक्री के आंकड़ों में पारदर्शिता लाने, त्रुटियां कम से कम करने एवं आंकड़ों में मिलान सुनिश्चित करने आदि के लिए ई-इन्वॉयसिंग शुरू की गई है। लघु एवं मझोली इकइयों के लिए अनिवार्य बनाए जाने के बाद इससे कर चोरी रोकने में मदद मिलेगी।
