हाल के वर्षों में मेक इन इंडिया के तहत तमाम कवायदों के बावजूद भारत में औद्योगिक व विनिर्माण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी लगातार कम हो रही है। 2019 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में उद्योग की हिस्सेदारी घटकर दो दशक के निचले स्तर 27.5 प्रतिशत पर आ गई है। यह पिछले पांच साल में 250 आधार अंक कम हुई है। तीन साल पहले यह अनुपात 29.3 प्रतिशत था और 2014 में 30 प्रतिशत था। एक आधार अंक एक प्रतिशत का सौवां हिस्सा होता है।
इसकी वजह से भारत एशिया के सबसे कम औद्योगीकरण वाले देश में शामिल हो गया है, जिसमें पाकिस्तान, नेपाल और म्यांमार ही अपवाद हैं। एशिया में जीडीपी में औद्योगिक क्षेत्र की औसत हिस्सेदारी 30.8 प्रतिशत है। एशियन डेवलपमेंट बैंक के आंकड़ों के मुताबिक दक्षिण एशिया में बांग्लादेश व श्रीलंका में भी जीडीपी में औद्योगिक क्षेत्र की हिस्सेदारी भारत की तुलना में ज्यादा हो गई है।
उदाहरण के लिए 2019 में औद्योगिक क्षेत्र की हिस्सेदारी बांग्लादेश के जीडीपी में 31.2 प्रतिशत रही है, जो पिछले 5 साल में 350 आधार अंक बढ़ी है। वियतमाम में यह अनुपात 38.3 रहा, जो 2014 की तुलना में 140 आधार अंक ज्यादा है। वहीं चीन में 2019 में यह अनुपात 39.2 प्रतिशत रहा है, जो इस दौरान 410 आधार अंक कम हुआ है। एशिया में जीडीपी में उद्योग की हिस्सेदारी इस अवधि के दौरान महज 20 आधार अंक कम हुई है।
आंकड़ों से पता चलता है कि 2008 में लीमन संकट के बाद भारत का औद्योगिक क्षेत्र सुस्त था, वहीं पिछले 3 साल में इसमें तेज गिरावट आई है। 2016 से 2019 के बीत भारत में उद्योग की हिस्सेदारी 190 आधार अंक गिरी है, जो पिछले 5 साल में हुई कुल गिरावट का तीन चौथाई है। इस अवधि के दौरान नवंबर 2016 में नोटबंदी हुई थी और जुलाई 2017 में वस्तु एवं सेवा कर लागू किया गया था। पिछले 3 साल के दौरान विनिर्माण, खनन, निर्माण, बिजली उत्पादन और यूटिलिटी सहित भारत का कुल औद्योगिक उत्पादन डॉलर के हिसाब से महज 17 प्रतिशत बढा है और सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) 5.4 प्रतिशत रही है। इसी अवधि के दौरान बांग्लादेश का उत्पादन 48 प्रतिशत बढ़ा है, जो वियतनाम के 38 प्रतिशत और चीन के 29 प्रतिशत से ऊपर है।
औद्योगिक वृद्धि में लगातार गिरावट की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था एशिया में पीछे छूट गई है। पिछले तीन साल में भार की नॉमिनल जीडीपी वृद्धि डॉलर के हिसाब से 7.7 प्रतिशत सीएजीआर रहा है। वहीं बांग्लादेश (11 प्रतिशत सीएजीआर), चीन (9.5 प्रतिशत) और वियतनाम (9.3 प्रतिशत) इससे आगे रहे हैं।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में गिरावट जारी रहने के कारण अर्थशास्त्री इससे आश्चर्यचकित नहीं हैं। के यर रेटिंग के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘एक वक्त था जब आईआईपी में सालाना वृद्धि 8-9 प्रतिशत रहती थी, अब यह 3 प्रतिशत से ज्यादा रहे तो खुशी की बात है। 2014 के बाद से आईआईपी वृद्धि शायद ही कभी 4 प्रतिशत से ऊपर गई है।’ उनके मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था मांग के संकट से गुजर रही है, जिसकी वजह से उत्पादन में कमी, नए निवेश की कमी, कुछ नौकरियों के संक ट से गुजरना पड़ रहा है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि औद्योगिक जीडीपी में लगातार गिरावट की वजह से भारत के लिए आर्थिक वृद्धि को गति देना मुश्किल होगा। इसकी वजह से चीन के आसपास पहुंचना या तेजी से बढ़ते बांग्लादेश और वियतनाम से मुकाबला करने में मुश्किल होगी। इंडिया रेटिंग ऐंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा, ‘भारत में उद्योग और विनिर्माण क्षेत्र में तेज विकास जरूरी है, जिससे ज्यादा नौकरियों का सृजन हो सके और लोगों के जीवन स्तर व प्रति व्यक्ति आमदनी में सुधार हो सके। इसकी सीमा है कि आप कृषि और सेवा क्षेत्र के बूते कितना बढ़ सकते हैं।’ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि उद्योग में सुस्त वृद्धि कुल मिलाकर कृषि और सेवा क्षेत्र की वृद्धि को भी प्रभावित करेगी, क्योंकि इसका असर कच्चे माल, नौकरियों और उत्पादन के बाद की गतिविधियों पर भी पड़ता है।
