निजी कंपनियों को चीन में बने दूरसंचार उपकरण खरीदने से रोकने के लिए सरकार अनिवार्य जांच एवं दूरसंचार उपकरण प्रमाणन (एमटीसीटीई) प्रणाली के इस्तेमाल पर विचार कर रही है। सरकार नहीं चाहती है कि निजी दूरसंचार कंपनियां भविष्य में अपने परिचालन के लिए चीन के दूरसंचार उपकरणों का इस्तेमाल करें। एमटीसीईटी प्रणाली के तहत सरकार भारतीय दूरसंचार सुरक्षा आश्वासन अनिवार्यता के तहत कड़े दिशानिर्देश तैयार कर रही है। इन दिशानिर्देशों के तहत दूरसंचार उपकरण विनिर्माताओं को सोर्स कोड बताना होगा और उनके उपकरणों की जांच सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान में की जाएगी। इस पूरी प्रक्रिया में 12 से 16 दिन लगेंगे और इसके बाद ही वेंडरों को अगली औचारिकताएं पूरी करने की अनुमति होगी। सरकार से अंतिम मंजूरी मिलने के बाद दूरसंचार उपकरणों का आयात हो पाएगा।
हालांकि दूरसंचार कंपनियों की कुछ अपनी चिंता है। एक दूरसंचार कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘जांच की पूरी प्रक्रिया में खासा समय लगेगा और कोई भी दूरसंचार कंपनी लंबे समय तक इंतजार नहीं करना चाहेगी।’ हालांकि भारतीय दूरसंचार कंपनियां सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के माध्यम से सार्वजनिक रूप से कह चुकी है कि चीन के उपकरण नहीं खरीदने की पाबंदी उन पर थोपी नहीं जानी चाहिए। कंपनियों का कहना है कि चीन की 5जी तकनीक दूसरे देशों के मुकाबले कहीं अधिक पुख्ता है। दूरसंचार कंपनियों का कहना है कि चीन के उपकरण विनिर्माता कंपनियों को वहां के बैंकों से सस्ती दरों पर कर्ज मिलता है, इसलिए वे किफायती दाम में दूसरे देशों को 5जी तकनीक मुहैया कराती हैं। कुछ कंपनियों ने कहा कि चीन से उपकरण आयात पर शिकंजा कसना विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत भेदभाव माना जा सकता है।
सरकार दूरसंचार उपकरणों की सार्वजनिक खरीद से चीन की कंपनियों को बाहर रखने के लिए भी सभी उपाय कर रही है। सरकार ने हाल में चीन से आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नियम भी कड़े कर दिए हैं। अब चीन की कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी। सरकार स्रोत देश की शर्तें जोड़कर दूरसंचार कंपनियों को पट्टे पर दिए जाने वाले स्पेक्ट्रम से जुड़े नियम भी कड़े कर सकती है। दूरसंचार विभाग में पूर्व तकनीक सलाहकार आर के भटनागर ने कहा, ‘भारतीय टेलीग्राफ संशोधन नियम, 2017 के जरिये अनिवार्य सुरक्षा जांच अधिसूचित कर दी गई है।’ पहले सुरक्षा जांच विनिर्माता आंतरिक स्तर पर करते थे और स्व-प्रमाणन के बाद सरकार दूरसंचार कंपनियों को दूरसंचार उपकरण लगाने की अनुमति देती थी।
