भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने राज्यों के वित्त पर अपने सालाना अध्ययन में आज कहा है कि महामारी और राजसस्व प्रभावित होने की वजह से राज्यों के पूंजीगत व्यय में वित्त वर्ष 21 के दौरान भारी कटौती हो सकती है।
‘राज्यों का वित्त : 2020-21 के बजट का अध्ययन’ नामक रिपोर्ट में पाया गया है कि राज्यों ने वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान अपने पूंजीगत व्यय में 1.26 लाख करोड़ रुपये यानी देश के सकल घरेलू उत्पाद के 0.6 प्रतिशत से बराबर भारी कटौती की। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह कम से कम पिछले दो दशक में सबसे बड़ी कटौती है और भारत में महामारी के असर के पहले ऐसा हुआ है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 20 में पूंजीगत व्यय में कटौती इतनी ज्यादा थी कि जीडीपी के मुकाबले सभी राज्यों का पूंजीगत व्यय गिरकर 2018-19 के स्तर पर आ गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा आर्थिक स्थिति राज्यों को इस साल भी ऐसा करने के लिए बाध्य कर सकती है।
इसमें कहा गया है, ‘राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के लिए राज्य औसतन जीडीपी के 0.5 प्रतिशत के बराबर पूंजीगत व्यय में कटौती करते रहे हैं। 2020-21 में भी बजट अनुमानों में इसी तरह की धारणा की उम्मीद है, खासकर ऐसी स्थिति में जब पहली तिमाही में लॉकडाउन और दूसरी तिमाही में मॉनसूवन के कारण राज्य बहुत ज्यादा पूंजीगत व्यय नहीं कर सके हैं।’
10 प्रमुख राज्यों के त्वरित विश्लेषण से पता चलता है कि उन्होंने इस वित्त वर्ष के पहले 5 महीनों (अप्रैल से अगस्त) के दौरान पूंजीगत व्यय में 35 प्रतिशत की भारी कटौती की है।
लॉकडाउन और मॉनसून के अलावा खर्च की प्राथमिकता में अचानक बदलाव के कारण भी पूंजीगत व्यय में कमी आई है। आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 21 की अप्रैल जून (पहली तिमाही) तिमाही के दौरान राजस्व व्यय 12 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि राजस्व प्राप्तियों में 21 प्रतिशत कमी आई है।
इस साल यह पूंजीगत व्यय के लिए एक और जोखिम कारक को जोड़ता है और वह है राज्यों का बढ़ते ऋण के साथ जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) अनुपात। ऐसे समय पर जब राजस्व प्राप्ति घट रही तब राजस्व खर्च को बजट के स्तर पर रखने के लिए राज्य इस साल बाजार से और अधिक उधारी ले रहे हैं।
रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है, ’19 राज्यों के लिए ऋण-जीएसडीपी अनुपात 2020-21 में 25 फीसदी से ऊपर जा सकता है जिससे पूंजीगत व्यय में कटौती करने पर मजबूर होना पड़ा सकता है।’
इससे आगे, वस्तु एवं सेवा कर मुआवजा में अच्छी खासी कमी करने के लिए केंद्र की ओर से दिए जाने वाले ऋण से राज्यों का ब्याज पर खर्च होने वाला धन बढ़ेगा। इससे राज्य के वित्त पर नया दबाव पड़ेगा।
